Categories
बिखरे मोती

कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब।

बिखरे मोती विषमताओं को पार कर के ही मनुष्य विलक्षण और यशस्वी बनता है:- कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब। खूबसूरती खुशबू में , अद्भुत है नायाब।।2333॥ प्रभु – इच्छा ही सर्वोपरि है:- प्रभु- इच्छा प्रबल बड़ी, पूरी हो तत्काल। एक उसके संकेत से, नर होता निहाल॥2334॥ मन कहाँ रहता है :- राग […]

Categories
आज का चिंतन बिखरे मोती

बिखरे मोती : ‘विशेष’- प्रभु से क्या मांगें भक्ति अथवा मुक्ति ?

‘विशेष’- प्रभु से क्या मांगें भक्ति अथवा मुक्ति ? ब्रह्म-भाव में हम जीयें, करें ब्रह्म-रस पान। जीवन-धन तेरा नाम है, दो भक्ति का दान॥2775॥ तत्त्वार्थ:- हे ब्रह्मन् ! हे प्राण-प्रदाता ओ३म् !! हे धराधन्य!!! हे अनन्त और निरन्तर कृपा बरसाने वाले पर्जन्य ! आप हम पर इतनी कृपा अवश्य करें, कि आपसे निरन्तर सायुज्यता बनी […]

Categories
बिखरे मोती

बिखरे मोती : इस संसार में आनन्द कहाँ ?

राग-द्वेष की कीच जग, मत ढूँढों आनंन्द । रमण करो हरि-नाम में, पावै परमानन्द ॥2327॥ ये कैसे लोग हैं? आन्तरिक सौन्दर्य को खोकर, बाहरी सजावट में लगे हैं:- बाहरी सजावट में लगे, ये संसारी लोग । अन्तःकरण पावित्र कर, कटेंगें सारे रोग॥2328॥ मन की प्रतिकृति कौन है – आचरण वैसा ही बने, जैसे मन में […]

Categories
बिखरे मोती

परम पिता परमात्मा को पाना है, तो उसे खोजो मत,उसमें खो जाओ :-

परम पिता परमात्मा को पाना है, तो उसे खोजो मत,उसमें खो जाओ :- चराचर में हरि रम रहा, चिन्तन कर तू रोज। खो-जा उसके ध्यान में, मत कर उसकी खोज॥2320॥ वह कौन है? जिसे ‘वेद’ वे रसो वै सः कहा:- माया- जीव का अधिपति, जग में है भगवान। रसों का रस वह ब्रह्म है, लगा […]

Categories
बिखरे मोती

परम पिता परमात्मा के चित्त जैसा हमारा मन कैसे बने

बिखरे मोती परम पिता परमात्मा के चित्त जैसा हमारा मन कैसे बने :- विषयों का चिन्तन करे, मन विष जैसा होय। जो चिन्तन हरि का करे, तो हरि जैसा होय॥2303॥ आनन्दधन कहाँ रहता है :- अनन्त बार यह तत मिला, मिला नहीं आनन्द । माया में रहा ढूँढता, अन्तस्थ में था आनन्द॥2304॥ पवित्र हृदय में […]

Categories
बिखरे मोती

जीवन की सबसे बड़ी पूँजी क्या है –

जीवन की सबसे बड़ी पूँजी क्या है – स्वार्थ को तू मार ले, जिन्दा रख सद्‌भाव। भाव गया आदर गया, घट घेरे दुर्भाव॥2281॥ विशेष शेर काश! मेरी अन्तिम इच्छा पूर्ण हो :- ऐ ख़ुदा ! मेरा मन, तेरी इबादत में लग जाये। ये जिस्म जो मेरा , खलक – ए – खिद्मत में लग जाये […]

Categories
बिखरे मोती

तौफीक है ख़ुदा की, ये मुनव्वर जो तेरा।

प्रभु-प्रदत्त विभूति अर्थात् विलक्षणता के संदर्भ में:- “शेर” तौफीक है ख़ुदा की, ये मुनव्वर जो तेरा। नादानगी से कहता, ये मुनव्वर है मेरा॥ है जुगनू जैसा डेरा , तू सिर झुका कर कह दे, जो भी दिया है तेरा॥ भाव यह है किं प्रभु-प्रदत्त विभूतियाँ अर्थात- विलक्षणताएँ परम-पिता परमात्मा की दिव्य दौलत हैं। भगवान कृष्ण […]

Categories
बिखरे मोती

बिखरे मोती : शब्द शक्ति के संदर्भ में –

रसना रूपी कमान से, चले शब्द के तीर। कोई हियो घायल करे, कोई बंधावे धीर॥2271॥ जब प्रभु-कृपा बरसती है- शमा रोशन हौ गई, रहमत बरसी आज। तू और मैं का भेद ना, मनुआ करता नाज़॥2272॥ पीड़ा भरी पुकार प्रभु अवश्य सुनते है- तुझे पुकारू सुन मेरी, दर्द भरी आवाज। रक्षक मेरा है तू ही, प्रभु […]

Categories
बिखरे मोती

बिखरे मोती : महान बनो, किन्तु अपने आधार से जुड़े रहो :-

कभी लावा भू-गर्भ में, कभी शिखर बन जाय। बर्फ की चादर मिल गई, हरियाली छुट जाय॥2264॥ प्रभु से जब भी मांगो तो इन तीनो को मांगो दिव्य गुणो से चित मेरा, होय सदा भरपूर। सरस्वती हो वाक में, आत्मा में हरि – नूर॥2265॥ लालच बुरी बलाय है लालच में मत पाप कर, भोगेगा तू आप। […]

Categories
बिखरे मोती

बिखरे मोती : विधाता की सृष्टि कितनी अद्‌भुत अनुपम और विस्मयकारी है

पंचभूत से जग रचा, रचनाकार महान। स्थूल समाया सूक्ष्म में, मन होता हैरान॥2257॥ वेद ने विधाता को हिरण्यगर्भः क्यों कहा:- क्षितिज से उस पार क्या, क्या उनका आधार। सृष्टि तेरे गर्भ में, पालक सर्वाधार॥2258॥ विशेष : देवताओ को भूख क्यो नही लगती- देवत्त्व को जो प्राप्त हो हो, उड़ै पार्थिव भूख। तन्मात्राओं से तृप्त हो, […]

Exit mobile version