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मुद्दा

आज़ादी के 77 वर्षों बाद भी हम ग़ुलाम ही क्यों हैं

आंखों देखी/कानों सुनी

✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

आज हमारे देश को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और हम 78 वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। परन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हम सही मायनों में स्वतंत्र हो पाए हैं? हमारा देश भले ही आज़ाद हो चुका है, परन्तु हमारी मानसिकता आज भी ग़ुलाम ही है।

अंग्रेजों ने भले ही भारत छोड़ दिया हो, लेकिन अंग्रेज़ी मानसिकता ने आज भी हमें गुलामी की बेड़ियों में जकड़ रखा है।
हम अंग्रेजी शराब पीकर, अंग्रेजी बोलने में ही अपनी शान समझते हैं। हिंदी मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना हम अपनी शान के ख़िलाफ़ समझते हैं।

और तो और, सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि हम अपने ही बच्चों को “अंग्रेज का बच्चा” कहलवाने में गौरवान्वित अनुभव करते हैं। हम आज भी गोरी चमड़ी को “मेम साहब” कहना नहीं भूले। हमें आज भी गोरी चमड़ी से ही लगाव है, सांवला रंग हमें फूटी आंख नहीं सुहाता है। जबकि हमारे आराध्य श्री राम और श्री कृष्ण दोनों ही सांवले रंग के थे। यहाँ उल्लेखनीय है कि कृष्ण शब्द का अर्थ “काला” होता है।

हम आज भी अपनी पारंपरिक वेशभूषा जो कि धोती-कुर्ता है, के स्थान पर पैंट-कोट या पैंट-शर्ट पहनकर उसपर टाई लगाने में गर्व का अनुभव करते हैं।

लेकिन उससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हम पैंट-कोट पहने व्यक्ति को “जेंटलमैन” कहते हैं, जबकि धोती-कुर्ता या कुर्ता-पायजामा पहनने वाले को पिछड़ा-गंवार मानते हुए उसे दीन-हीन मानते हैं।

अभी हाल ही का एक बड़ा दिलचस्प किस्सा मैं आपको बताता हूँ। मैं लखनऊ के एक मुस्लिम शिक्षण संस्थान में था, तब वहां उपस्थित एक मुस्लिम सज्जन मुझसे पूछने लगे कि शास्त्री जी, जिला समन्वयक को उर्दू में क्या लिखेंगे? मैंने कहा कि उर्दू का तो नहीं पता। तब उन्होंने पूछा कि समन्वयक को इंग्लिश में क्या कहते हैं? हमने कहा कि को-कॉर्डिनेटर लिखेंगे। इसपर तुरंत उन्होंने अपने अधीनस्थ को आदेश दिया कि आप उर्दू में ज़िला को-कॉर्डिनेटर लिखिए। जिला समन्वयक हिंदी का शब्द है।

इस पूरे किस्से को बहुत गम्भीरता से समझने की कोशिश करें तो स्पष्ट नज़र आता है कि उन मुस्लिम सज्जन को इंग्लिश का कॉर्डिनेटर शब्द “अपना” सा दिखाई दे रहा था, लेकिन हिंदी का “समन्वयक” शब्द “पराया” सा नज़र आ रहा था।
कमोवेश यही स्थिति पूरे देश की है। हमें आदाब या सलाम बोलना धर्म विरुद्ध लगता है, और उन्हें नमस्कार या प्रणाम करने से सख़्त ऐतराज़ है। लेकिन गुड मॉर्निंग बोलने में दोनों ही अपने आपको गौरवशाली मानते हैं।

बस, यही इस देश के चंद लोगों की विचारधारा है, जिसने इस देश को आज भी अंग्रेजियत का ग़ुलाम बना रखा है। और सम्भवतः सदियों तक हम और हमारी पीढियां अंग्रेजों और अंग्रेज़ी की ग़ुलाम बनी रहेंगी।

क्योंकि हम “उर्दू” को अपनाना नहीं चाहते और वो “हिंदी” को पराया समझते हैं।

✍️समाचार सम्पादक, हिंदी समाचार-पत्र,
उगता भारत
9058118317

👉यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, इनसे आपका सहमत होना, न होना आवश्यक नहीं है।

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