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चीन समेत सारी दुनिया की नजर लगी हैं पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे पर

रंजीत कुमार

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बुलावे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जून के तीसरे सप्ताह में अमेरिका दौरा ऐसे माहौल में हो रहा है, जब दुनिया में रिश्तों के समीकरण पलट चुके हैं। भारत और अमेरिका के आपसी रिश्ते परस्पर शक के दायरे से निकलकर परस्पर विश्वास के दौर में पहुंच चुके हैं। पिछले मार्च में अमेरिकी वाणिज्य सचिव गीना राएमोन्डो, जून के पहले सप्ताह में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड आस्टिन और 13 जून को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन को भारत भेजकर बाइडन ने भारतीय नेताओं के साथ जिस तरह की सहमतियों और समझौतों को हरी झंडी दिखाई है, उनसे भारत की आर्थिक, तकनीकी और सैन्य क्षमता में भारी इजाफा होगा। इन समझौतों से भारत की वैश्विक ताकत के तौर पर हैसियत मजबूत होगी। तभी भारत, चीन का प्रभावी विकल्प भी बन सकेगा। यह अमेरिका के भी हित में है कि वह भारत को जल्द से जल्द चीन के विकल्प के तौर पर खड़ा होने में मदद करे।

भू-राजनीति में बदलाव

चीन से कोरोना महामारी के विश्व भर में फैलाव और यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दुनिया की भू-राजनीति में भारी बदलाव हुआ है।
रूस और चीन ने आपसी सामरिक साझेदारी को और मजबूत बनाकर अमेरिका से मुकाबला करने का संकल्प लिया है।
उधर, अमेरिका ने समान विचार वाले देशों के बीच कई तरह का गुट बनाकर चीन की चुनौतियों से निबटने की रणनीति बनाई है।
जहां भारत चार देशों के गुट क्वॉड (अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान) में अहम भूमिका निभा रहा है, वहीं अमेरिका ने पश्चिम एशिया में चार देशों का एक और गुट (आई2यू2 यानी भारत- इस्राइल, अमेरिका- संयुक्त अरब अमीरात) खड़ा कर इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की कोशिश की है।

बेशक, भारत के खिलाफ चीन ने जिस तरह से आक्रामक रुख अपनाया हुआ है, उसका सामना करने के लिए उसे अमेरिका जैसी विश्व शक्ति की मदद की जरूरत है। वहीं, चीन का विकल्प बनने के लिए भारत को उससे बेहतर तकनीकी और रक्षा ताकत बनना होगा। इसके लिए अमेरिका ने भारत को हर किस्म की मदद देने का रास्ता साफ कर दिया है।

इसी इरादे से जहां मार्च में वाणिज्य सचिव गीना रायमोन्डो ने भारत दौरे में सेमिकंडक्टर सप्लाई चेन और आविष्कार साझेदारी के क्षेत्र में सहयोग के ज्ञापन पर दस्तखत किए

वहीं, रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन के साथ बातचीत में भारतीय सेना को मॉडर्न बनाने के लिए एक खास रोडमैप पर सहमति बनी। इसके तहत अमेरिका हर तरह की संवेदनशील रक्षा तकनीक वाले उत्पाद भारत के साथ साझा करने को तैयार हुआ है।
इसीलिए अमेरिका जनरल इलेक्ट्रिक द्वारा विकसित लड़ाकू विमानों के जेट इंजन भारत में बनाने की अनुमति देने को तैयार हुआ है। इन जेट इंजनों को भारत में बनाए जाने वाले लड़ाकू विमान एलसीए- मार्क-2 में लगाने का प्रस्ताव है।
1998 में पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद अमेरिका ने एलसीए विमान के लिए न केवल जेट इंजनों की सप्लाई रुकवा दी थी बल्कि भारत के एक एलसीए विमान को भी जब्त कर लिया था।
फिर भी भारत-अमेरिका के रिश्तों को केवल चीन के नजरिये से ही नहीं देखा जाना चाहिए। अमेरिका और भारत के बीच आर्थिक रिश्तों को और गहराई देने की अहमियत कम नहीं है।
भारत अमेरिका के बीच इस साल द्विपक्षीय व्यापार 180 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यदि उम्मीदों के अनुरूप भारत में अमेरिकी तकनीक ने जड़ें जमाईं तो यह व्यापार कई गुना और बढ़ सकता है।
चीन और अमेरिका के बीच सालाना 700 अरब डॉलर का व्यापार होता है। चीन को इस लायक बनाने में भी अमेरिका का बड़ा योगदान रहा है। लेकिन जब चीन इसके बावजूद अमेरिका को आंखें दिखा रहा है तो स्वाभाविक है कि अमेरिका उससे सहयोग को कम कर भारत के साथ रिश्तों को गहराई देगा।
इसीलिए बाइडन ने भारतीय प्रधानमंत्री को वाइट हाउस में राजकीय अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया है और उनके सम्मान में 22 जून को राजकीय भोज भी रखा गया है। यूं तो ये सांकेतिक अहमियत की बातें हैं, लेकिन इससे अमेरिकी प्रशासन के भारत के प्रति बदले हुए सकारात्मक रुख का संकेत जरूर मिलता है।

मानवाधिकारों और जनतांत्रिक मूल्यों को लेकर भारत के बारे में अमेरिका में जिस तरह की बातें की जाती हैं, उन सभी को नजरअंदाज कर अमेरिकी प्रवक्ता ने भारत को एक जीवंत लोकतांत्रिक देश बताया है।
प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे की एक और खासियत है कि उन्हें अमेरिकी कांग्रेस के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को दूसरी बार संबोधित करने का विशेष निमंत्रण मिला है।
अमेरिकी प्रशासन ने इस तरह प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा की उर्वर जमीन तैयार कर दी है, जिसके आधार पर भारत अमेरिका 21वीं सदी की सबसे अहम साझेदारी को ठोस आकार देने वाले दूरगामी महत्व के कई निर्णयों का ऐलान करेंगे।
नतीजों पर निगाहें
अमेरिकी और भारतीय शिखर नेताओं में सामरिक, आर्थिक व कूटनीतिक क्षेत्रों में जिस तरह की सहमतियों की उम्मीदें की जा रही हैं, वे विश्व समर मैदान में खेल का पासा पलटने वाली साबित होंगी। यही वजह है कि चीन सहित पूरी दुनिया की नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के नतीजों पर विशेष निगाह रहेगी।

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