राजनीतिक गिद्धों का हैवानियत भरा नंगा नाच

✍️मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

एक दक्षिण अफ्रीकी फोटो पत्रकार केविन कार्टर ने मार्च 1993 में सूडान में उस वक्त खींचा था जब वहां भयंकर अकाल पड़ा था और लोग भुखमरी से मर रहे थे। इस फ़ोटो में एक गिद्ध, भूखी बच्ची की मृत्यु का इंतजार कर रहा है। उस फ़ोटो के लिए उसे पुलित्जर पुरस्कार दिया गया था। बाद में उस फ़ोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली थी।

अब ज़रा ग़ौर फरमाइए कि पिछले काफ़ी समय से मुख़्तार अंसारी कथिततौर पर अपने खाने में “ज़हर” दिए जाने की शिक़ायत कर रहा था। लेकिन उस समय किसी भी विपक्षी दल ने मुख़्तार अंसारी और उसके परिवार की आवाज़ को बुलंद करने का कोई प्रयास नहीं किया।
बल्कि सच पूछिए तो ठीक उसी प्रकार से यह तमाम विपक्षी राजनीतिक दल और नेता ख़ामोश बैठकर मानो मुख़्तार अंसारी की मौत का इंतज़ार करते रहे, जैसे उपरोक्त वर्णित फोटो में वह गिद्ध उस बच्ची की मौत का इंतज़ार करता रहता है। और मुख़्तार अंसारी के दम तोड़ते ही उसके बेजान शरीर पर स्यापा कर घड़ियाली आंसू बहाने पहुंच गए।

सच तो यह है कि लाशों पर राजनीति करना राजनीतिक दलों की रणनीति का एक हिस्सा बन चुका है।

इसलिए शायद हमने इन्हें “राजनीतिक गिद्ध” की संज्ञा देने का प्रयास किया है। क्योंकि जिस प्रकार गिद्ध को मृतक शरीर से कोई हमदर्दी नहीं होती वरन उसके लिए वह भोजन मात्र ही होता है, ठीक उसी प्रकार इन तमाम राजनीतिक दलों के लिये मुख्तार अंसारी का मृतक शरीर वोटबैंक साधने का “साधन” मात्र है।

✍️समाचार सम्पादक, हिंदी समाचार-पत्र,
उगता भारत

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