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शहीद ऊधम सिंह की जयंती पर विशेष

मैं परवाह नहीं करता, मर जाना कोई बुरी बात नहीं है। क्या फायदा है यदि मौत का इंतजार करते हुए हम बूढ़े हो जाएँ? ऐसा करना कोई अच्छी बात नहीं है। यदि हम मरना चाहते हैं तो युवावस्था में मरें। यही अच्छा है और यही मैं कर रहा हूँ।
मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ।
देश को अंग्रेजों के अत्याचार तथा गुलामी से स्वतन्त्र कराने के लिए अनगिनत देशभक्त क्रान्तिकारियों ने हँसते-अपने प्राणों की आहुति दी है। उन्हीं शूरवीरों में अमर शहीद ऊधम सिंह का नाम आदर व श्रद्धा से लिया जाता है।
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था। उस दिन डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया था। देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत लगभग 10,000 से भी अधिक लोग उस सभा में उपस्थित थे। ऊधम सिंह वहाँ पर प्यासे लोगों को पानी पिलाने के पुनीत कार्य में लीन थे।
अंग्रेज सरकार से भारतीयों का देशप्रेम देखा नहीं गया। अत्याचारी अंग्रेज अधिकारी जनरल ओ’डायर के सैनिकों ने पूरे बाग को घेर लिया और निहत्थे आबालवृद्ध लोगों पर मशीनगनों से अंधाधुंध गोलीबारी करनी शुरू दी। हजारों भारतीय मारे गए। पंडित मदन मोहन मालवीय के अनुसार कम से कम 1300 लोग मारे गए थे।
इस घटना ने वीर ऊधम सिंह को विचलित करके रख दिया। तत्काल ही उन्होंने ओ’डायर को सबक सिखाने के लिए शपथ ले लिया। ऊधम सिंह ने बहुत प्रयास किया किन्तु ओ’डायर के भारत में रहते तक उन्हे अपने शपथ को पूरा करने का मौका नहीं मिला। ओ’डायर वापस इंगलैंड चला गया। ओ’डायर के वापस चले जाने पर भी ऊधम सिंह अपना शपथ नहीं भूले। प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने 20 मार्च 1933 के दिन लाहौर में अपना पासपोर्ट बनवाया और इंगलैंड चले गए। अपना उद्देश्य पूर्ण करने के लिए उन्हें वहाँ लगभग सात साल और इंतजार करना पड़ा।
अन्तत: इंतजार की घडिय़ाँ खत्म हुईं। 13 मार्च 1940 को ओ’डायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया। ऊधम सिंह ओ’डायर का वध करने के लिए 45 स्मिथ एण्ड वेसन रिवाल्वर पहले ही खरीद चुके थे। एक मोटी किताब के पन्नों को बीच से काटकर तथा किताब के भीतर अपने रिवाल्वर को छिपाकर ऊधम सिंह भी उस सभा में पहुँच गए। मौका मिलते ही उन्होंने मंच पर उपस्थित ओ’डायर को लक्ष्य करके 6 राउंड गोलियाँ दाग दीं। ओ’डायर को दो गोलियाँ लगीं और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। प्रतिशोध के पूर्ण हो जाने पर ऊधम सिंह कायरतापूर्वक भागे नहीं बल्कि उन्होंने वीरतापूर्वक स्वयं गिरफ्तार करवा दिया। उन्होंने कहा मेरी उससे शत्रुता थी इसीलिए मैंने उसे मारा। वह इसी लायक था। ऐसा मैंने किसी अन्य या किसी संस्था के कहने से नहीं किया है वरन् ऐसा करना मेरा अपना फैसला था। हिन्दी वेबसाइटऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। 1901 में उनकी मां और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया और उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम दिए गए। 1917 में उनके बड़े भाई का भी स्वर्गवास हो गया। 1919 में वे अनाथालय छोड़ क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
मेट्रोपोलिटन पोलिस रिपोर्ट फाइल क्र. 3/1743, दिनांक 16 मार्च 1940 के में लिखा है हमें उसके जीवन के विषय में सूचना मिली है कि वह एक बेहद सक्रिय, अनेक स्थानों की यात्रा किया हुआ, राजनीति से प्रेरित, धर्मनिरपेक्ष विचारधारा वाला युवक था तथा उसके पास अपने जीवन का महान उद्देश्य था।
वह साम्यवाद का समर्थक था और भारत में ब्रिटश शासन के प्रति उसके हृदय में प्रबल घृणा थी।

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