भारत का राष्ट्रवाद इसकी मूल चेतना में बसा हुआ है : डॉ राकेश कुमार आर्य

महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से वैदिक धर्म के मर्म को युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से प्रतिदिन मंत्री शिक्षक आर्य रत्न लखनलाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों के महाकुंभ में दिनांक 30 अक्टूबर को ” भारत में राष्ट्रवाद और और इतिहास का विलुप्तीकरण ” विषय पर मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद इसकी मूल चेतना में समाविष्ट है। डॉ आर्यन अपने विद्वत्ता पूर्ण वक्तव्य में कहा कि भारत राष्ट्र निर्माण से पहले मानव निर्माण पर बल देता आया है। इसके इसके लिए भारत के ऋषि ने एक पूरी प्रक्रिया निश्चित की है। बालक को एक उपयोगी मानव बनाने के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गई। चार वर्ण भी इसी दृष्टिकोण से स्थापित किए गए। उन्होंने कहा कि चित्त चतुष्टय, अष्टांग योग, पंचकोश, और इन सब के माध्यम से अंत में मोक्ष की प्राप्ति मानव जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इस प्रकार भारत की संस्कृति एक ग्रामीण के रूप में है जो विभिन्न आयामों को लेकर अंत में मोक्ष पर जाकर मनुष्य की जीवन यात्रा को पूर्ण कराने का महान परिश्रम करती है। अष्टांग योग आदि के माध्यम से मोक्ष की साधना में लगा हुआ मानव समाज एक उत्तम राष्ट्र का निर्माण करता है। जिसमें सब सबके लिए कार्य करते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रवाद की अवधारणा ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ जैसी संकीर्ण मानसिकता पर अवलंबित नहीं है अपितु इसके विपरीत भारत की राष्ट्रवाद की पवित्र भावना ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की उत्कृष्ट और पवित्र भावना पर आधारित है। इसी से राष्ट्र समृद्ध बनता है। बलशाली बनता है। की संस्कृति के इन महान मूल्यों को यदि 1947 के पश्चात के भारत में लागू किया जाता तो निश्चय ही भारत आज अनेक प्रकार की सामाजिक विसंगतियों से मुक्त होता। परंतु यहां पर तुष्टीकरण और धर्मनिरपेक्षता का खेल खेला जाना आरंभ हो गया। जिसने व्यक्ति निर्माण की भारत की योजना को पलीता लगा दिया। उसी का परिणाम है कि आज राष्ट्र अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ आर्य ने कहा कि जब महर्षि दयानंद ने वेदों की ओर लौटो का संकेत संदेश दिया था तो उसका अर्थ यही था कि वह भारत को भारत के स्वर्णिम अतीत की ओर अर्थात इतिहास की ओर ले जाना चाहते थे। आज भी हमें अपने आपको स्थापित करने के लिए भारत के स्वर्णिम अतीत की ओर लौट नहीं होगा। उन्होंने कहा कि भारत के राष्ट्रवाद की मूल चेतना हमारी वीरता, हमारे शौर्य, हमारे पराक्रम में समाविष्ट है। जिसने सदियों तक विदेशियों से लड़ने के लिए हमें प्रेरित किया। डॉक्टर आर्य ने कहा कि महमूद गजनवी जैसे लुटेरे1026 में सोमनाथ के मंदिर को लूट रहे थे पर अगले 25 वर्ष में उनके साम्राज्य का अंत हो गया। इसी प्रकार अलाउद्दीन खिलजी जैसा शासक जैसे ही मरा तुरंत हमारे वीर पूर्वजों ने खोया हुआ भूभाग फिर से वापस कर लिया । यही स्थिति औरंगजेब के साथ हुई जब हमारे वीर हिंदू मराठों ने उसकी मृत्यु के मात्र 31 वर्ष पश्चात ही उसका साम्राज्य छिन्न-भिन्न कर दिया और अपना सारा भूभाग वापस ले लिया। वास्तव में भारत अपनी इसी मूल चेतना के कारण जीवित है और इसी मूल चेतना की साधना हम सबको मिलकर करनी है।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वेद की मानव निर्माण योजना से आरंभ होता है और राष्ट्र निर्माण पर जाकर समाप्त होता है। जिसे आज के छद्म धर्मनिरपेक्षता वादी तथाकथित चिंतकों ने नष्ट भ्रष्ट कर दिया है। इससे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की पुनर्स्थापना हेतु भारत के वैदिक चिंतन को भारत की शिक्षा प्रणाली में फिर से लागू करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम में अन्य विद्वानों में अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता आचार्य आनन्द पुरुषार्थी,प्रो. डॉ. व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक बिहार, प्रो.डा. वेंद प्रकाश शर्मा बरेली, डॉ अरिमर्दन सिंह, अनिल कुमार नरूला दिल्ली, प्रधान प्रेम सचदेवा दिल्ली, डॉ. कपिल देव शर्मा दिल्ली, आर्या चन्द्रकान्ता ” क्रांति हरियाणा, युद्धवीर सिंह हरियाणा, भोगी प्रसाद म्यांमार,चन्द्रशेखर शर्मा जयपुर देवी सिंह आर्य दुबई, अनुपमा सिंह शिक्षिका, सुमनलता सेन आर्या शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, अवधेश प्रताप सिंह बैंस,परमानंद सोनी भोपाल, अवध बिहारी तिवारी शिक्षक, सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन जुड़ रहें हैं।संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया। श्री लखन लाल आर्य द्वारा इस अवसर पर भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की वैदिक अवधारणा की पुनर्स्थापना हेतु प्रस्ताव रखा गया, जिसे सभी उपस्थित आर्य जनों ने सहर्ष पारित किया।

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