कुंडलियां … 47 , अपराधी हर लेखनी……

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मूर्ख बन इतरा रहा , माने ना मेरी बात।
कुछ भी तेरा है नहीं, ना जाएगा साथ।।
ना जाएगा साथ , छूटें पत्नी और बेटा।
कुटुंब कबीले छूटें, जिनके ऊपर ऐंठा।।
अकड़ छूटेगी तेरी, होगी उनसे अनबन।
जिनमें झूठा फंसा हुआ है, तू मूर्ख बन।।

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चिंतन जिसका ऊंच है, होता वही महान।
आदर्श बने संसार का, भासता उसमें ज्ञान।।
भासता उसमें ज्ञान, जग माने उसका लोहा।
सबको राह दिखाये, रखता घावों पर फोहा।।
लोगों के काम आता है, उसका पथप्रदर्शन।
लोग खुशी से अपनाते, जो भी देता चिंतन।।

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अपराधी वह लेखनी, देश संग करे घात ।
स्वाभिमान को बेचती, गद्दारों के हाथ।।
गद्दारों के हाथ , देश का सौदा करती।
अपने महावीरों का ,स्वयं दलन करती।।
लेखनी का धर्म नहीं, बात कहे जो आधी।
निडर लेखनी कहे, अपराधी को अपराधी।।

दिनांक :15 जुलाई 2023

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