ललित गर्ग जिस तरह कण-कण में भगवान हैं, ठीक उसी तरह कण-कण में जीवन भी समाया है। संगीत की स्वर-लहरियों, पंछियों की चहचहाहट, सागर की लहरों, पत्तों की सरसराहट, मंदिर की घंटियों, मस्जिद की अजान, कोयल की कूक, मयूर के नयनाभिराम नृत्य, लहलहाते खेत, कृषक के मुस्कराते चेहरे, सावन की रिमझिम फुहार, इंद्रनुषी रंगों, बादलों […]
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