मंत्र, तंत्र साधना,जादू टोना और अंधविस्वास रहस्य* भाग- 3

डॉ डी के गर्ग

आइये विस्तार से जानें

क्योंकि इस प्रकार के अन्धविश्वास की संख्या हजारों में है,सभी का विश्लेषण संभव नही है,इसके लिए स्वयं की बुद्धिमत्ता और समझ जरूरी है।
यहां हम कुछ विशेष अंधविस्वासो का उल्लेख करेंगे।
१. मंत्र साधना :
वेद मंत्रों का जाप कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इसका स्थान नकली अर्थ रहित मंत्रो ने और उनके अशुद्ध उच्चारण ने ले लिया है।अधिकांश मंत्र जाप करने वालो को ये भी मालूम की क्या मंत्र पाठ कर रहे है।

अधिकांश परिवार किसी पण्डे पुजारी को इस कार्य के लिए एक रकम देकर तय करते है की वह लाख गायत्री मंत्र, ,गरुड़ पुराण का पाठ या महामृत्युंजय मंत्र पथ कर देगा ताकि उनके कष्ट दूर हो जाये और बिगड़े काम बन जाये ,बुरी आत्माओं से पीछा छूटे आदि लालच इस मंत्र साधना से जुड़े होते है।

साधना किसे कहते है पहले ये समझ ले। मंत्र साधना एक ऐसा शब्द है जो किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए या कार्य को पूर्ण करने या उसके समीप तक पहुंचने के लिए श्रम को इंगित करता है। साधना शब्द के प्रयोग बहुत किया जाता है जैसे योग साधना, विपसना साधना, तंत्र साधना, मंत्र साधना,ईश्वर साधना आदि।कुछ अन्य अर्थों में विद्यार्थी के विद्या अध्ययन को भी विद्या साधना कहा जाता है।
नदी पर पुल बनाने को श्रम साधना, योग अभ्यास को योग साधना, मंत्र के सही व्याकरण के साथ उच्चारण का अभ्यास करना, कंठहस्थ करना,उनके भावार्थ आदि को मंत्र साधना कहते है।आर्यवर्त की परंपरा में श्रावण मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर पौष मास की पूर्णिमा तक लगभग 4.5 मास का यह स्वाध्याय पर्व होता था ।
योगदर्शन में भी स्वाध्याय की महिमा का वर्णन करते हुए महर्षि पतञ्जलि ने लिखा है―
तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः । ―(योग० २ध्१)
तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान इनको क्रियायोग कहते हैं। क्रियायोग का अर्थ है योग के साधन। इन तीनों में एक ‘स्वाध्याय‘ है
मनु महाराज ने भी मनुस्मृति में स्वाध्याय पर बहुत बल दिया है। गृहस्थ के लिए मनु महाराज ने पाँच महा यज्ञों का विधान किया है। उन पाँच में से पहला यज्ञ ब्रह्मयज्ञ है― ब्रह्मयज्ञ केवल हमरी संक्षिप्त 19 या 20 मंत्रों वाली संध्या नहीं है। मनु स्मृति कहती है – अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः .. । ―(मनु० ३ध्७०), अर्थात् स्वाध्याय, वेद का अध्यापन , सन्ध्या और योगाभ्यास ब्रह्मयज्ञ कहलाते हैं। मनु महाराज ने नित्य कर्मों और स्वाध्याय में किसी प्रकार की छुट्टी भ्वसपकंल नहीं मानी है― और कहा है — अनध्याय तो निन्दित कर्मों में होना चाहिए। इसी प्रकार शतपथ ब्राह्मण का वचन है – “स्वाध्यायो वै ब्रह्मयज्ञ”
ऋग्वेद के पहले मण्डल के 38 वें सूक्त का 14वां मंत्र स्वयं वेद के पढ़ने और पढ़ाने का उपदेश देता है
मि॒मी॒हि श्लोक॑मा॒स्ये॑ प॒र्जन्य॑इव ततनः । गाय॑ गाय॒त्रमु॒क्थ्य॑म् ॥―(ऋ० १ध्३८ध्१४)
इस का पद पाठ इस प्रकार होगा-
मि॒मी॒हि । श्लोक॑म् । आ॒स्ये॑ । प॒र्जन्यः॑ऽइव । त॒त॒नः॒ । गाय॑ । गा॒य॒त्रम् । उ॒क्थ्य॑म् ॥
