*प्रभु-भक्ति सर्वदा चाव और भाव से करो -*

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भक्ति की धारा बहे,
चाव-भाव के बीच।
ध्यान लगा हरि-ओ३म् -से,
आँखों को ले मींच ॥2715॥

प्रत्येक जीवात्मा के साथ जिनका अनन्य सम्बन्ध है-

मन ज्ञानेन्द्री जीव ,
ऐसे है सम्बन्ध ।
जैसे वायु के संग में,
बहती रहती गन्द॥2716॥

तत्त्वार्थ:– भाव यह है कि परम पिता परमात्मा प्रत्येक जीवात्मा को मन अथवा चित्त श्रोत्र, चक्ष घ्राण,रसना, अथवा त्वचा उपहार स्वरूप देकर भेजता है। ये जीवात्मा के साथ हमेशा ऐसे रहते हैं जैसे वायु के साथ गन्ध प्रवाहितहोती रहती है।

कहाँ मिलेंगे शान्ती और आनंद-
मत ढूँढे संसार में,
शान्ति और आनन्द।
इनका तो भण्डार है,
केवल सच्चिदानन्द॥2717॥

तत्त्वार्थ :- इस संसार में प्रायः देखा गया है कि धन के कुबेर तो बहुत मिलते हैं जिन्हें यह कहते सुना जाता भगवान दिया सब कुछ है किन्तु मानसिक और आनन्द नहीं है। दिल बेचैन रहता आत्मा आनंद को तरसती है यह सुनकर और देखकरऐसे लोगों पर हंसी और तरस दोनों आते हैं। अरे भोले भाई! पैसे सुख के ससाधन तो खरीद सकते हो किन्तु शान्ति और आनन्द पैसे से नहीं खरीदे जा सकते हैं। शान्ति और आनन्द तो परम पिता परमात्मा की शरणागति से ही प्राप्त होगा। अतः प्रभु का सिमरन गहरी श्रध्दा से नित्य करो तथा ऐसे कर्म करो, जनसे परम पिता परमात्मा प्रसन्न हो, धन को धर्म में लगाओ प्रभु कृपा के पात्र बनो तभी मानसिक शांति और आनंद की प्राप्ति सम्भव है।
क्रमशः

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