अंधविश्वास : इतनें लोग मन्दिरों में जाते हैं, क्या वे सभी अंधविश्वासी अंधश्रद्धालु है?

निर्मुलन : मंन्दिरों में जाने वाले सभी अंधविश्वासी या अंधश्रद्धालु नहीं होते । ये सब दर्शनीय स्थान है जहाँ सभी प्रकार के लोग जाते हैं । ईश्वर में आस्था रखने वाले लोग मंन्दिर जायें या नहीं जायें – इससे ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता ।जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं तथा श्रद्धा रखते है ,वे कही भी ईश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना कर सकते हैं ।जहाँ मन्दिर नहीं होते, क्या वहां लोग ईश्वर की भक्ति नहीं करते ?

वैदिक काल में कहीं भी प्रतिमायुक्त मन्दिरों का वर्णन नहीं है, अपितु यजुर्वेद में इसका प्रमाण है कि ” न तस्य प्रतिमा अस्ति ” अर्थात उस परमात्मा की को प्रतिमा नहीं है । भारतवर्ष में लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व से ही जैनियों तथा बौद्धों ने मूर्ति वाले मन्दिरों की स्थापना की ।तब से हीं देखा देखी में हिन्दुओं ने भी अपने देवी- देवताओं की प्रतिमाएँ बनाकर मंन्दिरो में स्थापित की और मूर्ति पूजा आरम्भ की। मन्दिर तो कलाकार की कलाकृति का प्रदर्शन है उसको देखने कोई भी जाय तो रोक – टोक नहीं है । लोगों ने इसे व्यापार बना रखा है – यह गलत है ।
जो परमपिता परमेश्वर सारे संसार को खिलाता- पिलाता है, क्या उसको हम खिला- पिला सकते है? कदाचित नही ।जो सारे विश्व को प्रकाशित करता है, क्या उसे हम दीपक दिखाकर अपमानित नहीं करते? जो इस ब्रह्माण्ड को रचकर शुद्ध – पवित्र बनाए रखता है, क्या हम उसे एक फूल भेंट कर और अगरबत्ती जलाकर सुगंधित करना चाहते हैं?
भक्ति क्या है? भक्त किसे कहते हैं? इसको भी जान लेना आवश्यक हैं ।धूप – अगरबत्ती जलाने से कोई भक्त नहीं बनता नारियल तोड़ कर खाने वाला भी भक्त नहीं कहलाता ।
ईश्वर का सच्चा भक्त वही है जो ईश्वर की आज्ञा का पालन करता है, सबसे प्रीति पूर्वक व्यवहार करता है,सबसे प्रेम करता है, जो वस्तु जैसी है उसको वैसा ही जानता, मानता,और व्यवहार में लाता है। वही ईश्वर का सच्चा भक्त है ।
ईश्वर की आज्ञा है कि मनुष्य अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करें और उसी के अनुसार कर्म करें ।इसी से सब प्रकार के दुखों से निवृत्ति तथा आनन्द की प्राप्ति संभव है । ईश्वर की आज्ञा का पालन करना ही सच्चे अर्थों में ईश्वर की भक्ति करना है। ईश्वर का भक्त बनने के लिए सभी जिज्ञासुओं को वेदों का अध्ययन करना चाहिए – यही मनुष्य मात्र के धर्म- ग्रन्थ है ।
जिन मंन्दिरो में वेदपाठ होता है — संध्या — हवन — यज्ञादि सत्कर्म होते है, उन मंन्दिरों में अवश्य जाना चाहिए । जिन मंन्दिरो में पाषाण पूजा नहीं होती — निराकार परमात्मा की पूजा व सत्संग होता है, वहाँ अवश्य जाना चाहिए ।

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