बिखरे मोती भाग-66 गतांक से आगे…. परमात्मा ऐसे सत्पुरूषों के भण्डारी की स्वयं रक्षा करते हैं। इसीलिए वेद कहता है- ‘‘शतहस्त समाहर: सहस्रहस्तं सं किर:’’ अथर्ववेद 3/24/5 श्रद्घा देयम् अश्रद्घया देयम् , मिया देयम् , हिृया देयम् संविदा देयम् (तैत्तिरीय उपनिषद) अर्थात श्रद्घा से दे, अश्रद्घा से दे, भय से दे, लज्जा से दे, वचन […]
Categories