Categories
अन्य कविता

कहां गये वो लोग?

स्वरूप बिगड़ता देख कर अपना, क्या तू भी कभी बोलती है?
उत्खनन हो रहा खनिजों का, सोना, चांदी, हीरे, मोती।
चलते हो बम दमादम जब, क्या तू भी सिर धुनकर रोती?

रोती होगी तू अवश्यमेव, यह होता आभास।
आंसू छलके जब जब तेरे, यह बता रहा इतिहास।

मत दे जीवन धरनी उनको, है दिल की यह अरदास।
मानव रक्त की बूंदों से, जो मिटाते तेरी प्यास।

आदिकाल से ही करता आया, मानव तेरा उपभोग।
अन्न औषधि रत्नों का, जनहित में किया उपयोग।
तुझ पर लेटे, खेले, विचरे, पुरखों ने किया था ध्यान योग। पदचिन्ह नही ,
यादें जिंदा आज कहां गये वो लोग?

Comment:Cancel reply

Exit mobile version