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कविता

हम मालिक अपनी मर्जी के

 

 

न मैडम के, न सर जी के 

हम मालिक अपनी मर्जी के। 

 

ज्यादा की कोई चाह नहीं
इसलिए कोई परवाह नहीं

जो बोया वो ही पाया है 

जो है वो खुद कमाया है 

सत्ता के किसी  दरबार में 

नहीं प्रार्थी हम किसी अर्जी के 

       हम मालिक अपनी मर्जी के…

 

 

कबीर तुलसी के वंशज हम 

मन की कहने का रखते दम 

सच कहते सच ही सुनते हैं
नहीं झूठी बातें बुनते हैं
जो कहते वो ही करते हैं

नहीं करते वादे फर्जी के

      हम मालिक अपनी मर्जी के … 

 

 

सम्मान सभी का करते हम 

पर नहीं किसी से डरते हम 

न किसी के तलवे चाटें

न किसी की जड़ हम काटें

जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है 

नहीं कायल हम खुदगर्जी के 

      हम मालिक अपनी मर्जी के ..

 

न मैडम के, न सर जी के 

हम मालिक अपनी मर्जी के। 

– डॉ. शैलेश शुक्ला, मझगवाँ, पन्ना, मध्य प्रदेश 

 

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