हम समझते हैं कि सिर्फ भारत में ही लाखों लोग एक साथ किसी पाखंड या किसी चालाकी या जादू के शिकार हो जाते हैं। वास्तव में यह मानवीय कमजोरी अमेरिका और रुस जैसे देशों में भी पाई जाती है। एक देश ईसाई है और दूसरा साम्यवादी था। इस वक्त एक बहुत ही बुरा हादसा चीन के प्रसिद्ध शहर शांघाई में हो गया है। वहां नया साल मनाने के खातिर हजारों लोग एक क्लब के पास इकट्ठे हुए। उस क्लब के पास एक मैखाना याकि शराबघर था। उसके मालिक ने 100-100 डालर के हजारों नोट हवा में उड़ा दिए और लोगों से कहा कि जो जितने नोट लूट सके, लूट ले। लोग टूट पड़े। उस भगदड़ में 36 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में 20 से 36 साल की युवतियां सबसे ज्यादा थीं। अभी मृतकों की संख्या बढ़ने वाली है, क्योंकि अन्य सैकड़ों लोग घायल अवस्था में अस्पताल ले जाए गए हैं।

आप सोचिए कि भगदड़ कितनी जबर्दस्त रही होगी। किस बात के लिए हुई थी, यह भगदड़? वे जो हवा में उछाले गए थे, 100-100 डालर के नोट नहीं थे। वे थे बिल्कुल डालर की तरह दिखने वाले मैखाने के कूपन! नकली डालरों ने असली लोगों की जान ले ली। इन कूपनों पर उस मैखाने का चिन्ह एम-18 भी बना हुआ था। चीनी राष्ट्रपति ने बहुत दुख व्यक्त किया और हताहतों के लिए विशेष प्रबंध किया। लोगों को चेतावनी दी कि वसंत ऋतु तक कई बड़े चीनी त्यौहार आनेवाले हैं। वे कुछ सबक सीखें।

यहां असली प्रश्न यह है कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने यह क्यों नहीं पूछा कि ऐसा हुआ ही क्यों? वास्तव में यह घटना चीन के आधुनिक मिजाज की खबर हमें दे रही है। चीन की भौतिक उन्नति, जिसे हमारे मोदी विकास कहते हैं, उसने खास तौर से चीनी शहरों को चौपट कर दिया है। जीवन के सारे चीनी पारंपरिक मूल्यवान अब ओझल होते जा रहे हैं। अमेरिकियों की तरह चीनी लोग भी डालरानंद को ही ब्रह्मानंद समझने लगे हैं। उनकी नजरों में पैसा इतना ऊंचा चढ़ गया है कि उसे पाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। इसी प्रकार यौन-शुद्धता भी हाशिए में चली गई है। चीन पहले साम्यवादी की लहर में बहता रहा और अब वह पूंजीवाद की फिसलपट्टी पर फिसला जा रहा है। कोई महान सभ्यता कैसे अधःपतन को प्राप्त होती है, यह देखना हो तो आप चीनी शहरों को देख लीजिए।

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