Categories
आतंकवाद

गुरपतवन्त पन्नू और खालिस्तानी आतंकवादी

डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

           अमेरिका का एक नागरिक  गुरपतवन्त पन्नू लम्बे अरसे से , वहीं बैठ कर , भारत में आतंकवादी गतिविधियों को विविध तरीक़ों से संचालित करने में लगा हुआ है । उसे अमेरिका और कनाडा दोनों ने ही अपने अपने देशों की नागरिकता दे रखी है । ऐसा भी कहा जाता है कि दोनों देशों की सरकारें उसे संरक्षण भी देती हैं ।  वह कनाडा के नागरिकों को साथ लेकर जनमत संग्रह करवा रहा है कि भारत को विभाजित करके क्या पाकिस्तान की तरह  एक  और नए देश का निर्माण किया जाना चाहिए या नहीं ? इस काम के लिए कनाडा की सरकार उसकी प्रत्यक्ष परोक्ष सहायता करती है ।  यह कुछ इसी प्रकार का मामला है कि भारत कि कोई संस्था , भारतीय नागरिकों से जनमत संग्रह करवाना शुरु कर दे कि टरांटो को कनाडा से अलग कर नया देश बनाना चाहिए या फिर कैलिफ़ोर्निया को यूएसए से अलग कर नया देश बनाना चाहिए या नहीं ? इस जनमत संग्रह में यदि भारत सरकार परोक्ष रूप से भी सहायता करना शुरु कर दे तो कनाडा या यूएसए इसको किस लिहाज़ से देखेगी ? पन्नू के खिलाफ भारत में आपराधिक मामले लम्बित हैं । पिछले कुछ दिनों से वह लोगों को धमकी दे रहा है कि वे एअर एंडिया से यात्रा न करें , इससे उनकी जान ख़तरे में पड जाएगी । इस प्रकार का एक कांड पहले हो भी चुका है जब कनाडा से भारत को आ रहा एअर इंडिया का एक जहाज़ कनाडा के आतंकवादियों ने आसमान में ही बम विस्फोट से उड़ा दिया था जिसमें 380 यात्री मारे गए थे । ऐसा माना जाता है कि कनाडा सरकार ने जाँच में अपराधियों की मदद ज्यादा की , उन्हें कटघरे में खड़ा करने में कम रुचि ली । अब पन्नू की इसी प्रकार की नई धमकियाँ आने पर पुराने रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने केस दर्ज कर जांच शुरु की तो अमेरिका के  एक अख़बार ने अपने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से ख़बर छापी है कि अमेरिका के एक अलगाववादी आतंकवादी गुरपतवन्त सिंह पन्नू को मारने की भारत की एक साज़िश को नाकाम कर दिया । अख़बार के अनुसार यह साज़िश जून महीने में नाकाम की गई थी और न्यूयार्क के एक न्यायालय में इस सम्बंधी एक केस भी दर्ज है । उसने यह भी ख़ुलासा किया कि अपराधी देश से बाहर चला गया है । आरोप लगभग वैसे ही हैं जैसे कुछ समय पहले कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने किसी निज्जर की हत्या को लेकर भारत पर लगाए थे । अन्तर केवल इतना ही है कि निज्जर के बारे में आरोप कनाडा के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगाए , लेकिन अमेरिका ने इसके लिए एक अख़बार को माध्यम बनाया ।
               दोनों मामलों में निरन्तरता को ध्यान में रख लेना चाहिए । वैसे कनाडा का यह भी कहना है कि निज्जर की हत्या में भारत की तथाकथित संलिप्तता के सबूत उन्हें भी अमेरिका मे ही मुहैया करवाए थे । यह अलग बात है कि लाख कहने पर भी कनाडा सरकार वे सबूत भारत सरकार को नहीं दे रही ताकि भारत उसकी जाँच करवा सके । लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि एअर इंडिया को लेकर धमकियाँ देने वाले पन्नू के पक्ष में अमेरिका सरकार अचानक उतनी उतावली क्यों हो गई है ? पन्नू की हत्या की तथाकथित साज़िश को नाकाम कर देने वाला मामला जो उनके अनुसार जून का है , अचानक एक अख़बार के माध्यम से नवम्बर में सार्वजनिक करने की जरुरत वाशिंगटन को क्यों पड़ी ? अब यह रहस्य किसी से छिपा नहीं है कि भारत में अलगाववादी व आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त कुछ लोगों को कनाडा व यूएसए सरकार अपने देश की नागरिकता प्रदान कर उनका संरक्षण करती है । जैसे ही अमेरिका गो आभास हुआ कि भारत सरकार अपने यहाँ के आपराधिक मामलों के लिए पन्नू के प्रत्यार्पण की माँ कर सकती है , उसने तुरन्त अपने यहाँ के न्यायालय में पन्नू का तथाकथित हत्या की साज़िश का मामला दर्ज कर भारत को ही दोषी ठहराने का काम शुरु कर दिया । कचहरी में जो मुक़द्दमा दर्ज किया गया है कि किसी गुप्ता ने पन्नू को मारने के लिए अमेरिका में किसी भाड़े के हत्यारे को पैसे दिए । लेकिन वह भाड़े का हत्यारा अमेरिका की पुलिस का ही आदमी था । उसने पुलिस को बता कर हत्या की यह योजना फ़ेल कर दी ।
