वेद की मर्यादा और धर्म का पालन करते हुए जीवन जीने का संकल्प लें : स्वामी चित्तेश्वरानंद जी महाराज

ग्रेटर नोएडा ( अजय कुमार आर्य ) । यहां पर आर्य समाज के सुविख्यात प्रचारक एवं उद्भट प्रस्तोता देव मुनि जी के मूल निवास पर चल रहे ऋग्वेद पारायण यज्ञ के अवसर पर आर्य जगत के सुप्रसिद्ध सन्यासी और वेद धर्म के मर्मज्ञ स्वामी चित्तेश्वरानंद जी महाराज ने यज्ञ की पूर्णाहुति के अवसर पर कहा कि मनुष्य को वेदज्ञान सहित उपनिषद, दर्शन, मनुस्मृति, सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदभाष्यभूमिका, संस्कार विधि, रामायण, महाभारत एवं यथासम्भव प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये और उनमें निहित वेदानुकूल ज्ञान को ग्रहण व धारण करना चाहिये।

स्वामी जी महाराज ने उपस्थित लोगों का आवाहन करते हुए कहा कि वे वेद की मर्यादा और धर्म का पालन करते हुए जीवन में उन्नति करने का संकल्प लें। ऐसा करके मनुष्य की शारीरिक, आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति होती है। उन्होंने स्वाध्याय की महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वाध्याय करने से हमें यह ज्ञात होता है कि हम कौन व क्या हैं? हम संसार में क्यों आये हैं? हमें क्या करना है और किस लक्ष्य की प्राप्ति करनी है?
इस अवसर पर यज्ञ के ब्रह्मा रहे आचार्य विद्या देव जी महाराज ने स्वाध्याय के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि स्वाध्याय शील व्यक्ति अपने जीवन लक्ष्य को तो समझ ही लेता है साथ ही वह पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों के भोग से भी परिचित हो जाता है। वह समझ लेता है कि इस जन्म में वेदानुकूल व वेदोक्त कर्मों को करते हुए योग, ध्यान, साधना, यज्ञ एवं उपासना आदि से ईश्वर को प्राप्त होकर उसका साक्षात्कार करना है। आचार्य श्री ने कहा कि ईश्वर के साक्षात्कार के बिना हमें आवागमन से अवकाश नहीं मिल सकता।
आचार्य श्री विद्या देव जी ने कहा कि जब तक आवागमन का चक्र नहीं छूटता है तब तक मोक्ष संभव नहीं है। आवागमन के चक्र में सुख-दुख के भंवर जाल में जीव पड़ा रहता है। जिससे छुटकारा पाना ही मोक्ष की अवस्था की प्राप्ति कहीं जाती है।
इस अवसर पर आर्य समाज की सुप्रसिद्ध भजनोपदेशिका बहन अंजली आर्य द्वारा भी भजनों के माध्यम से उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन किया गया। उन्होंने वैदिक सिद्धांतों को अपनाकर जीवन को पवित्र बनाने पर बल देते हुए कई भजनों की सुंदर प्रस्तुति दी।
मंच का सफल संचालन कर रहे आर्य युवा नेता आर्य सागर खारी ने कहा कि वेद धर्म ही राष्ट्र की उन्नति का आधार हो सकता है। उन्होंने वैदिक संस्कृति, संस्कृत और हिंदी को अपनाने और तदनुसार आचरण निष्पादित करने पर बल दिया। श्री आर्य ने कहा कि हिंदी और संस्कृत को अपनाना समय की आवश्यकता है। जो देश अपनी भाषा नहीं जानता वह अपनी स्वाधीनता की रक्षा नहीं कर सकता। इस अवसर पर देव मुनि जी के द्वारा सभी उपस्थित लोगों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इसके अतिरिक्त सरपंच रामेश्वर सिंह, विपिन आर्य, प्रेमचंद महाशय, प्रेम सिंह आर्य, यादराम आर्य, नंबरदार ब्रह्मपाल आर्य, प्रदीप आर्य , आर्य दिवाकर नागर आदि सहित सैकड़ों आर्य जन व समाज के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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