Categories
राजनीति

आम चुनाव में क्या भाजपा के हिन्दुत्व पर भारी पड़ेगा विपक्ष का नया मण्डल फॉर्मूला

अजय कुमार

जातिवाद के नाम पर लोग अलग-अलग दलों के लिए वोट करने लगे थे। पिछड़े मुलायम के साथ चले गए और दलित मायावती के साथ हो लिए। भाजपा मात्र अगड़ों की पार्टी बनकर रह गई, जिनकी समाज में भागीदारी काफी कम थी।
भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में हिन्दुत्व के घोड़े पर सवार होकर विजय पताका फहराने का सपना पाले हुए है। यह वही हिन्दुत्व है जिसको बीजेपी और आरएसएस ने 80-90 के दशक में अयोध्या में हिन्दुओं के कण-कण में विराजमान प्रभु श्री राम लला के मंदिर निर्माण की सौगंध खाकर कांग्रेस के खिलाफ ‘धार’ दी थी। तब से आज तक हिन्दुत्व के सहारे बीजेपी का विस्तार होता गया और कांग्रेस सिकुड़ती गई। कांग्रेस की कमी को पूरा करने के लिए कई क्षेत्रीय क्षत्रपों ने विभिन्न राज्यों में अपना राजनैतिक विस्तार कर लिया। इसमें बिहार में लालू यादव-नीतीश कुमार, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह-मायावती जैसे पिछड़े और दलित नेताओं का उभार हुआ। इन्होंने कुछ वर्षों में ही बीजेपी की हिन्दुत्व वाली राजनीति की हवा निकाल कर रख दी। कोई पिछड़ों और मुसलमान वोट बैंक के तो कोई दलित-मुस्लिम वोट बैंक के सहारे सत्ता की सीढ़ियां चढ़ा। यह सब अपने-अपने राज्यों में मुख्यमंत्री तक बने। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि 1992 में कथित बाबरी मस्जिद ढांचा विध्वंस के बाद हिन्दुत्व की राजनीति हाशिये पर जाना शुरू हो गई थी, वहीं अगड़े-पिछड़ों-दलित और मुसलमान वोट बैंक की राजनीति आगे बढ़ना शुरू हो गई थी।

जातिवाद के नाम पर लोग अलग-अलग दलों के लिए वोट करने लगे थे। पिछड़े मुलायम के साथ चले गए और दलित मायावती के साथ हो लिए। भाजपा मात्र अगड़ों की पार्टी बनकर रह गई, जिनकी समाज में भागीदारी काफी कम थी। भाजपा और कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही थीं, लेकिन कांग्रेस का उतना बुरा हाल नहीं था, जितना बीजेपी का हो रहा था। इसीलिए कांग्रेस 2014 तक केन्द्र की सत्ता में रही या इर्दगिर्द घूमती रही। यह सिलसिला 2014 में केन्द्र की राजनीति में मोदी युग की शुरुआत के साथ थम गया। मोदी का सिक्का ऐसा चला कि जातीय राजनीति और उसके पुरोधा दोनों हाशिये पर चले गए, लेकिन जातिवादी राजनीति करने वाले कहीं न कहीं अपने दिल में यह मंसूबा जरूर पाले रहे कि एक न एक दिन उनकी जातिवादी हांडी फिर राजनीति के चूल्हें पर चढ़ेगी। इसीलिए इसके प्रयास भी होते रहे। इसके लिए गैर बीजेपी दलों ने जातिगत जनगणना कराये जाने की मांग को हवा देना शुरू कर दिया, इसमें सबसे खास बात यह रही कि जिस कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेता और स्वयं पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी एवं राजीव गांधी जातिवादी जनगणना को देश के लिए खतरा बताते थे, उसी खतरे को राहुल गांधी ने कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने का हथियार बना लिया है।

