सावरकर को अपमानित करने वाले लोग अपना स्वयं का इतिहास पढ़ें : डॉ राकेश कुमार आर्य

सावरकर को अपमानित करने वाले लोग अपना स्वयं का इतिहास पढ़ें : डॉ राकेश कुमार आर्य

महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से वैदिक धर्म और संस्कृत के मर्म को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य से प्रतिदिन मंत्री आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों का महाकुंभ में दिनांक 25 नवंबर 2022 को
“सावरकर की वीरता पर राजनीतिज्ञों की झुंझलाहट” विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सुप्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि सावरकर भारतीय चिंतन और चेतना से जुड़ा हुआ एक ऐसा पवित्रा नाम है जिसको लेने से आज भी हमारे भीतर उत्साह, उमंग और राष्ट्रभक्ति की लहरें उठने लगती हैं।

डॉ आर्य ने कहा कि 1901 में जब कांग्रेस को देश में कोई नहीं जानता था तब सावरकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने नासिक में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया के देहांत के पश्चात होने वाली उनकी शोक सभा का विरोध किया था। उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने की पहल पुणे में 7 अक्टूबर 1905 को सबसे पहले की थी। तब “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” का उद्घोष करने वाले तिलक ने उन्हें अपने समाचार पत्र “केसरी” में “वर्तमान भारत का शिवाजी” कहा था। जबकि इस घटना के 16 वर्ष पश्चात 1921 में दक्षिण अफ्रीका से निकलने वाले “इंडियन ओपिनियन” नामक समाचार पत्र में गांधी जी ने एक बड़ा लेख लिखकर सावरकर के होली जलाने के उपरोक्त कृत्य की कठोर निंदा की थी।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता चाहे गांधी हों, चाहे नेहरू हों या कोई और हो, वे सभी ब्रिटिश सम्राट की चाटुकारिता करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ते थे। वे ब्रिटिश राजा की प्रजा कहलाने में गर्व की अनुभूति करते थे और उनके राज्य को भारत पर उनका एक बड़ा उपकार मानते थे। जबकि सावरकर जी दूसरी मिट्टी के बने थे । उनके भीतर चाटुकारिता का भाव छू तक भी नहीं गया था।

उन्होंने 1909 में बैरिस्टर की परीक्षा पास की। तब उस डिग्री को लेने के लिए ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार रहने की शपथ लेना अनिवार्य होता था। चाटुकारिता को राष्ट्रीय अभिशाप मानने वाले सावरकर ने तब राजा के प्रति वफादार रहने की ऐसी शपथ लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया था। जिसके लिए उन्हें कभी यह डिग्री नहीं दी गई। उन्होंने जीवन में कभी लौट कर नहीं देखा और कभी बेरिस्टरी की डिग्री क्षमा याचना करते हुए मांगने का प्रयास भी नहीं किया।

इतिहासकार डॉ आर्य ने कहा कि होली जलाने के अपराध में उन्हें पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से निकाला गया, उसके लिए भी उन्होंने कभी माफी नहीं मांगी थी। 1857 की क्रांति को प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहने वाले सावरकर की यह पुस्तक भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी के द्वारा फ्रांस से छपवाई गई थी। जिसकी प्रतियां उस समय ₹300 में बिक गई थी। उस पुस्तक के प्रकाशन के लिए भी उन्होंने कभी क्षमा याचना नहीं की । इसी प्रकार 8 जुलाई 1910 को वह अंग्रेजों के जहाज से समुद्र में कूद गए थे, उस अपराध के लिए भी उन्होंने कभी क्षमा नहीं मांगी।

डॉक्टर आर्य ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा कि 10 साल तक जेल में अंग्रेजों ने उन्हें कठोर यातनाएं देते हुए कोल्हू चलवाया था। अनेक प्रकार की यातनाओं को झेलने वाले सावरकर ने ऐसी यातनाओं के सामने झुककर भी अंग्रेजों से कभी माफी नहीं मांगी। इनसे मुक्ति पाने के लिए भी उन्होंने कभी किसी ब्रिटिश अधिकारी को नहीं लिखा। इसके विपरीत हमें ध्यान रखना चाहिए कि नेहरू जैसे लोग जिन्होंने “हिंदुस्तान की खोज” नामक पुस्तक में हिंदुस्तान के इतिहास का दिवाला पीट दिया, उन्हें तो ब्रिटिश सरकार जेल में लेखन करने के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाती थी ,जबकि सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी के लिए सुविधा नाम की एक चीज भी जेल में उपलब्ध नहीं थी पूर्णविराम इसके उपरांत भी उन्होंने 6000 पंक्तियां दीवारों पर लिखकर कंठस्थ की और उनसे अपनी पुस्तकें तैयार करवाईं। उनकी प्रत्येक पुस्तक आज भी भारत के युवाओं के लिए बहुत अधिक उपयोगी है।

डॉक्टर आर्य ने कहा कि कांग्रेस ने 1905 में अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक आधार पर बंगाल के किए गए विभाजन का विरोध नहीं किया था। उन्होंने सांप्रदायिक आधार पर मुस्लिमों को केंद्रीय असेंबली में 75 सीट देने वाले साइमन कमीशन का भी विरोध नहीं किया। इसी प्रकार मोपला कांड करवाने में भी गांधी की विशेष भूमिका खिलाफत आंदोलन के माध्यम से रही। जिसमें 25000 हिंदुओं का कत्ल हुआ था। स्वामी श्रद्धानंद जैसे लोगों का बलिदान हुआ तो उस पर भी गांधी नेहरू सब चुप रहे।

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे कांग्रेस और उसके नेताओं की भारत और भारतीयता के प्रति दोगली नीतियों का पर्दाफाश होता है। इसके उपरांत भी जो लोग आज सावरकर को अपमानित करने का प्रयास कर रहे हैं उन्हें अपना इतिहास पढ़ना चाहिए।
इस अवसर पर श्रीमती दया आर्य,अनिल नरूला,प्रेम सचदेवा,डॉक्टर वेद प्रकाश शर्मा बरेली, रामकिशोर विश्वकर्मा शिक्षक,आराधना सिंह शिक्षिका,सुमन लता सेन आर्या शिक्षिका,अदिति आर्य, मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ सहित अनेक आर्यजन जुड़ रहे। जिन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए इतिहास के गौरवशाली लेखन की मांग की।
कार्यक्रम का संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य राष्ट्रीय संयोजक भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति द्वारा किया गया जिन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि सावरकर जी को यथाशीघ्र भारत रत्न दिया जाए।

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