महाभारत की शिक्षाप्रद कहानियां अध्याय – ७ क गौओं का अपहरण और बृहन्नला

( बात उस समय की है जिस समय पांडव राजा विराट के यहां अज्ञातवास भोग रहे थे। उस समय तक कीचक का अंत हो चुका था। उसने अपने जीते जी कई पड़ोसी राजाओं को आक्रमण कर करके बड़ा दु:खी किया था। उन्हीं में से एक त्रिगर्त देश के राजा सुशर्मा थे । उन्होंने हस्तिनापुर की राज्यसभा में यह प्रस्ताव रखा कि कीचक के रहते हमको कई बार कई प्रकार के अपमानों को सहना पड़ा है। उस क्रूर और क्रोधी दुष्टात्मा के संसार से जाने के पश्चात राजा विराट का गर्व भंग हो चुका है। उसने राज्यसभा में अपनी योजना प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस समय कौरवों और कर्ण को इस देश पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया जाए । उसकी सोच थी कि राजा विराट के कोष में पड़े अपार धन को वह प्राप्त कर लेगा और उसके संपूर्ण राष्ट्र को कौरवों के साथ मिलकर बांट लिया जाएगा। उसी ने यह प्रस्ताव रखा कि राजा विराट के यहां पर बड़ी संख्या में गौएं हैं । हम अपनी योजना को फलीभूत करने के लिए उसकी गायों का अपहरण कर लेंगे।
हस्तिनापुर की राज्यसभा में प्रस्तुत किए गए इस प्रस्ताव का कर्ण ने समर्थन किया और दुर्योधन को विराट नगरी पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। निर्णय लिया गया कि कौरवों के आक्रमण से पहले सुशर्मा ही राजा विराट की नगरी पर आक्रमण करेगा । तब उसके एक दिन पश्चात हम लोग पूर्णतया संगठित होकर मत्स्य नरेश की समृद्धिशाली राजधानी और राज्य पर हमला कर देंगे। – लेखक )

