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इतिहास की अमूल्य धरोहर को युवाओं के सामने प्रकट करना समय की आवश्यकता : डॉ राकेश कुमार आर्य


महरौनी (ललितपुर) । महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्यसमाज महरौनी जिला ललितपुर के तत्वावधान में आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के संयोजकत्व में आयोजित “हमारा स्वर्णिम अतीत : विश्व गुरु के रूप में भारत” विषय पर लगातार तीसरे दिन बोलते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि भारतीय इतिहास और संस्कृति की परंपराओं के सम्मेलन से ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का निर्माण हुआ है। हमारी संस्कृति में ऋषियों का बौद्धिक बल और राजनीतिक नेतृत्व का शस्त्र बल मिलकर काम करते रहे हैं। उसी से राष्ट्र मजबूत हुआ और भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का संसार ने लाभ उठाया।
डॉ आर्य ने कहा कि हमारे ऋषियों ने अपने बौद्धिक आभामंडल को संपूर्ण जगत में फैला कर भारत की चेतना को सर्वत्र फैलाने में सफलता प्राप्त की थी। उस बौद्धिक चेतना का संरक्षण राजनीतिक शक्ति ने किया। यही कारण रहा कि भारत ने प्राचीन काल से ही चक्रवर्ती सम्राट देने की दीर्घकालिक और लंबी परंपरा का निर्वाह किया। श्री आर्य ने कहा कि इतिहास की अमूल्य धरोहर को युवाओं के सामने प्रकट करना समय की आवश्यकता है।
आर्य ने कहा कि जब देश पर विदेशी आक्रमणकारियों ने हमला किया तो देश के लोगों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया। उनकी गतिविधियां, सोच, चेतना और शक्ति का यदि सही अनुमान लगाया जाए तो पता चलता है कि उन्होंने प्रतिदिन विदेशियों से संघर्ष करने की प्रतिज्ञा केवल इसलिए ली कि विश्व की सबसे सुंदर वैदिक संस्कृति से उन्हें अप्रतिम प्रेम था। जिसके विषय में उन्होंने यह समझ लिया था कि विदेशी इसे उजाड़ कर ही दम लेंगे।
डॉ आर्य ने इतिहास का उदाहरण देते हुए बताया कि कानपुर के किशोरा राज्य के एक छोटे से राजा की बेटी ताजकुंवरी ने अपने भाई के साथ मिलकर कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ घोर संघर्ष किया था ।उस युद्ध में पिता, पुत्री और पुत्र तीनों का बलिदान हो गया था। राजकुमारी ने कमाल का रण कौशल दिखाते हुए वीरगति प्राप्त की थी। उसने अंतिम क्षणों में अपने भाई से कहा था कि बहन की रक्षा के लिए अपनी तलवार से मेरा सिर काट दो , और यही हुआ था। इसके पश्चात जब कुतुबुद्दीन ऐबक किले में प्रवेश करने में सफल हुआ तो वहां ताजकुंवरी की दादी विद्योत्तमा और छोटी बहन कृष्णा ने भी जहर पीकर व खंजर छाती में भोंककर अपना बलिदान दे दिया था।
उन्होंने बताया कि इसी प्रकार हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अकबर ने महाराणा प्रताप को ढूंढ कर लाने वाले को बड़ा इनाम देने की घोषणा कर दी थी। यही कारण था कि अकबर के सैनिक अरावली की पहाड़ियों में कदम कदम पर फैल गए थे। उस समय की एक घटना है कि एक बुड्ढा आदमी अपने किशोर पुत्र के साथ निकला जा रहा था। अचानक अकबर के सैनिकों ने उन्हें रोक लिया। सैनिक ने कड़क कर कहा कि क्या आपने महाराणा प्रताप को देखा है ? तब उस बुड्ढे ने उस सैनिक के कान में जाकर कुछ कहा। बुड्ढे की बात पूरी होते ही उस मुगल सैनिक ने बुड्ढे के साथ खड़े बच्चे का सिर कलम कर दिया। तब उसे बुड्ढे ने कहा कि बस, अब मुझे जिस बात की चिंता थी वह समाप्त हो गई । मैं इस बात को लेकर आशंकित था कि यह बालक कहीं डर कर कोई राज न उगल दे। अब जबकि यह संसार से चला गया है तो मुझे किसी प्रकार की चिंता नहीं। मैं महाराणा प्रताप के स्थान को जानता हूं, लेकिन आपको बता नहीं सकता, आप चाहे जो कर लें। तब उस मुगल सैनिक ने उस बुड्ढे के भी टुकड़े-टुकड़े कर के जंगल में फेंक दिये। ऐसी देशभक्ति की भावना के कारण हम अपनी संस्कृति को बचाने में सफल हुए थे।
डॉक्टर आर्य ने बताया कि जयचंद की बेटी कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला ने भी इसी प्रकार की वीरता दिखाते हुए मोहम्मद गौरी के काजी का अंत उसके घर जाकर किया था। उन्होंने कहा कि भारत में डायर को उसके घर में जाकर मानने की परंपरा बहुत पुरानी है। यहां उधम सिंह जैसे क्रांतिकारी ही नहीं हुए बल्कि उधमी देवी भी हुई हैं। जिन्हें कभी कल्याणी और बेला कहा गया है तो कभी कोई दूसरा नाम दिया गया है। आवश्यकता अपने हर एक उधम सिंह और अपनी हर एक उधमी देवी को पहचानने की है।
यदि हम अपने इतिहास का सही आकलन करें और उसे सही ढंग से विद्यालयों में लगा दें तो निश्चित ही भारत के गौरव पूर्ण इतिहास की गौरवपूर्ण झलक हमारे बच्चों को प्राप्त हो सकती है। जिससे देश रक्षा के लिए संकल्पित होकर एक बड़ी संख्या में युवा बाहर निकल कर आएंगे। जिससे आज के आतंकवाद और आतंकवादियों को समाप्त करने में सहायता मिलेगी।
विशेष रूप से आयोजित की गई इस वेबिनार में पंडित पुरुषोत्तम मुनि जी द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किए गए। इसके अतिरिक्त वेद प्रकाश शर्मा, डॉ व्यास नंदन ,श्रीमती दया आर्या, सत्यपाल वत्स, श्रीमती संतोष सचान व श्री अनिल नरूला ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का सफल संचालन कर रहे हैं आयोजक आर्यरत्न शिक्षक लखन लाल आर्य के द्वारा मांग की गई कि भारत के गौरवपूर्ण इतिहास को सही अर्थों में प्रस्तुत कर आज के युवाओं के भीतर उसके संस्कार डालने के लिए सरकार को विशेष कदम उठाने चाहिए।

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