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विश्व स्वास्थ्य दिवस (07 अप्रैल) पर विशेष कितना मुमकिन है सभी के लिए स्वस्थ परिवेश उपलब्ध कराना?

हरीश कुमार
पुंछ, जम्मू

कहते हैं कि स्वास्थ्य ही जीवन है. वास्तव में प्रथम सुख ही निरोगी काया को कहा गया है. किंतु आज की व्यस्त एवं तनावग्रस्त जिंदगी में मानव अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहा है. काम, व्यस्तता और तनाव के कारण ही इंसान के स्वास्थ्य पर लगातार प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इन्हीं सब विषयों को लेकर और आम लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से दुनिया भर में प्रत्येक वर्ष स्वास्थ्य दिवस मनाने की परंपरा शुरू की गई. कोरोना के बाद की परिस्थिति में स्वास्थ्य सबसे अधिक गंभीर मुद्दा बन चुका है. हार्ट अटैक की बढ़ती घटना ने इस दिशा में चिंता और बढ़ा दी है. ऐसे में स्वास्थ्य दिवस की महत्ता बहुत बढ़ जाती है.

7 अप्रैल 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई थी. इसके 2 वर्ष बाद साल 1950 में इसी दिन विश्व स्वास्थ्य दिवस को मनाने का निर्णय लिया गया. विश्व स्वास्थ्य दिवस के उद्देश्यों की अगर बात करें, तो दुनिया भर के सभी देशों में समान स्वास्थ्य सुविधाओं को फैलाने के लिए लोगों को जागरूक करना, स्वास्थ्य संबंधी मामलों से जुड़े मिथकों को दूर करना, वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर विचार करना और उन विचारों पर काम करना स्वास्थ्य दिवस का मुख्य उद्देश्य है. विश्व स्वास्थ्य दिवस के मौके पर हर वर्ष कोई ना कोई थीम दी जाती है और उसी थीम के तहत पूरे वर्ष कार्य किए जाते हैं. पिछले वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम ‘हमारा ग्रह हमारा स्वास्थ्य’ था जबकि इस वर्ष इसकी थीम ‘सभी के लिए स्वास्थ्य’ है.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च के मामले में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है. इस बार भारत दो स्थान गिरकर 157वी रैंकिंग पर रहा. यानी भारत इस मामले में पांचवा सबसे खराब स्थिति वाला देश है. भारत में सरकार के कुल खर्च में स्वास्थ्य पर खर्च की हिस्सेदारी मात्र 3.64 प्रतिशत है जो ब्रिक्स देशों में सबसे कम है. वहीं चीन और रूस का स्वास्थ्य खर्च 10 प्रतिशत, ब्राजील का 7.7 प्रतिशत और दक्षिण अफ्रीका का 12.9 प्रतिशत है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्तमान में दुनिया के 20 प्रतिशत कैंसर के मरीज भारत में हैं. इस बीमारी के कारण हर साल लगभग 75000 लोगों की मौत हो जाती है. अमेरिका के ओहियो स्थित क्लीवलैंड के हेमेटोलॉजी एंड मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ अब्राहम ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि आने वाले समय में भारत को कैंसर जैसी घातक बीमारियों की सुनामी झेलनी पड़ सकती है. वैश्वीकरण, भारतीय अर्थव्यवस्था, बढ़ती उम्र और बदलती जीवन शैली इसका प्रमुख कारण बनेगी.

भारतीय आयुर्वेद परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अगले 5 साल में कैंसर के मामले की संख्या 12 फीसदी बढ़ जाएगी. साल 2025 तक यहां कैंसर के मरीज़ों की संख्या 15.69 लाख के पार हो जाएगी. स्वास्थ्य राज्यमंत्री डॉ भारती पवार ने संसद में बताया कि भारत में 2022 में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 1461427 थी, वहीं 2018 से 2022 के दौरान कैंसर से 808558 लोगों की मृत्यु हो गई थी. 14 अक्टूबर 2022 को जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 में भारत को 121 देशों में से 107 वां स्थान दिया गया है. अगर बात की जाए कुपोषण की तो उसमें भी भारत की कोई अच्छी स्थिति नजर नहीं आ रही है. साल 2021 में दुनिया के 76.8 करोड़ लोग कुपोषण का शिकार पाए गए थे, इसमें 22.4 करोड़ भारतीय थे. संयुक्त राष्ट्र की द स्टेट फॉर फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022 की रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 के करोना काल के बाद लोगों का भूख से संघर्ष तेजी से बढ़ा है. वैसे कुपोषण से निपटने के लिए सरकार ने कई तरीके की योजनाएं लागू की हैं जैसे मिडडे मील योजना. इसका उद्देश्य स्कूल में बच्चों के नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति के अलावा उनके पोषक तत्व में सुधार लाना है. राष्ट्रीय पोषण मिशन, एनीमिया मुक्त भारत अभियान, एकीकृत बाल विकास सेवा, आदि कई योजनाएं हैं जो भारत में बच्चों में कुपोषण को कम करने के लिए चलाई जा रही है.

भारत की संस्कृति में सबको 100 वर्ष के जीवन की शुभकामनाएं दी जाती है. स्वस्थ रहने के लिए दुनिया में योग और आयुर्वेद के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है. इसके साथ ही आयुष इंडस्ट्री का भी लगातार विस्तार हो रहा है. हेल्थ सेक्टर में भारत में लगातार न्यू स्टार्टअप भी जन्म दे रहे हैं. हेल्थ बिल्कुल वेल्थ के जैसी है, जब तक हम उसे खो नहीं देते, हमें उसकी सही कीमत समझ में नहीं आती है. समस्या आने पर लगता है कि हमें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है, लेकिन कुछ कदम उठाकर हम स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को काफी हद तक दूर कर सकते हैं. बढ़ती आबादी में सरकार के लिए सभी तक बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था को पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती है. योग के माध्यम से हम न केवल स्वयं को निरोग रख सकते हैं बल्कि सरकार की इस चुनौती को कम करने में भी मदद कर सकते हैं. योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिला कर हमने साबित किया है कि स्वस्थ परिवेश उपलब्ध कराना मुश्किल नहीं है. केवल उसे पूरा करने की इच्छाशक्ति चाहिए. (चरखा फीचर)

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