Categories
राजनीति

पायलट से सत्ता की जंग के बीच आदिवासियों की नब्ज टटोलते गहलोत

रमेश सर्राफ धमोरा

2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति की 18 अनुसूचित जनजाति की 16 सीटें यानी कुल 34 सीटों पर जीत हासिल की थीं। जबकि भाजपा अनुसूचित जाति की 15 व अनुसूचित जनजाति की 2 सीटों पर यानी कुल 17 सीटें ही जीत पाई थी।

राजस्थान में इसी साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए प्रदेश में सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं। इसी के तहत कांग्रेस ने दलित, आदिवासी वोटों को साधने के लिए चुनावी रणनीति बनानी प्रारंभ कर दी है। प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार बनाने में दलित व आदिवासी मतदाताओं की सबसे बड़ी भूमिका रहती है। अनुसूचित जाति (दलित समुदाय) के लिए प्रदेश में 34 विधानसभा सीट तथा अनुसूचित जनजाति (आदिवासी समुदाय) के लिए 25 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इस तरह प्रदेश की 200 में से 59 विधानसभा सीटें इन समुदायों के लिए आरक्षित हैं। इन 59 सीटों पर जीतने वाले विधायक ही प्रदेश में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसीलिए प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन समुदायों को कांग्रेस से जोड़ने की दिशा में दिन रात लगे हुए हैं।

राजस्थान में कभी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक बना जाता था। मगर धीरे-धीरे भाजपा ने भी उनमें सेंध लगा ली। इस कारण बहुत से दलित, आदिवासी मतदाता कांग्रेस से दूर होते चले गए। उनको फिर से कांग्रेस में लाने के लिए ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश की आरक्षित सीटों पर विशेष फोकस कर रहे हैं। राजस्थान की 59 आरक्षित सीटों के अलावा करीबन दो दर्जन और ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां हार जीत का फैसला दलित, आदिवासी मतदाताओं के हाथ में रहता है। जिस तरफ इन मतदाताओं का झुकाव हो जाता है। उनकी जीत निश्चित मानी जाती है।

चुनावी आंकड़ों को देखें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 34 सीटों में से कांग्रेस 19 सीटों पर व भाजपा 12 सीटों पर तथा अन्य 3 सीट पर जीते थे। चुनाव के बाद सरकार बनाते समय 3 सीटों पर जीते अन्य राजनीतिक दलों व निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी कांग्रेस को समर्थन कर दिया था। इस तरह कांग्रेस के पक्ष में अनुसूचित जाति की 22 सीटें हो गई थीं। जबकि भाजपा के पास 12 सीटें ही रह गई थीं। इसी तरह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटों में से कांग्रेस को 12 सीटें व भाजपा को 9 सीटें मिली थीं। वहीं 4 सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी विजय हुए थे। जिन्होंने बाद में कांग्रेस को समर्थन दे दिया था।

इस तरह 2018 के विधानसभा चुनाव में 59 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस को 38 विधायकों का समर्थन प्राप्त हुआ। जबकि भाजपा को 21 विधायकों का समर्थन मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में यदि आरक्षित वर्ग की सीटों पर कांग्रेस को भारी बढ़त नहीं मिलती तो कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाती। 2013 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति की 32 सीटें भाजपा ने जीती थीं। जबकि कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटों में से भाजपा ने 18 व कांग्रेस ने मात्र 4 सीटें जीती थीं। उस चुनाव में आरक्षित 59 सीटों में से कांग्रेस को मात्र 4 सीटें ही मिली थीं। जबकि भाजपा को 50 सीटें व अन्य को 5 सीटें मिली थीं। मात्र 4 सीटों पर ही सिमट जाने के कारण कांग्रेस 2013 में 200 में से 21 सीटें ही जीत पाई थी और 50 आरक्षित सीटें जीतने वाली भाजपा ने बंपर बहुमत से सरकार बना ली थी।

2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अनुसूचित जाति की 18 अनुसूचित जनजाति की 16 सीटें यानी कुल 34 सीटों पर जीत हासिल की थीं। जबकि भाजपा अनुसूचित जाति की 15 व अनुसूचित जनजाति की 2 सीटों पर यानी कुल 17 सीटें ही जीत पाई थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित वर्ग की कुल 34 सीटें कांग्रेस व भाजपा मात्र 17 सीटें ही जीत सकी थी। उस समय आरक्षित 34 सीटें जीतने के कारण ही कांग्रेस ने जोड़-तोड़ कर प्रदेश में सरकार बना ली थी। क्योंकि उस समय कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। मगर कांग्रेस ने बसपा के 6 विधायकों को पार्टी में शामिल कर प्रदेश में सरकार बना ली थी।

अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 25 सीटों में पहले मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच होता था। मगर पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी के नाम से आदिवासी हकों की मांग को लेकर बनी नई पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ कर 0.72 प्रतिशत वोट हासिल कर दो सीटें जीत ली थी। इस बार फिर भारतीय ट्राइबल पार्टी आदिवासी भील प्रदेश की मांग तेज कर जोर शोर से चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। जिससे आदिवासी बेल्ट की करीबन 20 सीटों पर मुकाबला तिकोना होने की संभावना बन रही है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अगले विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 59 विधानसभा सीटों में से 50 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर उसी पर काम कर रहे हैं। गहलोत को पता है कि उनके तीन बार मुख्यमंत्री बनने में आरक्षित सीटों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इसीलिए फिर उनका पूरा जोर आरक्षित सीटों पर लगा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आरक्षित सीटों पर अपनी पार्टी की पकड़ को मजबूत करने के लिए इस क्षेत्र का लगातार दौरा कर रहे हैं। उनको पता है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के साथ के बिना प्रदेश में कोई भी दल सरकार नहीं बना सकता है।

मुख्यमंत्री गहलोत प्रदेश में अगली बार फिर से कांग्रेस की सरकार बनाने की दिशा में पूरी ताकत से जुड़े हुए हैं। इसके लिए उन्होंने अभी से सभी विधानसभा सीटों पर फीडबैक जुटाना प्रारंभ कर दिया है।

राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कांग्रेस पार्टी भी इस बार कमजोर परफारमेंस वाले बहुत से विधायकों के टिकट काटकर उनके स्थान पर नए लोगों को मौका देगी ताकि सत्ता विरोधी माहौल को समाप्त किया जा सके। आरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस के कई विधायकों की रिपोर्ट खराब मिल रही है। ऐसे में पार्टी करीबन दो दर्जन आरक्षित सीटों पर नए चेहरों को मौका दे सकती है। आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए ही मुख्यमंत्री गहलोत ने आदिवासी आबादी बहुल उदयपुर जिले के सलूंबर को नया जिला व बांसवाड़ा को नया संभाग मुख्यालय बनाये जाने की घोषणा की है ताकि भारतीय ट्राइबल पार्टी के बढ़ते प्रभाव को कम किया जा सके।

पिछली 24 अप्रैल से प्रदेश में चल रहे महंगाई राहत कैंपों के माध्यम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रदेश में आमजन तक अपनी सरकार की विभिन्न जनहितकारी योजनाओं की जानकारी पहुंचा रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भरोसा है कि उन्होंने अपने बजट में आमजन के लिए जिन योजनाओं की घोषणा की थी वह अब धरातल पर उतरने लगी है। जिससे लाभान्वित होने वाला मतदाता कांग्रेस के पक्ष में ही मतदान करेगा।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version