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कविता

पति पत्नी दोऊ एक हैं, प्रेम के सिरजनहार।

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इतिहास के दुश्मन बन गए मिटा दिया इतिहास।
झूठ परोसा देश को, खत्म किया विश्वास।।
खत्म किया विश्वास , जरा भी नहीं लजाए।
निज पैरों पर मार कुल्हाड़ी तनिक नहीं शर्माए।।
राष्ट्रभक्त का चोला ओढ़े, मंद – मंद मुस्काते।
दाढी रखते “फ्रेंच कट” और गीत विदेशी गाते।।

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जर ,जोरु व जमीन पर, करते हैं जो जंग।
शत्रु वह समाज के, चेहरे हैं बदरंग।।
चेहरे हैं बदरंग, नहीं तनिक किसी को भाते।
दुश्मन बन कर देश धर्म के, गीत बेसुरे गाते।
मान करे जो नारी का, पर-धन को माने मिट्टी।
धन्य जन्म होता उसका, धरा को माने सबकी।।

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पति पत्नी दोऊ एक हैं, प्रेम के सिरजनहार।
छोटी सी दुनिया बसा, उसके पालनहार।।
उसके पालनहार , बच्चों को नई दृष्टि देते।
वसुधा ही परिवार बने, संस्कार उन्हें प्रबल देते।।
विचार गिरें इन दोनों के, जग की टेढ़ी चाल बने।
विचार उठें इन दोनों के जग की उन्नत चाल बने।।

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अखबार हमारे हाथ में, खबर देय हर रोज।
सत्य पड़े सबको पता, करता उसकी खोज।।
करता उसकी खोज , भय ना कभी दिखाता।
सच को सच में करे उजागर , अपना धर्म निभाता।।
गला घोटते अभिव्यक्ति का , हैं लोकतंत्र के हत्यारे।
अखबार को दें अपनी भाषा, वे नायक नहीं हमारे।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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