फल पड़े खुशबू उठै, खग आकै मंडरायं।

बिखरे मोती

गुणवान व्यक्ति के गुणो की जब खुशबू फैलती है,तो गुण- ग्राहक स्वयं उसे ढूंढ लेते हैं

फल पड़े खुशबू उठै,
खग आकै मंडरायं।
माली सींचे सौ घड़ा,
स्वाद विहम ले जाय॥2452॥
खग,विहग अर्थात पक्षी

कुल की मर्यादा की रक्षा सर्वदा प्राणपण से करो

इज्जत एक बार जाए तो,
लौटकै फिर ना आय।
खानदान की पाग में,
गहरा दाग लगाए॥2453॥

संसार में योग्यता से पद और सम्मान मिलता है

अशर्फी की कीमत कभी,
घटै न बीच बाजार।
गुणी – ज्ञानी इंसान को,
आदर दे संसार॥2454॥

प्रभुता का रक्षण और वर्धन कौन करता है

प्रभुता का पाना कठिन,
रक्षण टेढ़ी खीर।
रक्षण वर्धन वो करे,
जो गुणी-ज्ञानी धीर॥2455॥

धीर अर्थात धैर्यवान

प्रभुता का रक्षण और वर्धन कौन नहीं कर सकता

ओछो को प्रभुता मिले,
टेढ़ो-टेढो जाय।
ज्यों गुब्बारा फूलकै,
देखत ही फट जाय॥2456॥

सृष्टि में आकर्षण और विकर्षण निरन्तर चलता रहता है-

आकर्षण के संग में,
विकर्षण का दस्तूर।
ज्यों बसंत के बाद में,
पतझड़ आए जरूर॥2457॥

भवसागर पार उतारने का एक ही रास्ता –

राग -द्वेष दो लहर है,
भवसागर में डुबोय।
राग -द्वेष से मुक्त हो,
ओ३म – नाम में खोय॥2458॥

हालात को देखते हुए नियमों में संशोधन करना हितकर होता है-

नीति की भी उम्र हो,
फिर असर घट जाय।
परिष्कार करते रहो,
राखो लाज बचाय॥2459॥

कस्तूरी और प्रेम कभी छिपाय नहीं छिपते –
इश्क – मुश्क छिपते नहीं,
लाख करो किन कोय।
ज्यों बादल में दामिनी,
चमककै प्रकट होय॥2460॥

मनुष्य का जीवन गुलाब के फूल की तरह क्षणभगुर है –

गुलाब खिलै ज्यों डाल पर,
मुरझावै झड़ जाय।
त्यों मानुष की जिन्दगी,
पल-पल ढलती जाय॥ 2461॥
क्रमशः

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