अंग स्पर्श मंत्रों की आचार्य विद्या देव जी ने की सुंदर सरल और हृदय ग्राही व्याख्या :जल से अंगस्पर्श आरोग्यदायक कर्मकांड है यज्ञ में*!

ग्रेनो ( अजय कुमार आर्य )आर्य प्रतिनिधि सभा गौतम बुध नगर के तत्वावधान में आयोजित 21 दिवसीय चतुर्वेद पारायण महायज्ञ के 9 वें दिवस साँय कालीन 18 वे सत्र में यज्ञ के ब्रह्म आचार्य विद्यादेव जी ने दैनिक अग्निहोत्र में की जाने वाले अंग स्पर्श की प्रक्रिया उच्चारण किये जाने वाले मंत्रो की व्याख्या की। आचार्य विद्यादेव ने विशेष तौर पर अंतिम मंत्र *ओउम् अरिष्टानि मेsडंगानि तनूस्तनवा मे सह सन्तु*।
इस मंत्र की व्याख्या की। जिसका पाठ करते हुये दाहिने हाथ से जल स्पर्श करके शरीर के अवयवो पर जल का मार्जन किया जाता है।
उपस्थित लोगों का मार्गदर्शन करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि इस मंत्र का पाठ करते हुए प्रत्येक अग्निहोत्री व्यक्ति प्रभु से कामना करता है कि हे! प्रभु मेरे शरीर मेरे अंगों में कोई विकृति रोग ना रहे तथा आत्मा का मेरे शरीर से सहयोग चलता रहे। विद्यादेव जी ने कहा कि आत्मा दिव्य तत्व है लेकिन आत्मा की दिव्यता में शरीर का भी योगदान है ,आत्मा प्रभु से प्रार्थना करती है कि यह शरीर जो साधन रूप है वह तब तक मेरा साथ ना छोड़े जब तक मैं अपने परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त ना कर लू। शरीर हमारा परम सहयोगी है, हमारे लौकिक पारलौकिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए। जब हम श्रद्धा से यज्ञ वेदी पर बैठकर प्रभु से अंग स्पर्श के मंत्रों से अंग स्पर्श करते हैं प्रभु से आरोग्य की कामना करते हैं तो हमारे शरीर का जैविक संस्थान स्वस्थ सक्रिय निरोगी बनता हैं ।


