रिपोर्ट : रविंद्र आर्य
नभे के दशक मे हिंदुस्तान के कश्मीर में हिन्दू के नरसंघार को दुनिया ने देखा, हालि मे बांग्लादेश मे करीब 1000 हिन्दुओं को मुस्लिम कट्टरता ने खुलेआम मारा गया, मतलब जिस हिन्दूस्तान ने बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ाद कराया आज उसी देश के हिन्दू अल्पसंख्यक लोगो को खुलेआम मारा जा रहा है हालि मे ईसनिंदा के आरोप लगाकर हिन्दू लड़का उत्सव मण्डल को बांग्लादेश मे पुलिस और मिलटरी के सामने खुलेआम कट्टर मुस्लिम मानसिकता रखने वालों ने उसे मार कर मस्जिदों से ऐलान किया जाता है। सत्यश्रय गिरी महाराज अपने मच से हाथ जोड़कर एक संन्यासी कह रहा है, “अपने भविष्य के लिए संगठित हो जाओ-बस यही मेरी भिक्षा है।”
कैंडल मार्च एवं श्रद्धांजलि सभा कब तक सहन करेगा हिन्दू, मोमबत्ती जलाकर नाटक करने से परिवर्तन नहीं आता, परिवर्तन के लिए मशाल जलानी होती है। एक संन्यासी होने के नाते मेरा कर्तव्य है सनातन को संगठित करना है, जिसमे रुकना मना है। बंगलादेश और बंगाल की यथास्थिति देखकर अभी एक बात समझ में आ गई होगी कि सनातनधर्म में शस्त्र विद्या का महत्व केवल युद्ध और आत्मरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति और समाज के समग्र विकास का साधन है। शस्त्र विद्या धर्म की रक्षा, आत्मरक्षा, वीरता, न्याय, आध्यात्मिक विकास और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके माध्यम से व्यक्ति में नैतिक मूल्यों, अनुशासन और साहस का विकास होता है, जो उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाता है।
सनातन धर्म में धर्म कर्तव्य की रक्षा को सर्वोपरि माना गया है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही सिखाया कि अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए शस्त्र उठाना आवश्यक है। यदि कोई व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, तो समाज में अधर्म और अनाचार फैल जाएगा। आत्मरक्षा और दूसरों की रक्षा करना एक महान कर्तव्य माना गया है। शस्त्र विद्या न केवल स्वयं की सुरक्षा के लिए, बल्कि समाज की रक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण है। एक सशक्त समाज ही आंतरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षित रह सकता है।
शस्त्र का ज्ञान वीरता और साहस का प्रतीक है। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में महान योद्धाओं का वर्णन है, जिन्होंने शस्त्र विद्या में निपुणता प्राप्त कर अधर्म का नाश किया और धर्म की स्थापना की। ये कहानियाँ समाज में साहस, धैर्य और वीरता के गुणों का प्रचार करती हैं।
शस्त्र विद्या के माध्यम से संतुलन और न्याय की स्थापना होती है। यह सुनिश्चित करता है कि अधर्मियों को उनके कुकर्मों का दंड मिले और धर्म की स्थापना हो। न्याय और संतुलन से ही समाज में शांति और स्थिरता बनी रहती है। सनातन धर्म में शस्त्र विद्या को केवल भौतिक युद्ध तक सीमित नहीं रखा गया है, बल्कि इसे आध्यात्मिक विकास के साधन के रूप में भी देखा गया है। शस्त्र विद्या आत्मसंयम, ध्यान और आत्मविश्वास का विकास करती है। यह व्यक्ति को अपने आंतरिक शत्रुओं जैसे क्रोध, लोभ, और मोह पर विजय पाने की प्रेरणा देती है। शस्त्र विद्या सिखाते समय अनुशासन, आचार और संयम का पालन किया जाता है। इससे व्यक्ति में अनुशासन, मर्यादा और नैतिक मूल्यों का विकास होता है। शस्त्र विद्या का अभ्यास व्यक्ति को संयमित और नियंत्रित बनाता है, जिससे वह अपने जीवन में हर परिस्थिति का सामना धैर्य और समझदारी से कर सके। लेकिन आज समाज का कडवा ऐ भी है कि वो मलिच्छ अपनी बेतुकी आसमानी किताब पढकर अपने धर्म के हिसाब से चलते हैं। चाहें डाक्टर इंजीनियर ही क्यों न बन जाये और हमारे यहां कुछ व्यक्ति को कालेज डिग्री मिल जाये तो वह बेरोजगार रहकर भी वैज्ञानिक फॉर्मूले वाले हिन्दू धर्म को वह धूर्त व्यक्ति पाखंड बताने लगता है। यहूदी जिसका अपना देश इजराइल है, वह वह वैज्ञानिक फार्मूला हिन्दू धर्म पर कभी तर्क वितर्क एवं आलोचना नहीं करता है, अपने धर्म और देश की रक्षा हेतु विश्व उसका लोहा मानता आया है सभी ने देखा पूरी दुनियाँ से इजराइली युवा, यहूदी अपने सारे काम काज छोड़ इजराइल लौट रहे थे, ताकि निर्णायक युद्ध में अपने देश अपने धर्म के लिए लड़ सकें, अपने दुश्मन का वजूद मिटा सकें। यही वो जज्बा है जो एक राष्ट्र को अजेय बनाता है। आज के समय मे यहूदियों के देश इजराइल से प्रेरणा लेना हिन्दू के लिए गर्व की बात होगा।
लेखक
रविंद्र आर्य
9953510133