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संसार को भारत के संस्कारों की ताकत को पहचानना होगा

अवधेश कुमार

ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने से संपूर्ण विश्व के भारतवंशियों में आनंद की अनुभूति स्वाभाविक है। लेकिन ध्यान रखने की बात यह है कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्हें अपने देश ब्रिटेन के हित के लिए ही काम करना है। दूसरी बात यह कि उन्हें समर्थन ब्रिटेन के आर्थिक संकट में फंसने के कारण और उनकी योग्यता को देखते हुए मिला है। अगर उन्होंने देश को आर्थिक संकट से मुक्त नहीं किया तो उनकी भी स्थिति लिज ट्रस और बोरिस जॉनसन जैसी हो सकती है। इसलिए भारतीयों को बहुत उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं है।

भारत से जुड़ाव
किंतु इसके कई अन्य पहलू भी हैं, जो दूरगामी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

ऋषि सुनक का भारत से रिश्ता बना हुआ है। वह इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति के दामाद हैं, इसलिए उनका भारत आना-जाना लगा रहता है।
उनके घर में वे सारे पर्व-त्योहार आज भी मनाए जाते हैं, जो आम भारतीय मनाते हैं। वह पूजा-पाठ करने और मंदिरों में देवी-देवताओं के सामने सर झुकाने में संकोच नहीं करते। पिछली बार उन्हें ब्रिटेन के एक मंदिर में देखा गया, जहां उन्होंने अपनी पत्नी अक्षता के साथ जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की।
भारत और भारतीयता को गहराई से समझने वाले हमारे मनीषियों ने भारतीय संस्कृति, धर्म, अध्यात्म के आधार पर ही एक राष्ट्र के रूप में इसके शीर्ष पर पहुंचने और विश्व के लिए रास्ता दिखाने योग्य बनने की कामना की थी।

इस तरह विचार करने पर ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने का महत्व समझ में आ जाता है। संपूर्ण विश्व में नजर दौड़ाएं तो साफ हो जाता है कि इस दृष्टि से भारत से ज्यादा सशक्त और सौभाग्यशाली राष्ट्र कोई और नहीं हो सकता।

विश्व के 25 देशों में भारतीय मूल के लगभग 313 राजनेताओं ने कोई न कोई पद संभाला है। इनमें अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश भी शामिल है।
भारतीय मूल के लोगों ने 10 देशों में 31 बार प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के रूप में सत्ता संभाली है। पड़ोसी मॉरिशस में 10 बार, सूरीनाम में 5, गयाना में 4, सिंगापुर, त्रिनिदाद और टोबैगो में 3-3 बार, पुर्तगाल में 2, फिजी, आयरलैंड और सेशेल्स में 1-1 बार भारतीय मूल के नेता प्रधानमंत्री रहे हैं।
कनाडा में तो 19 प्रमुख नेता ऐसे हैं, जो भारतीय मूल के हैं। इनमें 8 सरकार में शामिल हैं।
भारत ने अपनी इस शक्ति को थोड़ी देर से पहचाना। नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल में इन्हें अनिवासी भारतीय कहा गया तो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इन्हें प्रवासी भारतीय नाम दिया। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व भर के भारतवंशियों को जिस रूप में संबोधित कर भारत से जोड़ने का प्रयास किया, वैसा पहले नहीं हुआ। अपने पहले कार्यकाल में वह जहां भी गए, भारतवंशियों का प्रभावी कार्यक्रम रखा। मोदी ने कई दूसरे देशों के नेताओं और राजवंशों के संबंध प्राचीन भारत के साथ स्थापित किए। यह भावनाओं के आधार पर भारत के प्रभाव विस्तार का आधार बन रहा है। इसके कुछ और महत्वपूर्ण पहलू हैं।

भारतवंशी जहां भी हैं उन्होंने किसी न किसी रूप में अपनी संस्कृति को जीवित रखा है और धार्मिक-सांस्कृतिक-सामाजिक उत्सव वहां मनाए जाते हैं।
मोदी सरकार आने के बाद ऐसे सारे आयोजन प्रखर रूप में सामने आए हैं। इनका प्रभाव वहां के नेताओं पर भी पड़ा है। उदाहरण के लिए, कमला हैरिस लिबरल खेमे की नेता हैं ,लेकिन भारतीयों का प्रभाव देखते हुए उन्हें भी अपने यहां दीपावली का आयोजन करना पड़ा। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने टाइम्स स्क्वेयर में दीपावली उत्सव का भव्य आयोजन किया। अभी अमेरिका के मैरीलैंड प्रांत ने अक्टूबर 2022 को हिंदू विरासत महीना घोषित किया है।
हालांकि भारतवंशियों का एक हिस्सा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस का उसी तरह विरोधी है, जैसा भारत में एक वर्ग है। कुछ देशों में भारतवंशियों के सत्ता के शीर्ष पर होते हुए भी हमारे उन देशों से संबंध अच्छे नहीं है। कनाडा इसका उदाहरण है, जहां नेताओं ने ही वहां सिखों के एक वर्ग में खालिस्तान की भावनाएं भरी हैं। इन सबके बावजूद जिस तरह से संपूर्ण विश्व में भारतीय नेताओं और आम भारतीयों में अपनी संस्कृति को लेकर संकोच का भाव खत्म हुआ है, उसका गहरा असर हो रहा है। भारत इसे समझे और अपनी ताकत बनाने के लिए एक सुविचारित नीति बनाए। इसके दो पहलू होंगे- एक तात्कालिक और दूसरा दूरगामी। जाहिर है, दोनों का ध्यान रखते हुए आगे बढ़ना होगा।

ऐसी संस्थाएं और ढांचे विकसित करने होंगे, जो स्थायी रूप से इस दिशा में सतत काम करें।
तात्कालिक रूप से हम हर तरह के भारतवंशियों को इस तरह जोड़ें कि उस देश में भी उनके लिए समस्या खड़ी न हो। यह वर्तमान अंतरराष्ट्रीय ढांचे में भारत के लिए बड़ी ताकत होगी।
दूरगामी दृष्टि से इन्हें वैचारिक स्वरूप देना होगा। इसमें कठिनाई नहीं है क्योंकि भारतीय धर्म और संस्कृति की तमाम शाखाएं संपूर्ण ब्रह्मांड के चर-अचर सबके कल्याण का रास्ता बताती हैं।
ध्यान रहे, यहां किसी को बदलने के लिए उसे पराजित करने का नहीं बल्कि उसका हृदय परिवर्तन करने का मार्ग निर्धारित है। सारे देवी-देवताओं की आराधना के पीछे यही मूल भाव है कि सब ईश्वर के रूप हैं इसलिए कोई हमारा शत्रु नहीं है।

संस्कार की ताकत
भारत की नीति का इस पर फोकस होना चाहिए कि राजनीति और आम जीवन में प्रभावी भारतवंशी इसी भाव से खड़े हों। यह आम भारतवंशियों के संस्कार में है, इसलिए आसानी से उन्हें समझ आ जाएगा। भारत भारतवंशियों की शक्ति को पहचान कर दूरगामी लक्ष्य के साथ व्यापक पैमाने पर काम करे तो विश्व का सर्वाधिक प्रभावी राष्ट्र बन सकता है। ऐसा हुआ तो भारत को वह गौरवपूर्ण स्थान हासिल होगा, जिसकी कल्पना हमारे मनीषियों ने की थी।

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