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राजनीति

क्या सचमुच संसद पर हमला करने वाले क्रांतिकारी हैं?

राकेश अचल – विभूति फीचर्स
देश की संसद में 94 साल बाद वही सब कुछ हुआ जो संसद को जगाने के लिए 14 दिसंबर 2023 को किया गया। देश की संसद में दो युवकों ने दर्शक दीर्घा से छलांग लगाईं,पीला धुंआ किया और नारे लगाए। संसद में हंगामा करने वाले लड़के कोई क्रांतिकारी नहीं हैं लेकिन उनके मन में एक असंतोष था और आपको याद दिला दूँ कि ठीक इसी तर्ज पर 08 अप्रैल 1929 को तत्कालीन सेंट्रल असेम्बली में संसद में हंगामा किया गया था।
देश की संसद में 21 साल पहले भी आतंकी हमला हुआ था और उसी दिन बेरोजगार युवकों द्वारा हंगामा किया गया। हालाँकि ये सब संसद की सुरक्षा पर एक बड़ा सवाल है ,लेकिन असल मसला अलग है। ये युवक न किसी दल के सदस्य हैं और न एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं। पकडे गए चारों आरोपी एक समान विचारधारा के जरूर है। वे सोशल मीडिया के जरिये एक-दूसरे से सम्पर्क में बताये गए हैं। पकडे गए चार आरोपियों में एक लड़की नीलम भी है। ये सब अलग-अलग राज्यों के हैं। दो लड़के बाकायदा एक सांसद द्वारा बनवाये गए प्रवेश पत्र पर संसद में गये थे। उनके पास रंगीन धुंए की बोतल भी थी। वे संसद भवन में पहुँच गए लेकिन किसी भी स्तर पर उन्हें पकड़ा नहीं जा सका। ये लड़के न आतंकी हैं और न किसी राजनीतिक दल के सदस्य ,लेकिन इनके मन में सत्ता और व्यवस्था को लेकर भयानक असंतोष है। मुमकिन है कि इन चारों ने सुखिऱ्यों में आने के लिए भगतसिंह की तर्ज पर संसद में हंगामा करने की कोशिश की हो ,लेकिन ये कोशिश भी किसी फिदायीन दस्ते के दुस्साहस से कम नहीं थी।
दुस्साहस ने संसद की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। नए संसद भवन पर 1200 करोड़ रूपये से ज्यादा का खर्च हुआ है ,लेकिन नए भवन में सुरक्षा व्यवस्था बिलकुल लचर निकली। संसद की सुरक्षा व्यवस्था कम से कम चार स्तर की होती है यदि ये लड़के चारों चक्रों की सुरक्षा को भेद कर संसद भवन में पहुँच सकते हैं तो कोई आतंकी भी यहां आसानी से पहुँच सकता है। इस घटना के बाद जांच के लिए विशेष जांच दल बना दिया गया है। सुरक्षा व्यवस्था में लगे कुछ अधिकारी कर्मचारी निलंबित कर दिए गए हैं। मुमकिन है कि नए सिरे से सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद किया जाये।
संसद की सुरक्षा करते हुए इक्कीस साल पहले हम अपने 20 जवानों के प्राणों की आहुति दे चुके हैं।
संसद पर हमले की बरसी के दिन पुन: ऐसी कोशिश भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में दर्ज हो चुकी है। इसलिए बेहतर हो कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था की हर कोण से समीक्षा कर उसे और चाक-चौबंद किया जाये। (विभूति फीचर्स)

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