               इस सारी तिलस्मी कथा से यह तो पता चल ही गया है कि पन्नू को अमेरिका और कनाडा सरकार पाल रही है और वह इन्हीं सरकारों के कहने पर भारत विरोधी गतिविधियों का संचालन करता है । यह सारा मामला कुछ कुछ सैयद गुलाम नबी फ़ाई जैसा बनता जा रहा है । पाठकों को ध्यान में ही होगा कि भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक सैयद गुलाम नबी फ़ाई ने अमेरिका में कश्मीर अमेरिकी परिषद बना रखी थी । वह इसके माध्यम से कश्मीर को लेकर भारत विरोधी प्रचार में लगा रहता था । उसके सैमीनारों में भारत के भी कुछ ख्याति प्राप्त पत्रकार जोश ख़रोश से हिस्सा लिया करते थे । फ़ाई को और उसकी परिषद को अमेरिका सरकार का पूरा संरक्षण प्राप्त था । लेकिन इसके साथ ही उसे पाकिस्तान सरकार से भी सहायता मिलती थी । अमेरिका की सरकार के लिए यह कोई रहस्य नहीं था । कश्मीर के मामले में उस समय अमेरिका भी पाकिस्तान के साथ ही था ।  भारत सरकार का मानना था कि फ़ाई कश्मीर में आतंकी गतिविधियों का भी संचालन करता है । अमेरिका सरकार को लगा कि भारत अमेरिका से  से फ़ाई के प्रत्यारपण की माँग कर सकता है ताकि उसकी जाँच की जा सके । ऐसी स्थिति में अमेरिका के लिए अपना बचाव करना मुश्किल हो जाता । इसलिए अमेरिका ने आनन फ़ानन में फ़ाई को गिरफ्तार कर लिया । उस पर अमेरिका की राजनीति को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान से पैसे लेने के आरोप लगाए । एक आरोप यह भी लगाया कि वह पीएच.डी नहीं है लेकिन उसके वाबजूद अपने नाम के आगे डा० लिखता है । कचहरी ने उसे अपने घर में ही रहने की शर्त पर ज़मानत दे दी । फाई ने तुरन्त सभी आरोपों को स्वीकार कर लिया । उसे कुछ साल की सजा हुई । लेकिन उसे सजा काटनी नहीं पड़ी । सरकार ने न्यायालय में कहा कि उसने घर में रहकर जो सजा काटी है वह भी उसे भी कुल सजा में से निकाल दिया जाए । स्वभाविक ही न्यायालय ने यह प्रार्थना स्वीकार कर ली । उसके बाद सरकार ने कहा कि फ़ाई ने जाँच में जरुरत से भी ज्यादा सहयोग किया है , इसलिए उसकी सजा और कम कर दी जाए । क़िस्सा कोताह यह कि सैयद गुलाम नबी फ़ाई को कुल मिला कर सोलह महीने सजा काटनी पड़ी , उसमें वे महीने भी शामिल थे जो उसने ज़मानत मिलने पर घर में रह कर काटे थे । जेल से बाहर निकल कर वह एक बार फिर कश्मीर को लेकर भारत विरोधी कामों में जुट गया था ।
                 लगभग वही तकनीक कनाडा और अमेरिका एक बार फिर भारत विरोधी आतंकवादियों को पालने पोसने और क़ानून के अनुसार भारत में दी जाने वाली सजा से बचाने के लिए , प्रयोग कर रहे हैं । गुरपतवन्त पन्नू का मामला कुछ इसी प्रकार का मालूम हो रहा है । भारत ने भी इस पूरे प्रकरण में जाँच शुरु कर दी है । लेकिन दुर्भाग्य है कि कनाडा इसमें सहयोग नहीं दे रहा है । कहा जाता है कि अमेरिका इसमें सहयोग करने के लिए तैयार है लेकिन पन्नू की गतिविधियों की कितनी जानकारी वह भारत को मुहैया करवाएगा , इसकी प्रतीक्षा करनी होगी । परन्तु इसे संयोग ही कहना चाहिए कि जिस समय अमेरिका भारत पर आरोप लगा रहा था कि पन्नू को मारने की साज़िश में भारत का कोई अनाम अधिकारी भी शामिल था , उसी समय उत्तरी कोरिया ने काफी गम्भीरता से कहा कि अमेरिका उसके राष्ट्रपति की हत्या की साज़िश रच रहा है । यह भी संयोग ही कहा जाएगा कि पन्नू की हत्या की साज़िश की सूचना भी एक अख़बार के माध्यम से ही लीक की गई और किम योंग को अमेरिका द्वारा मारने की कोशिश की सूचना भी एक अख़बार The Daily Beast  ने ही सार्वजनिक किए । पन्नू के मामले में तो अनाम भारतीय अधिकारी लिख कर अमेरिका कहानी लिख रहा है लेकिन किम योंग की हत्या की साज़िश में शामिल अमेरिकी अनाम तो नहीं हो सकता । कम से कम जो बाईडेन को तो उसका नाम पता ही होगा !

Comment:Cancel reply

Exit mobile version