आचार्य श्री ने अंग स्पर्श के मंत्रों का लाभ बताते हुए कहा कि अंग स्पर्श के मंत्रों का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से तथा आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या का पालन करने से हमारा शरीर 100 वर्ष तक निरोगी स्वस्थ बना रह सकता है। हमारी पूर्वज सुबह शाम यज्ञ करते थे उनका शरीर तेजस्वी वज्र की तरह शक्तिशाली था व्याधियाँ नही थी जन सामान्य में । वह अपने शरीर के समस्त अंगों शरीर के संस्थानों का निरीक्षण करते थे। मनुस्मृति में भी ऐसा ही संकेत मिलता है मनु महाराज प्रत्येक आरोग्य के अभिलाषी व्यक्ति को निर्देशित करते हुए कहते हैं कि प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर प्रत्येक व्यक्ति को रोग व रोगों के कारणों पर विचार करना चाहिए । आज महायज्ञ के 9 वे दिवस यजुर्वेद जो की कर्म का वेद है उसका पाठ शुरू हो गया है ऋग्वेद का पाठ ब्रह्मचारीयो ने पूरी श्रद्धा समर्पण से 9 दिनों में पूर्ण कर लिया। आज के सत्र में दर्जनों अतिथि अभ्यागत उपस्थित रहे। सभी के सहयोग से कार्यक्रम अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर है।
उन्होंने बहुत ही सरल व्याख्या करते हुए कहा कि कई कहावतें हैं, जो वाणी की महानता की बात करती हैं। कोई आभूषण नहीं लेकिन अच्छी वाणी मनुष्य को सुशोभित करती है। कठोर भाषण बहुत सारी समस्याएं लाता है। जैसे, ज्ञानवर्धक और प्रभावी वाणी, जो शांति उत्पन्न कर सकती है, ईश्वर से प्रार्थना की जाती है। यही कारण है कि इन अंगस्पर्श मंत्रों में वाणी को प्रधानता दी जाती है।
 आचार्य श्री ने अपनी विद्वता पूर्ण शैली में बताया कि दूसरा मंत्र स्वस्थ नाक की बात करता है। निस्संदेह, स्वस्थ नथुने और उनकी सही ढंग से सांस लेने की क्षमता हमारे अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आँखों की अहमियत एक अंधा आदमी ही समझ सकता है। निःसंदेह संसार की भिन्न-भिन्न वस्तुओं को आंखों से देखने से सुख मिलता है लेकिन सच्चा सुख तभी मिल सकता है जब आंखें केवल अच्छी चीजों को देखें। इधर, तीसरे मंत्र में अदृश्य को भी देखने की क्षमता के लिए प्रार्थना की गई है। वैसे ही सुनने में सच्चा आनंद पाने के लिए, हमें लगातार खुद का विश्लेषण करते रहना चाहिए कि कहीं हमें बुरी बातें सुनने की आदत तो नहीं है। आज, यह स्थापित हो गया है कि ध्वनि तरंगें हमारे मन को प्रभावित करती हैं। यदि दूसरों की बुराई सुनने से हमें आनंद मिलता है, तो हमारी मानसिक प्रवृत्तियाँ गलत हैं। जैसे, चौथे मंत्र में उत्तम श्रवण-शक्ति की प्रार्थना की गई है। 
पंचम मंत्र में हाथों और भुजाओं में शक्ति की कामना की गई है। दरअसल, हाथ शरीर की शक्ति के प्रकटीकरण का एक साधन मात्र हैं। अगर हमारे हाथ अच्छे और जरूरतमंद लोगों की मदद नहीं करते हैं तो शरीर की शक्ति व्यर्थ है। शक्ति को तीन प्रकार का कहा जा सकता है-ज्ञान की शक्ति, धन की शक्ति और शरीर की शक्ति। जो मनुष्य इन तीनों शक्तियों को अर्जित कर दूसरों के कल्याण के लिए उपयोग करता है, वही महान है। बुरे लोग ज्ञान की शक्ति का प्रयोग व्यर्थ की चर्चाओं में करते हैं, अपनी अहंकारी भावनाओं को बढ़ाने के लिए धन की शक्ति और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के लिए अपने शरीर की शक्ति। अच्छे लोग इन शक्तियों का प्रयोग विपरीत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं।
आचार्य विद्या देव जी ने कहा कि  छठे मंत्र में जाँघों की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है। यहाँ जाँघों की शक्ति केवल शरीर की गतिशीलता के लिए प्रार्थना नहीं की जाती है, बल्कि यह शक्ति तभी सार्थक होती है जब शरीर अपनी गतिशीलता का उपयोग दूसरों के कल्याण के लिए करता है। सप्तम मंत्र में स्वस्थ शरीर और शरीर के विभिन्न अंगों के स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की गई है। एक स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति ही नेक कार्य करने के बारे में सोच सकता है। जिस व्यक्ति का शरीर स्वस्थ नहीं है, वह अपनी आत्मा के कल्याण के लिए कोई भी कार्य करने में रुचि नहीं ले सकता है। अच्छी चीजों, जिन्हें हम समझते हैं और हमारे कार्यों के बीच एक निश्चित संबंध है। हमारे अच्छे कार्यों के बाद हमारे अच्छे विचार आते हैं। अच्छे विचार तभी उत्पन्न होते हैं, जब हमारे पास अच्छा ‘मन’ हो। और हमारे अच्छे ‘मन’ का वास स्वस्थ शरीर में ही होता है। ईश्वर की कृपा के बिना स्वस्थ शरीर का होना संभव नहीं है। चूँकि एक स्वस्थ शरीर ही ‘धर्म’ का पालन कर सकता है, अंग-स्पर्श मंत्रों का उद्देश्य स्वस्थ शरीर की ओर ईश्वर की कृपा को आमंत्रित करना है।

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