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धर्म-अध्यात्म

मेरठ में राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनस्र्थापना में आर्य समाज का योगदान, भाग-3

स्वामी दयानन्द की इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि महर्षि दयानंद सरस्वती जनता में इतना संभल कर बोलते थे कि स्वतंत्रता की भावना तो जनमानस में रच-बस जाए, परंतु क्रूर अंग्रेज शासकों के पंजे से भी बचा जा सके, स्वदेशी आंदोलन का प्रचार प्रसार करने, उसके लिए जनमत तैयार करने एवं पराकाष्ठा तक पहुंचाने में […]

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धर्म-अध्यात्म

मेरठ में राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनस्र्थापना में आर्य समाज का योगदान, भाग-2

पिछले अंक से आगे…. दयानंद महाविद्यालय गुरुकुल डौरली की स्थापना 1925 में हुई। श्री अलगू राय शास्त्री इसके प्रथम आचार्य नियुक्त हुए। इस विद्यालय की स्थापना हेतु भूमिदान पंडित शिव दयालु ने किया। यह विद्यालय प्रारंभ से ही राष्ट्रीयता की भावना को प्रभावी बनाने का कार्य करने लगा। फलस्वरूप गुरुकुल के आचार्यों, ब्रह्मचारियों तथा कर्मचारियों […]

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महत्वपूर्ण लेख

सर्वप्रथम हृदय से आर्य समाज ने ही अपनाया था हिन्दी को

आर्य समाज की स्थापना गुजरात में जन्में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने 10 अप्रैल, सन्  1875 को मुम्बई नगरी में की थी। आर्यसमाज क्या है? यह एक धार्मिक संस्था है जिसका उद्देश्य धर्म, समाज व राजनीति के क्षेत्र से असत्य को दूर करना व उसके स्थान पर सत्य को स्थापित करना है। क्या धर्म, समाज […]

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महत्वपूर्ण लेख

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द और आर्य समाज

आर्य समाज उन्नीसवीं शताब्दी व उसके बाद देश का सामाजिक व राजनैतिक क्रान्ति का एम महान संगठन था व है जिसने अपनी मनुष्य जीवन के उद्देश्य को सफल करने वाली तर्कसंगत विचारधारा के कारण देश के सभी मतों व सम्प्रदायों को प्रभावित किया। महर्षि दयानन्द जिन अंग्रेज अधिकारियों, पादरियों, मौलवियों व विद्वानों आदि से मिलकर […]

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महत्वपूर्ण लेख

आर्य समाज और इसके पतितोद्धार कार्य की एक सर्वोत्तम प्रेरणाप्रद घटना

मनमोहन आर्य पराधीन भारत में एक गुजराती जन्मना व कर्मणा ब्राह्मण महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा 10 अप्रैल, सन् 1875 को मुम्बई के काकड़वाड़ी स्थान पर प्रथम आर्य समाज की स्थापना विगत 5,000 वर्षों में एक सर्वतोमहान क्रान्ति के सूत्रपात का ऐतिहासिक दिवस है। हमें देश में ऐसी कोई संस्था या आन्दोलन विगत 5,000 वर्षों में […]

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विविधा

महर्षि की कमाई खाता आर्य समाज

प्रेरक ‘हिन्दी प्रदीप (प्रयाग) ने स्वामी दयानंद जी महाराज के देहांत पर अपने श्रद्घा सुमन निम्न प्रकार अर्पित किये थे-”हा! आज  भारतोन्नति कमलिनी का सूर्य अस्त हो गया। हा! वेद का खेद मिटाने वाला सद्घैद्य गुप्त हो गया। हा! दयानंद सरस्वती आर्यों की सरस्वती जहाज का पतवारी बिना दूसरों को सौंपे तुम क्यों अंतर्धान हो […]

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