कभी सुहाना मौसम भी हुआ करता था मंगल पर

एक दौर था जब मंगल ग्रह पर विशाल झीलें, बहती नदियां और ऐसा नम मौसम था जिसमें जीवन की क्षमता थी। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह निष्कर्ष नासा के मार्स रिकनसेंस अंतरिक्ष यान से मिले आंकड़ों पर आधारित है। विज्ञान पत्रिका नेचर के सत्रह जुलाई को प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि मंगल ग्रह के प्राचीन पठारों वाले विशालकाय क्षेत्र की मिट्टी में अनेक खनिज पाए जाते हैं जिसका सीधा सा अर्थ पानी की मौजूदगी है। इस प्रकार के क्षेत्र मंगल ग्रह के आधे से अधिक हिस्से में पाए गए हैं। ग्रह के इतिहास में आए शुष्क दौर में ज्वालामुखी से निकले लावा में मिट्टी से भरे क्षेत्र दब गए लेकिन बाद में बने गड्ढों के कारण यह मिट्टी मंगल ग्रह पर हजारों जगह उभर कर दिखाई देती है। अध्ययन के लिए मिले आंकड़ों को अंतरिक्ष यान में लगे काम्पैक्ट रिकनसेंस इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर से लिया गया है। जान हापकिंस यूनिवर्सिटी में एप्लाइड फिजिक्स लेबोरेटरी के मुख्य जांचकर्ता स्काट मुर्शी ने कहा- इन नए परिणामों का सबसे बड़ा हैरान करने वाला तथ्य यह है कि मंगल ग्रह का पानी कितने लंबे समय तक मौजूद रहा। और यह भी कि यहां पर नम वातावरण कितना ज्यादा था। अनुसंधानियों का कहना है कि मिट्टी के ढेलों के आकार वाले खनिज चट्टानों और पानी के बीच हुई क्रिया प्रतिक्रिया की कहानी बयां करते हैं। इन ढेलों को फिलोसिलिकेट कहते हैं। यह ढेले 4.6 अरब से लेकर 3.8 अरब साल पहले के समय की जानकारी देते हैं। यह वही अवधि है जब हमारे सौर तंत्र की शुरुआत हुई थी। उस समय पृथ्वी चंद्रमा और मंगल पर धूमकेतुओं और उल्काओं की वर्षा हो रही थी। पृथ्वी की भूगर्भीय गतिविधियों के कारण यहां मौजूद उस दौर की चट्टानें नष्ट हो गई हैं। ये चट्टानें चंद्रमा पर मौजूद हैं लेकिन वे कभी पानी में नहीं भीगीं। मंगल ग्रह पर मौजूद फिलोसिलिकेट युक्त चट्टानों में पानी वाले दौर का अनूठा रिकार्ड मौजूद है जो शुरुआती सौर प्रणाली में जीवन के लिए संभवत: उपयुक्त था। पत्रिका नेचर में मुख्य लेखक और ब्राउन यूनिवर्सिटी के दल के एक सदस्य जान मस्टर्ड ने कहा- मंगल की प्राचीन पपड़ी में पाए गए खनिजों में नम वातावरण की तमाम किस्में पाई जाती हैं। ज्यादातर स्थानों पर पानी के कारण चट्टानों में मामूली फेरबदल हुआ है लेकिन उन स्थानों पर पाई जाने वाली चट्टानों में बेहद अंतर साफ दिखाई देता है जहां पानी मिट्टी और चट्टानों के बीच से होकर बहुतायत में बहता था। यह तथ्य बेहद रोमांचक है क्योंकि ऐसे दर्जनों स्थान मिले हैं जहां भविष्य के अभियान किए जा सकते हैं। 

इन अभियानों के जरिए पता लगाया जा सकता है कि क्या कभी मंगल पर आबादी बसती थी और यदि ऐसा था तो उस प्राचीन जीवन के चिन्हों की खोज की जा सकती है।

नेचर जियोसाइंस के दो जून को प्रकाशित अंक में एक अन्य अध्ययन के अनुसार, मंगल ग्रह पर नम वातावरण लंबे समय तक रहा। ढेलों के बनने के लाखों साल बाद नदियों ने इन्हें पठारों से नीचे गिरा दिया और वे बहते-बहते एक डेल्टा में आकर इक_ा हो गए जहां नदी एक झरने में तब्दील हो जाती थी जो आकार में कैलिफोर्निया की ताहो झील से बड़ी नदी थी। इसका व्यास लगभग 25 मील था। ब्राउन के दल के एक अन्य सदस्य बेथानी इलमैन का कहना है कि नदियों के रास्ते में प्राचीन ढेलों का जमावड़ा यह प्रदर्शित करता है कि नदियों में हजारों साल तक पानी बहता रहा होगा।

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