कौन सही था, कौन गलत यह तो समय बतायेगा, परंतु अगले वर्ष होने वाले लोकसभा में जिस तरह से विपक्ष को लग रहा है कि वह जातिगत जनगणना की सियासत के सहारे बीजेपी को पटकनी दे देगा, वह एक घातक सोच है, भले ही इससे इंडिया गठबंधन को सत्ता हासिल हो जाये, मगर देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जिस तरह से जातिगत जनगणना की आड़ में कुछ लोग सनातन धर्म को शर्मसार कर रहे हैं, वह इसकी बानगी भर है। यह सच हो सकता है कि सनातन धर्म में ऊंच-नीच का भेदभाव दिखाई देता हो, लेकिन यह सनातन धर्म नहीं, हिन्दू समाज की कमी है। वर्ना उन धर्मों से तो सनातन धर्म काफी सही है जहां धर्म की आड़ में खून की होली खेली जाती है। आतंकवाद को पालापोसा जाता है, लेकिन वोट बैंक की सियासत के चलते इस पर कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं होता है।?

बेहद शर्मनाक है कि जहां भाजपा अपने सबसे बड़े और धारदार सियासी हथियार हिंदुत्व को फिर से आजमा कर कमंडल राजनीति को गरम करने में लगी है, तो वहीं उसकी काट के लिए सामाजिक न्याय के योद्धा राजद, जद (यू) और समाजवादी पार्टी हिंदू ध्रुवीकरण की काट के लिए जातीय जनगणना और रामचरित मानस विवाद के जरिए पिछड़ों के ध्रुवीकरण की मंडल राजनीति का दांव खेलने में जुट गए हैं। बात बीजेपी की कि जाए तो दरअसल भारतीय जनता पार्टी और पूरा संघ परिवार दोहरी रणनीति पर काम कर रहा है। एक सरकार और पार्टी की खुली और अधिकारिक रणनीति और दूसरी गैर पार्टी संगठनों यानी संघ परिवार के आनुषांगिक संगठनों के जरिए छुपी हुई समानांतर रणनीति। इसके तहत संघ परिवार से जुड़े विभिन्न गैर भाजपा संगठनों द्वारा लगातार हिंदुत्व और हिंदू ध्रुवीकरण के मुद्दे को गरम करते हुए संघ परिवार की कमंडल राजनीति को आगे बढ़ाते रहना होगा। इसीलिए एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके मंत्री और भाजपा, केंद्र सरकार के पिछले करीब दस साल के कामकाज व उपलब्धियों का जोरशोर से प्रचार प्रसार करके जनता को बताएंगे कि किस तरह भारत की असली विकास यात्रा 2014 से शुरू हुई है।

दूसरी रणनीति के तहत जनवरी 2024 तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पूरा होने का अतिशय प्रचार, गोवध और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर लगातार माहौल गरम रखना, कुछ साधू संतों के द्वारा भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान और विहिप, बजरंग दल जैसे संगठनों और भाजपा के भी हिंदुत्ववादी सांसदों, नेताओं द्वारा इसका समर्थन करते हुए हिंदुओं में यह संदेश देना कि जिस तरह 2014 के बाद से लगातार केंद्र और राज्यों की भाजपा सरकारों ने लगातार हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया है, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों को हल किया है, उसी तरह अगर भारत को हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए हिंदू राष्ट्र बनाने की तरफ आगे ले जाना है तो 2024 में भाजपा और नरेंद्र मोदी की सरकार को और भी ज्यादा बड़े बहुमत से जिताने की जरूरत है।

उधर, कांग्रेस ने कर्नाटक में मिली जीत से उत्साहित होकर कमंडल और मंडल से इतर भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दों का एक बंडल तैयार किया है, जिसमें महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की समस्या, छोटे उद्योगों, मझोले व्यापार और दुकानदारों की तकलीफ, मजदूरों की रोजमर्रा की दिक्कतों और सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना और कार्पोरेट भ्रष्टाचार के जरिए अमीर गरीब की गहराती खाई जैसे मुद्दे शामिल हैं। अब देखना यह है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version