भारत में राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की जड़ें बहुत गहरी : डॉक्टर राकेश कुमार आर्य

महरौनी ,( ललितपुर ) महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान महरौनी जिला ललितपुर के तत्वावधान में संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य द्वारा आयोजित आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर जारी व्याख्यानमाला में बोलते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि आज का संसार और विशेष रूप से पश्चिमी जगत चाहे कितने ही दावे क्यों न कर ले कि संसार को राष्ट्र ,राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता का संदेश, चिंतन और विचार उसकी देन है, पर सच यह है कि भारत के वेदों ने ही संसार को सबसे पहले राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता का अमर संदेश दिया। भारत के वेदों में राष्ट्र शब्द कितने ही स्थानों पर प्रयुक्त किया गया है। वहां पर राष्ट्रपिता, राष्ट्रपति या राष्ट्राध्यक्ष जैसे शब्दों का प्रयोग राजा के लिए नहीं किया गया है बल्कि राजा को राष्ट्रपुत्र और राष्ट्र सेवक के रूप में स्थापित किया गया है। इससे यह धारणा पूर्णतया निर्मूल सिद्ध हो जाती है कि कोई व्यक्ति किसी राष्ट्रपिता हो सकता है।
डॉ आर्य ने अपने ओजपूर्ण वक्तव्य में कहा कि हम राष्ट्र के पुत्र हो सकते हैं और राष्ट्र के सेवक हो सकते हैं, इससे बढ़कर कुछ नहीं। यद्यपि इसके उपरांत भी बप्पा रावल जैसे शूरवीर को हमने बप्पा अर्थात पिता इसलिए माना कि उन्होंने उस समय अरब के आक्रमणकारियों के द्वारा आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान ,इराक में हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाए जाने पर इस सारे क्षेत्र से अरब आक्रमणकारियों को खदेड़ कर उनके घर में घुसा दिया था। उनके इतने महान कार्य की एवज में उन्हें देश के लोगों ने बप्पा रावल कहा।
उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में संगठन सूक्त की स्थापना करके ऋषियों ने हमारे आदर्श राष्ट्रीय परिवेश को मजबूत करने का आधार प्रदान किया है। जिसमें हम सब एक दिशा में चलने और सोचने का संकल्प लेते हैं। स्वराज्य की उपासना करने का संकेत भी ऋग्वेद में ही दिया गया है। इसके अतिरिक्त यजुर्वेद में राष्ट्र के लिए बहुत सुंदर प्रार्थना की गई है। यजुर्वेद में कहा गया है कि :-

ओ३म् आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ाऽनड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामे-निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्॥

अर्थात हमारे राष्ट्र में ब्रह्मवर्चसी ब्राह्मण उत्पन्न हों । हमारे राष्ट्र में शूर, बाणवेधन में कुशल, महारथी क्षत्रिय उत्पन्न हों । यजमान की गायें दूध देने वाली हों, बैल भार ढोने में सक्षम हों, घोड़े शीघ्रगामी करने वाले हों । स्त्रियाँ सुशील और सर्वगुण सम्पन्न हों । रथवाले, जयशील, पराक्रमी और यजमान पुत्र हों । हमारे राष्ट्र में आवश्यकतानुसार समय-समय पर मेघ वर्षा करें । फ़सलें और औषधियाँ फल-फूल से लदी होकर परिपक्वता प्राप्त करें । और हमारा योगक्षेम उत्तम रीति से होता रहे ।
डॉक्टर आर्य ने अपने शोध परक वक्तव्य में कहा कि भारत में सबसे पहला विदेशी आक्रमणकारी सिकंदर जब आया तो चंद्रगुप्त और चाणक्य ने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा योजना बनाई। उसके बाद देश पर लगभग 1000 वर्ष तक विदेशी आक्रमणकारियों को आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। इसके बाद बड़ा आक्रमण 712 में मोहम्मद बिन कासिम का हुआ। उसके बाद हमारे शंकराचार्य के नेतृत्व में बड़ी योजना बनाई गई और प्रतिहार गुर्जर शासकों ने अपनी छातियां दीवार के रूप में सीमा पर तैनात कर दी। इसके पश्चात लगभग 300 वर्ष तक भारत पर आक्रमण करने का किसी विदेशी का साहस नहीं हुआ। जब गजनी आक्रमणकारी के रूप में आया तो राजा सुहेलदेव के साथ मिलकर 17 राजाओं ने उसे धूल चटाई थी और उसकी 11 लाख की सेना का सर्वनाश कर दिया था। इसी प्रकार नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाले मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी का सामना असम के शूरवीरों ने करके उसकी सेना का भी सर्वनाश कर दिया था।
इसी प्रकार महमूद गजनबी ने जब सोमनाथ का मंदिर लूटा था तो उस समय भी राजा भीमदेव के निमंत्रण पर लगभग एक दर्जन राजाओं ने राष्ट्रीय सेना का गठन करके उस विदेशी लुटेरे शासक को करारी शिकस्त दी थी। उसके पश्चात लगभग डेढ़ सौ वर्ष तक किसी विदेशी आक्रमणकारी का साहस भारत पर आक्रमण करने का नहीं हुआ था।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि भारत में राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की जड़ें इतनी गहरी है कि इन्हें को उखाड़ा नहीं जा सकता। इन जड़ों को सींचने के लिए हमारे लाखों नहीं बल्कि करोड़ों वीर वीरांगनाओं ने अपना खून बहाया है। रानी पद्मिनी के जौहर के बलिदान दिवस पर उन्हें भी विनम्रता से स्मरण करते हुए डॉक्टर आर्य ने उनके बलिदान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनका बलिदान हमें यह संदेश देता है कि हमारे देश में राष्ट्र ,राष्ट्रवाद और राष्ट्रीयता की जड़ों को सींचने के लिए देश की वीरांगनाओं ने भी अपने अनेक बलिदान दिए हैं। हमें इन बलिदानों से शिक्षा लेनी चाहिए और अपने देश के प्रति वही संबंध स्थापित करना चाहिए जो वेदों ने हमें सिखाया है। उन्होंने कहा कि वेदों की शिक्षा है कि हम अपनी मातृभूमि के प्रति मां और बेटे का संबंध स्थापित करके चलें। इतना पवित्र संबंध ही राष्ट्र, राष्ट्रवाद व राष्ट्रीयता की सबसे मजबूत गारंटी हो सकता है।

व्याख्यान माला में वैदिक विद्वान प्रो डॉ.अखिलेश शर्मा Pandit Nagesh Chandra Sharma , प्रीति शर्मा वेदालंकार,प्रो डॉव्यास नंदन शास्त्री बिहार,प्रभात सक्सेना आदि सैकड़ों आर्य जन जुड़े रहें।
संचालन आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवम आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया।

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