प्रकाश पर्व दीपावली पर कुछ विचारणीय बातें

dhanteras festival greeting card with golden pot

आज प्रकाश पर्व दीपावली है। आप सभी सम्मानित साथियों को इस पर्व की बहुत सारी शुभकामनाएं।
हमने अपने इस प्रकाश पर्व की वैज्ञानिकता को कुछ प्रचलित परंपराओं के आवरण में इस प्रकार ढक दिया है कि इसका वास्तविक स्वरूप कहीं धूमिल सा हो गया है। तनिक याद कीजिए पुराने जमाने के उन लोगों को जो दिवाली मनाया करते थे पर एक दूसरे का सम्मान और ध्यान रखते हुए मनाया करते थे। सारा परिवार एक साथ बैठता था। घर परिवार के ही लोग नहीं गांव बस्ती के और मोहल्ले के लोग भी एक दूसरे के साथ मिलकर त्यौहार मनाया करते थे। तब लोगों के हाथों में मिठाई के डिब्बे नहीं होते थे, पर दिल मिठाई के डिब्बो से भरा होता था। किसी भी प्रकार के पुराने वैमनस्य और दुर्भाव के अंधेरे को दूर करने की उनकी परंपरा आज के उन लोगों की परंपरा से कहीं अधिक उत्तम थी जो हाथों में मिठाई का डिब्बा और दिलों में घुप्प अंधकार लेकर किसी के घर में प्रवेश करते हैं।
उस समय गरीबों को भी घर में बना हुआ पकवान दिया जाता था, आज के डिब्बे चेहरे देखकर दिए जाते हैं। जो लोग पहले ही छके हुए हैं उन्हें और छकाया जाता है। जिनको भूख नहीं है उनको और भी खिलाया जाता है। जिनको भूख है वह सामने हाथ फैलाते रह जाते हैं। अमीर के चिकने गलवा देखकर उनके प्रति सद्भाव का झूठा प्रदर्शन और गरीब के प्रति ऐसी उपेक्षा अर्थात दुर्भाव का गहरा अंधेरा, क्या दिवाली की पवित्रता को प्रकट करता है या फिर कुछ और कहता है ? सोचने की बात है।
जितनी देर हम कब्ज से मरते हुए लोगों को ढूंढने में लगाते हैं और उनके लिए बेकार के बोझ बने डिब्बों को देने की जेहमत मोल लेते हैं उतनी देर में या उतने पैसे से यदि हम गरीबों का कुछ कल्याण कर दें तो कितना अच्छा रहेगा ?
अपने परिवार के साथ बैठें । देखें कि कहीं हमारे दिल में माता-पिता के प्रति, अपनी संतान के प्रति या भाई बहन के प्रति नफरत का अंधेरा तो नहीं छाया हुआ है ? यदि छाया हुआ है तो सारी गांठों को खोलने का काम करें। प्रकाश को विस्तार पाने दें। घर के प्रत्येक सदस्य से कहें कि वह नफरत की अंधियारी कोठरी को खोल दें और उसमें प्रेम का एक दीपक जलाएं। यही भाव पड़ोसियों के प्रति आए। फिर वसुधा पर रहने वाले मानव मात्र के प्रति आए ,….तो कोई बात बने।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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