डूबते देश में सूरजकुंड का संदेश

सूरजकुंड वैसे तो अपने मेलों, हस्तकला और पर्यटन के लिए मशहूर है। लेकिन राजनीतिक तीर्थ के रूप में भी इसका कोई कम महत्व नहीं है। हरियाणा के फरीदाबाद जिले का यह पर्यटन स्थल देश की राजधानी दिल्ली के बहुत करीब है। इस करीबी को वजह से ही सूरजकुंड का राजनीति से भी बहुत करीब का वास्ता है। हस्तकला के मेले यहां 1981 से लगने लगे। मेले में कई तरह के खेल भी होते हैं। यही वजह है कि पूरे देश के साथ खेल करनेवाले हमारे नेताओं की जमात के शिविरों का इतिहास भी कोई कम पुराना नहीं है। कांग्रेस के विकास की कई धाराओं का उदभव इसी सूरजकुंड से हुआ। तो बीजेपी ने भी अपने बिगुल कई बार यहां से फूंके हैं।
कई चिंतन शिविर यहां हुए और चिंतन करने के लिए बैठकें भी कई हुई। पर, ज्यादातर चिंतन शिविरों के परिणाम चिंताजनक रूप से चिंतित करनेवाले रहे हैं। सूरजकुंड का सरोवर गवाह है कि यहां हुए कई राजनीतिक शिविरों में कई नेताओं के कई तरह के पापों का नाश हुआ तो कई नेताओं के अचानक देश भर में पराक्रमी हो जाने का भी यह गवाह रहा है।
ताजा बात करें तो, सूरजकुंड में शुक्रवार को जो सूर्योदय हुआ, उसकी किरणों के उजाले से साफ लग रहा है कि सोनिया गांधी ने 2014 के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। पता नहीं कहां से उठाकर प्रधानमंत्री के पद पर बिठाए दिए गए अपने प्रिय सरदारजी तो थे ही। राजमाता सोनिया गांधी भी थीं और युवराज राहुल गांधी भी थे। सुरक्षा के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बराबर ही सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी विशेष बस में बैठकर सूरजकुंड पहुंचे। एस्कॉर्ट, पायलट और सुरक्षा वाहनों के अलावा जैमर जैसे उपकरण इस वीवीआईपी काफिले का हिस्सा थे। आधी कांग्रेस और बहुत सारे मंत्री भी खास बसों में भरकर सूरजकुंड पहुंचे। लेकिन अपने सरदारजी बस में नहीं गए। वे पूरे ठसके के साथ बुलेटप्रूफ सरकारी कार में वहां पहुंचे। कारण बताया गया सुरक्षा का। अब कोई उनसे पूछिए, कि मनमोहनसिंह का इस पूरे चराचर लोक में कौन दुश्मन है, जो उन पर हमला कर देगा। बेचारे सरदारजी की तो जुबान भी नहीं खुलती। वे भी बस से चले जाते तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता। हमारे सरदारजी तो इतने सीधे हैं कि भरे बाजार में खुला छोड़ दो, तो यकीन मानिए, धक्का मारना या हमला करना तो दूर, उनकी तरफ कोई देखेगा भी नहीं।
खैर, बात राजनीति की थी। तो, राजमाता ने सूरजकुंड से ऐलान किया है कि सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल की जरूरत है। अगला चुनाव जीतना है तो कार्यकर्ताओं को पार्टी में महत्व देना होगा। राजमाता ने यह भी माना कि कभी-कभी पार्टी के नेता असंतुष्ट हो जाते हैं, क्योंकि मंत्री उनकी चिंताओं और उनके सुझावों पर ध्यान नहीं देते। इसलिए उन्होंने कहा कि पार्टी नेताओं और सरकार के लोगों के बीच अनवरत संवाद जारी रहना चाहिए।
सत्ता में फिर से आने के लिए कई फैसले लिए गए। पार्टी की जड़ों को मजबूत करने पर गहन चिंतन हुआ और निर्णय हुआ कि संगठन पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। वैसे, रामलीला मैदान की रैली में राहुल गांधी ने भी कुछ कुछ ऐसा ही कहा था। अगर, ऐसा होता है, तो बहुत अच्छा होगा।
पूरी तरह से अमल होता है, तो पार्टी पूरे देश में फिर से एक बार खिल उठेगी। पर, इतिहास गवाह है कि सूरजकुंड से दिल्ली पहुंचने के बाद सारी बातें वहां के कुंड में ही अक्सर डूबकर रह जाती हैं। लोग भूल जाते हैं।
भले ही सोनिया गांधी ने कहा, राहुल गांधी बोले, और बोलने से बचकर सिर्फ सुनने को बाध्य प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सुना। लेकिन कांग्रेस में कौन माई का लाल है जो सूरजकुंड के संदेश को याद रखेगा और किसके पास सवा हाथ का कलेजा है, जो उस पर अमल करने की बात सोनिया गांधी और राहुल भैया को याद दिलाएगा। एक डूबते देश में सूरजकुंड का यही वह संदेश है जिसे किसी और ने सुना हो या न सुना हो लेकिन बिना कहे भी हर कांग्रेसी ने कान खोलकर सुना है।

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