कीचक वध के पश्चात कौरवों की राज्यसभा में यह चर्चा भी जोरों पर थी कि कीचक जैसे महाबली का वध केवल भीम ही कर सकता है। दुर्योधन भी इसी मत का था कि विराट नगरी में जो कुछ हुआ है, वह निश्चय ही इस बात का प्रमाण है कि पांडव अपने अज्ञातवास के काल में वहीं पर छिपे हुए हैं। उसने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उस समय यह कह भी दिया था कि जिस सैरंध्री के लिए कीचक को मारा गया है वह सैरंध्री न होकर द्रौपदी है।
कीचक वध की खबर सुनकर दुर्योधन कुछ चिंतित था। वह इस बात का पता लगा लेना चाहता था कि विराट नगरी में जो कुछ भी हुआ है उसके पीछे किसका हाथ है ? वह जानता था कि पांडवों के अज्ञातवास के एक वर्ष के अब कुछ दिन ही शेष हैं। यदि वह जीवित बच गए तो उसके लिए भविष्य में बड़ी चुनौती खड़ी कर सकते हैं ।
दुर्योधन की इस प्रकार की चिंता को मिटाने का प्रयास करते हुए कर्ण ने राज्यसभा में मंत्री परिषद के समक्ष चल रहे विचार विमर्श के दौरान कहा कि हम शीघ्र ही गुप्तचर भेजकर पांडवों की सही जानकारी लेंगे। उन सबने आगे बढ़ने का निर्णय लिया। यद्यपि द्रोणाचार्य ने उस समय कहा कि “पांडव शूरवीर ,विद्वान, बुद्धिमान, जितेंद्रिय ,धर्मज्ञ, कृतज्ञ और अपने बड़े भाई धर्मराज की आज्ञा का पालन करने वाले हैं। ऐसे धीर- वीर – गंभीर महापुरुषों का अंत किया जाना बहुत सरल नहीं है। मैं जानता हूं कि वे लोग एक अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे नष्ट नहीं हो सकते। इस समय जो कुछ भी करना है , वह सोच समझकर करने की आवश्यकता है।”
इस अवसर पर भीष्म ने कहा कि “धर्मराज युधिष्ठिर इस समय जहां भी होंगे वहां के लोग न्यायशील, धर्मात्मा, सत्यवादी, मधुर भाषी होंगे । वहां पर गायों की बहुलता होगी। वहां का वातावरण शांत होगा। वहां पर बारिश समय पर हो रही होगी। यज्ञ आदि के पवित्र कार्यों में लोग लगे होंगे। वेद मंत्रों की गूंज सर्वत्र हो रही होगी।”
इस पर दुर्योधन ने कहा कि “भीष्म पितामह जो कुछ कह रहे हैं वह युक्तियुक्त जान पड़ता है । क्योंकि ऐसे लक्षणों के समाचार विराट नगरी से ही मिल रहे हैं। मैं समझता हूं कि इस समय हमें यथाशीघ्र मत्स्य देश पर आक्रमण करना चाहिए।”
ऐसी पृष्ठभूमि में कौरवों ने मत्स्य देश पर आक्रमण करने का निर्णय लिया। अपनी कार्य योजना को सिरे चढ़ाने के लिए कौरवों की ओर से निर्णय लिया गया कि त्रिगर्तराज सुशर्मा पहले मत्स्य देश पर आक्रमण करेंगे, फिर एक दिन पीछे हम लोग भी संगठित होकर मत्स्य नरेश के समृद्धिशाली राज्य पर हमला कर देंगे।
जिस प्रकार विचार किया गया था, उसी प्रकार त्रिगर्त नरेश सुशर्मा ने मत्स्यराज विराट की राजधानी पर हमला कर दिया। त्रिगर्त नरेश को उम्मीद थी कि इस युद्ध में मत्स्यराज का पूर्णतया नाश हो जाएगा और वह कीचक के समय में किए गए अपने अपमान का प्रतिशोध ले लेगा, परंतु परिणाम उसकी आशा के अनुकूल नहीं आये। त्रिगर्त नरेश के हमला के बारे में मत्स्यराज विराट पहले से ही सावधान हो चुके थे। यही कारण था कि वह संभावित हमले के विषय में पूरी तैयारी कर बैठे थे। इसके अतिरिक्त युधिष्ठिर आदि का सहयोग भी उन्हें इस अवसर पर प्राप्त हुआ। यद्यपि राजा विराट यह नहीं जानते थे कि युधिष्ठिर आदि उनके यहां पर ही ठहरे हुए हैं। युद्ध के समय एक समय ऐसा भी आया जब सुशर्मा ने महाबली राजा विराट को रथहीन करके पकड़ लिया और अपने रथ पर बैठाकर लेकर चल दिया। जब इस अपमानजनक स्थिति को युधिष्ठिर ने देखा तो उन्होंने भीमसेन से कहा कि “यथाशीघ्र राजा विराट को त्रिगर्त नरेश की कैद से छुड़ाओ।”
तत्पश्चात भीमसेन ने सुशर्मा को चुनौती दी और उसके पास पहुंचकर प्रचंड बाणों से उसके घोड़ों को मार डाला । साथ ही उसके रक्षकों को भी मार डाला और उसके सारथी को भी रथ से नीचे गिरा दिया। इसी समय राजा विराट सुशर्मा के रथ से कूद पड़े और उसकी गदा लेकर उसी की ओर दौड़े । भीम ने बुरी तरह घायल हो गए सुशर्मा को रस्सी से बांधकर धर्मराज युधिष्ठिर के सामने लाकर पटक दिया। धर्मराज युधिष्ठिर ने भीम से कहकर सुशर्मा को कैद से मुक्त करा दिया। इसके पश्चात राजा विराट ने धर्मराज युधिष्ठिर और भीमसेन का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि यह जीत केवल आपके कारण ही मुझे मिल सकी है।
इस प्रकार मत्स्यराज विराट ने त्रिगर्त नरेश सुशर्मा को पराजित कर दिया।
जब राजा विराट और सुशर्मा का युद्ध चल रहा था तभी पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार दुर्योधन ने अपनी बड़ी सेना लेकर मत्स्यराज पर दूसरी ओर से हमला कर दिया। मत्स्यराज के पहले से ही युद्ध में सम्मिलित होने के कारण दूसरी ओर से दुर्योधन के द्वारा किए गए इस हमले के कारण बहुत बड़ी चुनौती उसके सामने आ खड़ी हुई थी। राजा की अनुपस्थिति में उसके पुत्र उत्तर कुमार ने कौरवों की सेना का सामना करने का संकल्प लिया। पर उसके सामने समस्या थी कि उसके पास कोई अच्छा सारथि नहीं था। उसके द्वंदभाव को समझ कर सैरंध्री के नाम से काम कर रही द्रौपदी ने आगे आकर कहा कि “आपके दरबार में यह जो बृह्न्नला नाम का व्यक्ति है, यह पूर्व में अर्जुन का सारथी रहा है । अच्छा हो कि आप इसे अपने साथ सारथी के रूप में लेकर जाएं।”
उत्तर कुमार ने द्रौपदी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर युद्ध के लिए प्रस्थान किया। प्रस्थान करते समय राजकुमारी उत्तरा ने बृहन्नला से कहा कि “तुम युद्ध भूमि में आए हुए भीष्म ,द्रोण आदि प्रमुख कौरव वीरों को जीतकर हमारी गुड़ियों के लिए उनके महीन कोमल और रंग-बिरंगे सुंदर-सुंदर वस्त्र लेकर आना।”
सारथी बने अर्जुन जानते थे कि दुर्योधन की इस सेना में कैसे-कैसे महारथी ,धनुर्धर और वीर योद्धा होंगे ? जिनके सामने उत्तर कुमार क्षण भर भी नहीं रुक पाएगा। यही कारण था कि अर्जुन इस बात को समझकर सारथी के रूप में चले थे कि यदि समय प्रतिकूल हुआ तो उन्हें स्वयं ही युद्ध क्षेत्र में आज गांडीव का पराक्रम दिखाना होगा।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( यह कहानी मेरी अभी हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक “महाभारत की शिक्षाप्रद कहानियां” से ली गई है . मेरी यह पुस्तक ‘जाह्नवी प्रकाशन’ ए 71 विवेक विहार फेस टू दिल्ली 110095 से प्रकाशित हुई है. जिसका मूल्य ₹400 है।)

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