सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग पड़ रहा है योगी सरकार को महंगा

अजय कुमार

योगी को कहना पड़ रहा है कि अधिकारी निर्धारित समय पर अपने कार्यालय पहुंचें और लंच में घर न जाएं बल्कि आफिस में ही भोजन करें। विभिन्न विभागों से संबंधित जो भी समस्याएं लेकर लोग लखनऊ आ रहे हैं उन्हें जिला स्तर पर सुना जाए।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के नेतृत्व में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है। अपराधों पर नियंत्रण है। अपराधी खौफजदा हैं। योगी के मंत्रियों के कामकाज की भी समीक्षा हो रही है, जिसके चलते प्रदेश की बदहाली दूर हो रही है। सरकार ने नौकरशाही और पुलिस की लगाम कस रखी गई है, जिससे लाल फीताशाही पर लगाम लगी है। प्रदेश में अमन चैन है। बार-बार योगी सरकार इस तरह के दावे करती रहती है। फिर भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने अधिकारियों को यह नसीहत देनी पड़ती है कि जनता की समस्याएं न सुनना अब अधिकारियों को भारी पड़ेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत दिनों अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि आम लोगों की समस्याओं के निस्तारण पर पूरा जोर दिया जाए। ऐसे अधिकारी जो जनता की समस्याएं नहीं सुनेंगे और बेवजह उन्हें कार्यालयों के चक्कर लगवाएंगे तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को यह चेतावनी पांच कालिदास मार्ग स्थित अपने सरकारी आवास पर प्रदेश भर से आए लोगों की समस्याएं सुनते हुए दी और कहा कि जनता की समस्याओं का त्वरित निस्तारण किया जाए। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि प्रदेश के विकास की हकीकत क्या है? क्यों दूरदराज की जनता को अपनी समस्याओं के लिए मुख्यमंत्री की चौखट पर आना पड़ता है? जिला प्रशासन क्या अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली प्रकार से नहीं कर रहा है? खास बात यह है कि मुख्यमंत्री के दरबार में फरियाद लेकर आने वाली जनता की अपेक्षाएं इतनी बड़ी नहीं होती हैं जिनका निस्तारण मुश्किल हो। ज्यादातर लोग बिजली-पानी और खस्ताहाल सड़क जैसी समस्याएं लेकर आते हैं। इसके अलावा थाने में रिपोर्ट नहीं मिलने और पुलिस उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं। यह वह समस्याएं हैं जिनका समाधान जिला स्तर पर हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो कहीं न कहीं प्रदेश का प्रशासनिक ढांचा पूरी तरह से चरमराया हुआ है।

यह बात योगी मानते भले नहीं हों लेकिन उनकी चिंता तो सामने आ ही रही है। इसीलिए तो योगी को कहना पड़ रहा है कि अधिकारी निर्धारित समय पर अपने कार्यालय पहुंचें और लंच में घर न जाएं बल्कि आफिस में ही भोजन करें। विभिन्न विभागों से संबंधित जो भी समस्याएं लेकर लोग लखनऊ आ रहे हैं उन्हें जिला स्तर पर सुना जाए और उसका समय रहते ही निपटारा कराया जाए। सरकारी मशीनरी कितनी लचर है। इसका ताजा उदाहरण गत दिनों तब देखने को मिला था, जब केंद्रीय मंत्री और लखनऊ के मोहनलालगंज लोकसभा क्षेत्र के सांसद कौशल किशोर के कार्यक्रम में 12 बार बिजली कटी। बार-बार बिजली कटने की बात सामने आने के बाद समाजवादी पार्टी ने योगी सरकार पर जुबानी हमला बोला था। मंत्री कौशल किशोर का कार्यक्रम लखनऊ में विधान सभा के सामने स्थित के सहकारिता भवन सभागार में हो रहा था।

इस सभागार में मंत्री का भाषण करीब 40 मिनट तक चला, इस पूरे भाषण के दौरान करीब 12 बार बिजली कटी। भाषण के दौरान बार-बार बिजली कटने से केंद्रीय मंत्री नाराज हो गए। भाषण के दौरान उन्होंने नाराजगी जताई थी। वहीं सपा ने ट्वीट कर लिखा था, ‘मंत्री के कार्यक्रम में बिजली गुल, योगी सरकार की पोल गई खुल। बात समाजवादी पार्टी की ही नहीं है। केन्द्रीय मंत्री कौशल किशोर ने स्वयं कहा था कि उनका फोन बिजली विभाग वाले नहीं उठाते हैं तो आम जनता का क्या हाल होता होगा। बात मंत्री के कार्यक्रम में 12 बार बिजली कटने से इतर की जाए तो इस समय प्रदेश में बिजली व्यवस्था का बुरा हाल है। नगर विकास और ऊर्जा विभाग के मंत्री ए0के0 शर्मा बिजली की चरमराई व्यवस्था को सुधारने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। ऐसे हालात काफी समय बाद पैदा हुए हैं।