ऋषि दयानंद इसका भाष्य करते हुए लिखते है ऋ हे विद्वान् मनुष्य ! तू (आस्ये) अपने मुख में (श्लोकम्) वेद की शिक्षा से युक्त वाणी को (मिमीहि) निर्माण कर और उस वाणी को (पर्जन्य इव) जैसे मेघ वृष्टि करता है वैसे (ततनः) फैला और (उक्थ्यम्) कहने योग्य (गायत्रम्) गायत्री छन्दवाले स्तोत्ररूप वैदिक सूक्तों को (गाय) पढ़ तथा पढ़ा ॥१४ ॥
इस मंत्र द्वारा वेद मनुष्य को प्रेरणा दे रहा है कि तू वेदवाणी का स्वाध्याय कर। वेदवाणी के स्वाध्याय से जो ज्ञान तुझे प्राप्त हो, तू उसे ऐसे फैला जैसे बादल वर्षा फैलाता है।अर्थात् ज्ञान को अपने तक ही सीमित न रखें बल्कि उसको लोगों में फैलायें, प्रचार करें।एक लोकोक्ति है “ सरस्वती के भंडार की बड़ी विचित्र बात, ज्यों ज्यों इस को खर्च करो त्यों त्यों बढ़ती जात। “
2. तंत्र साधना
वर्तमान मशीनी युग एक दो माह -वर्ष -या किसी एक दशक की दैन नहीं है बल्कि इसके लिए हमारे शिक्षकों और वैज्ञानिको ने लम्बे समय से अथक परिश्रम किया है ,पूरा जीवन विज्ञानं की खोज के लिए दे दिया और परिणाम स्वरूप एक से बढ़कर एक मशीन तैयार की ताकि मानव जीवन सुलभ हो , और बढ़ती हुई जनसँख्या को सभी आवश्यक वस्तुए उपलब्ध हो सके। इस अलोक में तकनीकी योग्यता के द्वारा मशीन चालन का ज्ञान, तकनीकी का और अधिक विकास करना ही तंत्र साधना कहलाता हैं।
तंत्र ( संस्कृत : तन्त्र ) का शाब्दिक अर्थ है “करघा, ताना, बुनाई” इसके अतिरिक्त अन्य अर्थ भी है जैसे की “फैलाना”, “फैलाना”, “बाहर निकालना”, “बुनाई”, “प्रदर्शन”, “आगे बढ़ाना”, और ” लिखें”। इसलिए, विस्तार से, इसका अर्थ “प्रणाली”, “सिद्धांत” या “कार्य” भी हो सकता है। तंत्र शब्द आध्यात्मिक और सामाजिक कई अर्थो में प्रयोग होता है जैसे की प्रजातंत्र ,जनतंत्र ,तंत्र। यहाँ तंत्र मन्त्र का वास्तविक अर्थ है की वे मंत्र जो ईश्वर से प्राणी मात्र की रक्षा से जुड़े हुए है।
भारतीय परम्परा में किसी भी व्यवस्थित ग्रन्थ, सिद्धान्त, विधि, उपकरण, तकनीक या कार्यप्रणाली को भी तन्त्र कहते हैं।और जो इसमें निपुण है और इस विद्या का विस्तार काने वाला विद्वान हो उसको तांत्रिक कह सकते है।जैसे यंत्र विद्या में पारंगत को यांत्रिक कहते हैं ठीक उसी प्रकार तंत्र ,विद्या ने पारंगत को तांत्रिक कहते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य से ये स्थान मुर्ख ,पाखंडियो ने ले लिया और इस कार्य का मूल खो गया और धर्म के नाम पर लूट और आडंबर का व्यापार सुरु कर दिया।
मान लीजिए एक तांत्रिक के पास 10 लोग अपनी अपनी इसी प्रकार की समस्याएं लेकर पहुंचते हैं किसी को एग्जाम में टॉप करना है किसी को विदेश जाना है किसी को सौतन से छुटकारा चाहिए किसी को बेटा चाहिए अब ये दसों लोग तांत्रिक से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए जादू टोना करवाते हैं ! और उन 10 मे से ५ या 6 का काम नही होता तो वो उसके पास नही जाते लेकिन ३ या 4 का काम किसी संयोग वस हो गया तो वे 3 या 4 लोग इसका खुब प्रसार करेंगे कि वहा जाने से ऐसा हुआ आप वहा जाये सब ठिक होगा मेरा भी हुआ यही लोग खुब प्रसार करते है जिसके कारण इन्का 10 गुणा ग्राहक ओर बढ जाता है ।
यही है जादू टोने टोटके की सफलता का रहस्य और यही फॉर्म्युला मनोकामना पूरी करने वाले धर्म के सभी अड्डो पर भी लागू होती है इसी लिए धर्म के धंधेबाजों का ये धार्मिक धंधा कभी मंदा नही पड़ता जब तक लोगो मे तार्किक समझ नही आयेगी लोग लालच ओर भय से छुटाकरा पाने लगेगे तो इन लोगो का धन्धा बंद हो जायेगा।

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