वैदिक संपत्ति : एक अमूल्य ग्रंथ

गतांक से आगे…

इस शब्दसाम्य के अतिरिक्त, चाल्डिया की डैल्यूज टेबलेट अर्थात् मनु के तूफान की कथा भी ज्यों की त्यों यहां के अनुसार ही लिखी हुई मिलती है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वे आर्य ही है। हम अभी फिनिशियावालों के वर्णन के साथ लिख आए हैं कि बेबीलोनिया में पणियों और चोलों ने ही उपनिवेश बसाया था। ये चाल्डियन उन चोलों के अतिरिक्त और कोई दूसरे नहीं है,जो आर्यों से जुदा होकर पहिले चोल देश में बसे थे। इसलिए चाल्डिया- निवासी भी भारतवासी आर्य ही हैं।

जुड़ियां यहूदियों का देश है।इसी में हजरत मूसा और हजरत ईसा जैसे जगत प्रसिद्ध धर्माचार्य उत्पन्न हुए हैं।बाइबल में लिखा है कि पश्चिम में आने वालों की एक ही भाषा थी और वे सब पूर्व ही से आए हैं। इनके विषय में पोकाक नामी विद्वान अपने ‘इण्डिया इन् ग्रीस’ नामी ग्रंथ में लिखता है कि युड़ा (जुड़ा) जाति भारत की यदु अर्थात् यदुवंशी क्षत्रिय जाति ही है। इसके अतिरिक्त अभी हमने तिलक के लिखित शब्दसाम्य के हवाले से दिखलाया है कि यहूदियों का यहोवा शब्द संस्कृत के यह्र शब्द का अपभ्रंश है।

बाबू उमेशचंद्र विद्यारत्तन कहते हैं कि ज्यू शब्द संस्कृत का ही है।आप मेदिनी कोष का यह वचन उद्धृत करते हैं कि ‘जुराकाशे सरस्वत्यां पिशाचे यवनेsपि अर्थात ‘जू’ शब्द यवन शब्द का ही अपभ्रंश है।’मानवेर आदि जन्मभूमि’ पृष्ठ तीन में आप कहते हैं कि ‘राजा सागर की आज्ञा से यवनों ने जिस पल्ली में निवास किया था, वही पेलेस्टाइन हो गया है और यवन शब्द का ही विकार (यवन-जोन) ‘ जू है’। इस वर्णन से सिद्ध होता है यदुवंशी क्षत्री ही राजा सगर के द्वारा यवन करके निकाले गए,जो पेलेस्टाइन में बसे। यही बात बाइबल और पोकाक के वचनों से भी सिद्ध होती है। बाइबल का नूह का वर्णन भी मनु के तूफान की ही सूचना देता हैI अतएव यहूदियों के आर्य होने में कुछ भी संदेश नहीं रह जाता। साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि वे भारत से ही जाकर वहां बसे हैं।

हम फिनीशिया के वर्णन में ऊपर लिख आए हैं कि बेबीलोनिया वालों का वायु देवता जिसको वे मतु या मुर्तु कहते हैं, वह वैदिक आर्यों का ‘मरूत्’ ही है। यह पाणियों और चोलों के द्वारा बेबीलोनिया में गया है।अतः सिद्ध है कि पणिक और चोल ही फिनीशिया और चाल्डिया से जाकर बेबिलोनिया में आबाद हुए हैं। ए० बेरीडल कीथ महोदय कहते हैं कि ‘खास ध्यान देने योग्य शब्द सूरिआस है जो इनमें सूर्य के ही अर्थ में बोला जाता है।और ई०मेयर साहब ने मान लिया है कि यह सूरिआस वैदिक सूर्या ‘(स’)ही है।यह सूरिआस शब्द बिल्कुल ही सूर्या का रूप है। क्योंकि विसर्ग का उच्चारण सकार ही होता है। इसके अतिरिक्त बेबीलोनिया की एक बहुत पुरानी फेहरिस्त मे सिंधु नामक बारीक मलमल का नाम आता है। बेबिलन में इस सिन्धु शब्द का कुछ भी अर्थ नहीं है। जिस तरह कालीकट ग्राम से जाने के कारण यूरोप में एक छीट का नाम केलिको प्रसिद्ध है,उसी तरह सिन्धु हैदराबाद से जाने के कारण इस वस्त्र का भी सिंधु नाम हो गया था। यही सिंधु वस्त्र पुरानी बाइबिल में सेडिन् ग्रीक में सिण्डम् कहा गया है और अंग्रेजी में साटिन् नाम से बाजारों में बिकता है।

कहने का मतलब यह है कि इन वर्णनों से यह सहज अनुमान हो सकता है कि पूर्वातिपूर्व काल में इस देश के साथ बेबिलन का घनिष्ठ संबंध था और सिन्धु नामक वस्त्र अपने साथ वहां पहुंचा था। हम जिन चौला का वर्णन पहले कर आये, वे दक्षिण से सागौन की लकड़ी अपने साथ नवीन देशों में ले जाया करते थे। अभी कुछ रोज हुए मुंघेर के खण्डहरों से पाँच हजार वर्ष की पुरानी सागौन की लकड़ी का टुकड़ा मिला है। बेबीलोनियां के प्रथम बादशाह की बनाई हुई इमारत से इस टुकड़े का प्राप्त होना यह सूचित करना है कि ये निस्सन्देह भारतवासी ही है- आर्य ही है और दक्षिण के पाण्डय और चोल से ही यहां जाकर अपने वंश अौर सभ्यता का विस्तार किया है।

असीरिया में आर्यों का ही निवास था। ए०बेरीडेल कीथ ने वहां के सुवरदत्त, जशदत्त और सुबश्चि आदि राजाओं के नामों से सिद्ध किया है कि वे आर्य ही थे।इन देशों के निवासियों को आर्य लोग असुर कहा करते थे। इसलिए ये सदैव अपने नाम के साथ ससुर शब्द का प्रयोग करते रहे हैं। प्रसिद्ध बादशाह असुर नासिरपाल और असुर वाणीपाल इस बात के उदाहरण है। इनके नाम असुर शब्द के साथ आर्यभाषा के ही है।हमने आरम्भ में ही कहा था कि आर्यों ने जिन गुण दोषों के सूचित करनेवाले नामों को रखकर दुष्ट आर्यों को अपने से अलग किया था,वे नाम उन्होंने भी कायम रखे थे । तथा उन्हीं नामों से अपने देशों को भी प्रसिद्ध किया था। जैसे चीना से चीन, आंध्र से आन्ध्रालय (ऑस्ट्रेलिया) आदि। कहने का मतलब यह है कि असीरिया निवासी भी आर्य ही है और भारत से ही जाकर वहाँ बसे है।

क्रमशः

देवेंद्र सिंह आर्य

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