यह सब तब हो रहा है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखते हुए सड़कों को गड्ढामुक्त बनाने के लिए अफसरों को निर्देंश दिए, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही इस कदर हावी रही कि बरसात गुजरते ही गड्ढों में सड़क ढूंढ़ना मुश्किल हो गया है। हाईवे हो या शहर की सड़कें बदहाल हैं। इनमें देहात क्षेत्र की सड़कों का और बुरा हाल हैं। फिर भी अधिकारी समस्या का समाधान नहीं कराते हैं। एक विभाग दूसरे के पाले में गेंद डाल जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। उत्तर प्रदेश में नगर निगम और लोकनिर्माण विभाग दोनों की ही सड़कों का बुरा हाल है। जबकि सड़कों के निर्माण, मरम्मत और रखरखाव के लिए भारी भरकम रकम खर्च की जाती है। लेकिन सरकारी धन के बंटवारे में सड़कों का निर्माण और मरम्मत दोनों बेहद घटिया सामग्री से होता है, जिससे सड़कें महीने भर में उखड़ जाती हैं। लेकिन अफसर और निर्माण एजेंसियां सड़कों की तरफ मुड़कर नहीं देखते हैं जिससे यात्रा करने वाले ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के लिए मजबूर हैं। सड़क निर्माण के लिए दर्जन भर से ज्यादा विभाग बने हैं। लोक निर्माण विभाग में निर्माण खंड, प्रांतीय खंड, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना खंड, नेशनल हाईवे खंड, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ग्राम पंचायत, विधायक निधि, सांसद निधि, विधान परिषद सदस्य निधि, विश्व बैंक योजना, नहर विभाग, सिंचाई विभाग आदि के तहत सड़कों का निर्माण होता है। लेकिन सड़कों के निर्माण में पत्थर की गिट्टी के बजाय मिट्टी भरी जाती है जिससे सड़कें बनने के बाद ध्वस्त हो जाती हैं।

यह सब तब है जबकि मुख्यमंत्री से लेकर विभागीय मंत्री तक जिलों के अधिकारियों के साथ लगातार सर्वे कर रहे हैं, लेकिन अधिकारी सरकार को कैसे गुमराह कर रहे हैं, इसकी मिसाल बीते अक्तूबर माह में तब दिखाई दी जब पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद लखनऊ के नेशनल कॉलेज के सामने बनी राणा प्रताप मार्ग की सड़क को देखने पहुंचे। इसे एक सप्ताह पहले ही बनाया गया था और सिर्फ फिनिशिंग टच देना बाकी था। यहां इंजीनियरों ने जो जगह दिखाई, मंत्री ने उसकी जगह दूसरे स्थान पर सड़क की खुदाई करा दी। मंत्री की जांच में दो करोड़ रुपये से तैयार सड़क की गुणवत्ता काफी खराब मिली थी। यह चुनिंदा उदाहरण है।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश पुलिस भी अपना पुराना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। पुलिस के लिए योगी सरकार का वह फरमान सोने पर सुहागा साबित हो रहा है, जिसमें योगी ने अपने जनप्रतिनिधियों को हिदायत दे रखी है कि कोई भी पार्टी या सरकार का नुमांइदा किसी केस में पैरवी के लिए थाने नहीं जायेगा, इसके चलते पुलिस की मनमानी बढ़ गई है। यदि बीजेपी या सत्ता पक्ष का कोई नेता किसी मामले में थाने पहुंच जाता है तो पुलिस नेताजी को योगी का अरमान सुनाकर उसकी बोलती बंद कर देती है। इसके चलते कई निर्दोषों को इंसाफ नहीं मिल पाता है।

बात इससे आगे की कि जाए तो योगी सरकार ने पिछली राज्य सरकारों में गरीबों को मिलने वाले सरकारी राशन का वितरण भी 5-6 महीने से बंद कर दिया है। अब सिर्फ मोदी सरकार द्वारा ही पांच किलो प्रति व्यक्ति राशन दिया जा रहा है, जिसकी शुरुआत कोरोना काल में हुई थी। पहले राज्य सरकारों द्वारा 2-3 रूपये प्रति किलो पर गरीब जनता को चावल-गेहूं उपलब्ध कराया जाता था।

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