मानसरोवर चित्त है, जिसमें जल सद्भाव

बिखरे मोती-भाग 220

गतांक से आगे….
स्मरण रहे, पवित्र चित्त में ही परमात्मा का निवास होता है, दूषित चित्त में नहीं। चित्त की पवित्रता पर सभी धर्मों के धर्मशास्त्रों और धर्माचार्यों ने इसीलिए विशेष बल दिया है।
मोक्ष में भी बुद्घि-चित्त, 
तन्मात्रा जीव के साथ।
ये मन्दिर हरि-मिलन का,
मोक्ष इसी के हाथ ।। 1155 ।।
व्याख्या :-पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बताना प्रासंगिक रहेगा कि तीन शरीर हैं-एक स्थूल शरीर, जो दीखता है। इसमें प्रकृति, महान अहंकार, पंचतन्मात्राएं-ये 8 प्रकृतियां, 5 ज्ञानेन्द्रियां, 5 कर्मेन्द्रियां, पंचमहाभूत, एक मन-ये सोलह विकाररूप 24 तत्व होते हैं, किन्तु हम तो महान (महत्) के दो विभाग-‘चित्त तथा बुद्घि’ मानते हैं, इसलिए ये सब 25 तत्त्व बन जाते हैं। इस सेवक मण्डली से आवेष्टित जीवात्मा गर्भ में प्रविष्ट होता है। गर्भ में फिर स्थूल शरीर शनै:-शनै: विकसित होता है।
दूसरा है-सूक्ष्म शरीर-जो दीखता नहीं है, किन्तु स्वप्न में हमारे साथ होता है-इसमें पांच प्राण, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच सूक्ष्मभूत, चित्त तथा बुद्घि इन सत्रह तत्वों का समुदाय सूक्ष्म शरीर कहाता है।
दूसरा है-अति सूक्ष्म शरीर, भाव शरीर इसे कारण शरीर भी कहते हैं।
मुक्ति अवस्था में हमारे साथ जो शरीर रहता है, महर्षि दयानंद का सिद्घांत है-वे मोक्ष में सूक्ष्म सांकल्पिक शरीर अर्थात संकल्प शरीर मानते हैं, जिसके द्वारा दिव्य विषयों तथा ब्रह्मनन्द का उपभोग जीवात्मा करता है। संकल्प शरीर-इसमें पांच तन्मात्राएं-रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श के अतिरिक्त बुद्घि और चित्त, इन सात तत्वों का समुदाय ही ‘संकल्प शरीर’ कहलाता है। कहने का विशेष अभिप्राय यह है कि हमारा ‘चित्त’ मोक्ष में भी हमारे साथ रहता है। इतना ही नहीं ‘चित्त’ वह ‘देवालय’ है जहां परमात्मा का साक्षात्कार होता है। इसलिए हे मनुष्य! तू अपने ‘चित्त’ को सर्वदा निर्मल रख, पवित्र रख। पवित्र चित्त से ही मोक्ष प्राप्त होता है। कैसी विडंबना है किसी अतिविशिष्ट व्यक्ति का आगमन आपके घर में हो, तो आप अपने घर के साथ-साथ बैठक कक्ष को सबसे अधिक सजाते हैं। परमपिता परमात्मा तो अतिविशिष्ट व्यक्ति से भी बड़ा है, जब आप उसे बुलाना चाहते हैं अथवा प्रभु साक्षात्कार करना चाहते हैं, तो क्या अपने चित्त रूपी बैठक कक्ष को भी वैसा ही सुंदर सजाते हैं? इस पर गहन चिन्तन कीजिए।
सारांश यह है कि यदि प्रभु-मिलन की चाह है तो अपने चित्त के मल-विक्षेप का प्रक्षालन कीजिए क्योंकि निर्मल चित्त में ही प्रभु का वास होता है। हृदय की पवित्रता से ही उस प्यारे को देखा जा सकता है।
सद्भाव में डूबोगे, तो देवत्व में जागोगे
मानसरोवर चित्त है, 
जिसमें जल सद्भाव।
मोती मिलै देवत्व का,
प्रभु से बढ़ै लगाव ।। 1156 ।।
व्याख्या :- भारतवर्ष में प्रतिवर्ष अनेकों शिव-भक्त कैलाश के दर्शन करते हैं। उनके चरण पखारती ब्रह्म तीर्थ मानसरोवर झील की परिक्रमा करते हैं, तथा उसके शीतल जल में स्नान करके अपने को पवित्र समझते हैं, गौरवान्वित होते हैं। ‘मानसरोवर झील’ चीन के सीमाक्षेत्र में पड़ती है। यहां हाड़ कंपा देने वाली सर्दी होती है। यहां तक पहुंचना बड़ी ही टेढ़ी खीर है, किन्तु इस तपस्या को लोग बड़ी श्रद्घा से सहर्ष करते हैं।
क्रमश:

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