बिखरे मोती – भक्ति में आलस नहीं, ले उत्साह से नाम।

भक्ति के संदर्भ में –

भक्ति में आलस नहीं,
ले उत्साह से नाम।
जितने दुर्गुण दुरित हैं,
उन पर लगा लगाम॥ 2018॥

देवी और आसुरी प्रकृति के संदर्भ में –
आसुरी – दैवी सम्पदा,
दोनों है विपरीत ।
लाख यत्न कर लीजिए,
नहीं बनेगे मीत॥2019॥

आत्मा और सूक्ष्म शरीर के अन्यो न्याश्रित संबंध के संदर्भ में –

आत्मा गई शरीर से,
ले गई सूक्ष्म शरीर।
कर्माशय को देखकर,
मिलें सुख और पीर॥2020॥

भक्ति में बाधा बड़ी,
मानव का अहंकार।
ये आस्तीन का सॉप है,
खा गया पुण्य हजार॥2021॥

विधि की सुन्दरतम कृति,
यह मानव की देह।
भक्ति – भलाई में लगा,
प्रभु – मिलन का गेह॥2022॥

आए आनन्द लोक से,
वही हमारा धाम।
कर्म – क्रीडा ऐसी करों,
होकै चलो अकाम॥2023 ॥

दिखावा ना हो आचरण,
भाव भी हो पुनीत।
मदद करे परमात्मा,
बनकर तेरा मीत॥2024॥

कामनाओं की आग में,
जलता ये संसार ।
प्रभु – कृपा से ही मिले,
शांति का उपहार॥2025॥

संसार में कैसे रहे?

समता हो भगवान में,
समता से संसार ।
राग – द्वेष में सम रहो,
जो चाहो उद्धार॥2026॥

प्रभु का सिमरन कैसे करें ?

चर्म – चक्षु बन्द कर,
अन्तर के पट खोल ।
दम्भ – अहं को त्याग कर,
ओ३म् – ओ३म् तू बोल॥2027॥

ईश्वर का दीदार खोजने से नहीं अपितु उस में खो जाने से होता है –

निर्मल चित्त में रम रहा,
जग ढूंढे चहूँ ओर।
खोजने से मिलता नहीं,
होके देख विभोर॥2028॥

मन का आनंद क्षणिक है जबकि आत्मा का आनंद अद्भुत और अनंत है –

आत्मा का आनंद तो,
अद्भुत और अन्नत।
ब्रह्म – रस का स्रोत है,
पीते – योगी संत॥2029॥

दिल में उतर या बसो
वाणी है आधार।
वाणी तेरी वाक हो,
करते रहो सुधार॥2030॥

भर्तृ हरि महाराज ने तृष्णा के संदर्भ में कहा था –
गृहस्थ छोड़ संन्यास में,
आया करने ध्यान।
तन तो बूढ़ा हो गया,
तृष्णा अभी जवान॥2031॥

परम पद शान्ति (मोक्ष) के संदर्भ में, जिसे वेद ने ईश्वर प्रणिधान कहा –

भक्ति की शोभा ज्ञान है,
ज्ञान की शोभा ध्यान।
ध्यान की शोभा शांति,
ईश्वर – प्रणिधान॥ 2023॥

साधक की लगन कैसी हो –

सरिता साधक में लगन,
होती एक समान।
साधनारत दोनों रहें,
जब तक मिले निदान॥2034 ॥

वाणी कैसी हो –

बोले तो झरै शीलता,
प्रेम माधुर्य ज्ञान।
वाणी मूल अभिव्यक्ति है,
अध्ययन अनुभव की खान॥ 2035॥

कर्म और भाग्य के संदर्भ में –

फूल के पीछे फल चले,
मत इस सत्य को भूल।
फल वैसा ही आएगा,
जैसा खिला था फूल॥2036॥

आग धतूरे के फूल से,
नहीं मिलेंगे आम ।
फल वैसा ही पायेगा,
जैसे किए थे काम॥2037॥

बीज में ही रच दिए,
जड़ – तना पत्ते – फूल ।
कहीं रसीले फल लगें,
गोंद -गन्ध और शूल॥ 2038॥

मनुष्य के व्यक्तित्व के संदर्भ में –

मनुष्य मात्र मन की फसल,
विचारों का प्रतिरूप।
जैसे जिस के विचार हो,
वैसा बने स्वरूप ॥2039॥

मनुष्य को शांति का परम – पद अथवा मोक्ष परमपिता परमात्मा की कृपा से मिलता है –

तू ही शांति स्वरूप है,
तू ही ज्योतिस्वरूप ।
साधक को तेरी कृपा,
करती है तद् -रूप॥2040॥

* कर्म सुधर गया तो जन्म सुधर गया ।
* भाव सुधर गया ,तो भव सुधर गया ।
त्रिराम्बकम् – तीन नेत्रों वाला अर्थात् परमात्मा ।

ब्राह्मण से अभिप्राय किसी जाति विशेष से नहीं है अपितु आत्मवेत्ता से है।इसलिए छान्दोग्य उपनिषद में प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु ! मैं ब्राह्मणों अर्थात् आत्मवेत्ताओं में यशस्वी होऊँ।
क्रमशः

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