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कविता

कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे

जब गजनवी के दरबार से
सोमनाथ का आकलन
और खिलजी के दरबार से
पद्मावती का आकलन,
बख्तियार के दरबार से
नालंदा का आकलन
तथा गोरी के दरबार से
पृथ्वीराज का आकलन
पढ़ेंगे तो –
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे!

जब बाबर के दरबार से
राणा साँगा का मूल्यांकन
और हुमायूँ के दरबार से
सती कर्णावती का मूल्यांकन,
तथा अकबर के दरबार से
महाराणा प्रताप एवं रानी दुर्गावती का मूल्यांकन
करेंगे तो –
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे!

जब जहाँगीर के दरबार से
शक्ति व अमर का चित्रण
शाहजहाँ के दरबार से
ताजमहल का चित्रण
तथा औरंगजेब के दरबार से
शिवाजी व गुरुगोविंद सिंह का चित्रण
देखेंगे तो –
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे!

जब सिंधिया के दरबार से
मर्दानी लक्ष्मीबाई का निरूपण,
अंग्रेजों के दरबार से
क्रांतिकारियों का निरूपण
वामियों के दरबार से
सनातन का निरूपण
तथा पूँजीपतियों के दरबार से
श्रमिकों का निरूपण
वरेंगे तो –
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे!

जब कांग्रेस के दरबार से
राष्ट्रीय स्वयं सेवक का चिंतन
ब्रिटिश के दरबार से
नेताजी सुभाष का चिंतन
नेहरू के दरबार से
लोहिया का चिंतन
और पाकिस्तान के दरबार से
भारत का चिंतन
परखेंगे तो –
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे!

क्या कभी
सुर्पणखा की नजर से
सीता को
दुर्योधन की नजर से
गीता को
जुगनू की नजर से
आकाश को
और ताराचंद की नजर से
इतिहास को
पहचान पाएँगे!
हम उल्टा होकर
सीधा को मान पाएँगे?
कैसे हम सच्चाई को जान पाएँगे?

डॉ अवधेश कुमार अवध

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