संकल्प से हो दीक्षा, दीक्षा से पुरस्कार।

बिखरे मोती

आत्मसुधार का क्रम क्या है?!-

संकल्प से हो दीक्षा,
दीक्षा से पुरस्कार।
श्रध्दा होवे गी अटल,
होगा आत्मसुधार॥2549॥

प्रभु- मिलन कैसे हो ?

जितना जड़ता में रहे,
उतना हरि से दूर।
जड़ता अहं को त्याग दे,
तो मिले नूर से नूर॥2550॥

ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक पवित्र कौन है ? :-

इस सारे ब्रहमाण्ड में,
केवल पवित्र है ज्ञान।
ज्ञानस्वरूप उस ब्रह्म का,
यही करावै भान॥2551॥

जीवन जीने का तरीका कैसा हो?

ब्रहमभाव में जी सदा,
अंह भाव को त्याग।
मानुष तन मुश्किल मिले,
जाग सके तो जाग॥2552॥

धर्म का पहला लक्ष्ण धैर्य है:

धैर्य को को मत छोडिये,
श्रध्दा का हो ह्रास।
धर्म घरै चिन्ता बढै,
मनुआ रहे उदास ॥2553॥

             विशेष

काव्य की रचना कब और कैसे होती है:-

चेतना की गहराई में,
जब उत्तरै कविराज ।
काव्य की धारा फूटती,
हृदय में बजे साज ॥2554॥

तत्त्वार्थ:- भाव यह है कि कवि जब अपनी चेतना की गहराई में उतरता है, तब उसे कविता का मोती मिलता है,तव जाकर नूतन काव्य की रचना होती है। इसके अतिरिक्त उसका मन या तो किसी राग में हो या वैराग्य में हो, तो उसके हृदय में विभिन प्रकार की सुकोमल स्वर लहरियाँ ध्वनित होती है जिनसे काव्य की धारा फूट पड़ती है। यह हदय की गहराई से निकली पुकार होती है जो जनमानस को स्पर्श करती है और गहरा प्रभाव छोड़ती है।

जिन्दगी जियो, तो ऐसी जियो

          विशेष शेर

जिन्दगी का संसार में,
ऐसा होआगाज।
लोग कहें तेरी मौत पर,
हँसा उड़ गया आज॥2555॥

        विशेष शेर

मेरा संकल्प ही मेरी ऊर्जा का स्रोत है-

बेदाग आया हूँ ,
बेदाग जाऊँगा।
प्रभु के द्वार जाना है,
प्रभु का प्यार पाऊँगा॥2556॥

व्यवहार का आधार क्या है –

हृदय होय पवित्र तो,
वाणी होवे पाक ।
आचरण की नीव ये,
यही जमावें धाक॥2557॥

जीवन जीने का सूत्र :-

जिस वाणी से हरि जपे,
मत कर उल्टे काम।
मन वाणी की पाक रख,
नेकी कर निष्काम॥2558॥

            विशेष शेर

जब प्रभु मिलन की प्यास बेचैन करती है, तो वाणी ख़ामोश होती है किन्तु हृदय बोल उठता है –

मुझे खामोश रहने दो,
मैं खामोश अच्छा हूँ ।
दर्श देना मुझे प्रभु !
मैं तेरा ही बच्चा हूँ॥2559॥
क्रमशः

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