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आज का चिंतन

जीवन में होती है दो प्रकार की हार जीत : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


दो प्रकार की हार जीत होती है। एक बाहर की और दूसरी अन्दर की।
जब भी कोई व्यक्ति किसी कार्य को करता है, तब उसे या तो सफलता मिलती है, या असफलता। “जब वह कार्य में सफल हो जाता है, तो लोग कहते हैं कि “वह जीत गया.” और जब अपने कार्य में असफल हो जाता है, तो लोग कहते हैं कि “वह हार गया.” यह हार जीत तो प्रतिदिन चलती ही रहती है। यह तो हुई बाहर की हार या जीत।
दूसरी हार जीत अंदर की होती है, जो मन से होती है। जब व्यक्ति बाहर से तो अपने कार्य में सफल हो जाता है, तब बाहर की जीत तो उसने प्राप्त कर ली। “परंतु यदि उस कार्य में उसने जो सफलता प्राप्त की, उसमें यदि उसने कुछ बेईमानी गड़बड़ घोटाला करके उसने सफलता प्राप्त की हो, तो वह बाहर से जीतकर भी, अंदर से तो हार ही गया।” ईश्वर की न्याय व्यवस्था में ऐसा माना जाता है। “समाज के लोग उसे समझें, या न समझें, वह व्यक्ति स्वयं तो समझता ही है, कि मैंने गड़बड़ घोटाला करके यह जीत हासिल की है। ऐसी स्थिति में वह वास्तविक विजेता नहीं कहलाता।”
जब वह पूरी ईमानदारी और सच्चाई से अपने कार्य में सफलता प्राप्त करता है, तब वह दोनों प्रकार से जीत जाता है, बाहर से भी और अंदर से भी। “वही वास्तविक विजय कहलाती है।”
परंतु कभी-कभी जब वह बाहर से हार जाता है, और अपने अंदर मन में वह जानता है, कि “मैंने पूरा परिश्रम किया, पूरी ईमानदारी से काम किया, फिर भी मैं सफल नहीं हो पाया। कोई बात नहीं, मैं अगली बार फिर से पुरुषार्थ करूंगा, और ईश्वर की कृपा से अवश्य ही सफलता प्राप्त करूंगा।” ऐसा संकल्प करके वह अपने अंदर मन से नहीं हारा, तो वह वास्तव में हारा हुआ नहीं माना जाता। “वह फिर से साहस जुटाता है। फिर से पुरुषार्थ करता है, और अगली बार वह अपने कार्य में सफल हो जाता है, वह जीत जाता है।”
कभी-कभी एक और परिस्थिति भी होती है। जब कोई दूसरा व्यक्ति उसके साथ धोखा बेईमानी करता है, और उसे ठग लेता है। “तब बाहर से भले ही वह हारा हुआ दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह नहीं हारा। क्योंकि उसने अपना काम ईश्वर के नियम के अनुसार सच्चाई और ईमानदारी से किया था, इसलिए वह अन्दर से नहीं हारता।” वह अपने अंदर तो पूरा उत्साहित होता है, और आंतरिक रूप से वह विजयी होता है। “उसकी इस आंतरिक विजय को सब लोग नहीं देख पाते, वह स्वयं ही इस जीत का सुख अनुभव कर सकता है।” “अतः बाहर से हारने पर भी, मन से कभी हार न मानें। जो मन से कभी हार नहीं मानता, वह अगली बार सफल हो सकता है।”
इसलिए पूरी सावधानी से कार्य करें। सच्चाई से कार्य करें। “अंदर और बाहर दोनों प्रकार से सफलता प्राप्त करें, यही आपकी असली जीत होगी।”
—– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

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