पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

बचपन में जो चीज़ें सबसे अनोखी लगती हैं, उनमें से एक होती है परछाई | कभी लम्बी हो जाती है, कभी छोटी हो जाती है | धुप निकले तो होती है, कभी कभी नहीं भी होती है | कई बच्चे अपनी परछाइयों से ही खेलते बड़े होते हैं | परछाई वैज्ञानिक चीज़ है | परछाई के होने के लिए रौशनी का होना बहुत जरूरी है | कोई भी वस्तु, कोई शरीर जितनी रौशनी को रोक देता है, वही परछाई हो जाती है | कस्बों में जहाँ बिजली जाती है और टॉर्च घरों में आम तौर पर मिल जाता है वहां रात में टॉर्च से दिवार पर परछाई बना कर खेलना आम बात है | हिरण, खरगोश बनाये जाते हैं परछाई से |

चाहे याद हो या ना याद हो परछाई से प्रयोग हम सब ने किये होते हैं | कभी रौशनी पर रौशनी का असर देखा है ?

मेरा मतलब है अगर एक मोमबत्ती जला ली जाए और दिवार पर उसकी परछाई बनाने की कोशिश की जाए तो क्या होगा ? कोशिश से पहले ईशवास्य और बृहदारण्यक उपनिषद का वो प्रसिद्ध “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥“ वाला मन्त्र याद कर लीजिये | इसका मतलब मोटे तौर पर आपको पता है | नहीं याद आ रहा तो अभी याद आ जायेगा |

जलती हुई मोमबत्ती को दिवार के पास ले जा कर जब आप उसपर टॉर्च से रौशनी डालते हैं, तो मोमबत्ती की छाया दिवार पर बनती है | लेकिन उसकी जलती हुई लौ की परछाई दिवार पर नहीं बन रही होती | जब आप जलती हुई लौ पर टॉर्च की रौशनी डालेंगे तो लौ की रौशनी में टॉर्च की रौशनी जुड़ जाने से लौ की रौशनी बढ़ नहीं जाती | वो जितनी है, उतनी ही रहेगी | यानि जो लौ पहले ही रौशन है उसमें और रौशनी जोड़ी नहीं जा सकती | जो पूर्ण है उसमें कुछ जोड़ने से वो बढ़ेगा नहीं |

रौशनी को मोमबत्ती रोक रही होती है, इसलिए दिवार पर उसकी परछाई बनती है | लौ भी टॉर्च की रौशनी और दिवार के बीच में है लेकिन वो पहले ही पूर्ण है, इसलिए उसमें से टॉर्च जितनी रौशनी घटा भी दी जाए तो कुछ कम नहीं होता | कमरे में मोमबत्ती की वजह से जितनी रौशनी है उसमें कोई कमी नहीं आती | पूर्ण में से कुछ कम नहीं किया जा सकता |

इसके अलावा इस प्रयोग में एक और चीज़ पर आपका ध्यान जायेगा | कमरे में आपने मोमबत्ती और परछाई देखने के लिए अँधेरा किया होगा | मोमबत्ती जलाते ही वो दूर हो गया | लौ बहुत छोटी सी है, अपने से कई गुना बड़े कमरे में रौशनी कर रही है | कोई भेद-भाव नहीं कर रही, जिस वस्तु से जैसा रंग निकलता है, वो उसी को दिखाएगी | लौ खुद गर्म नहीं होती, लेकिन वो गर्मी पैदा करती है | लौ खुद में रौशनी भी नहीं होती, लेकिन वो रौशनी पैदा करती है |

अब आप ईशवास्य और बृहदारण्यक उपनिषद का प्रसिद्ध “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥“ मन्त्र (शांति पाठ) और उसका हिंदी अर्थ आराम से इन्टरनेट पर ढूंढ के देख सकते हैं | लेकिन कहीं आप ये सोच रहे हैं कि मैंने आपको बचपन के खेल, मोमबत्ती के किसी प्रयोग या फिर उपनिषद के एक श्लोक के बारे में एक पोस्ट पढ़ा दी है तो आप गलत सोच रहे हैं | मैंने धोखे से आपको भगवद्गीता का ग्यारहवां अध्याय पढ़ा दिया है |

मोमबत्ती की रौशनी होते ही जैसे वो कमरे में हर तरफ फ़ैल जाती है वैसे ही भगवान भी हर तरफ होते हैं | जैसे रौशनी भेदभाव नहीं करती कि यहाँ प्रकाशित करूँ और वहां ना करूँ वैसे ही भगवान भी भेदभाव नहीं करते | अगर रौशनी में कोई चीज़ लाल दिख रही है तो वो वस्तु प्रकाश के बाकी छह रंगों को सोख कर सिर्फ लाल रंग परावर्तित कर रही है | सफ़ेद के बदले लाल पर नीली रौशनी डालिए तो वो लाल चीज़ काली दिखने लगेगी | ऐसे ही इंसान, पशु, पक्षी सब गुणों के एक भाव को केवल प्रदर्शित कर रहे होते हैं | वो गुण भी उनका अपना नहीं है | कहीं और से अर्जित है |

भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय में पहुँचते पहुंचते ऐसे ही कई दार्शनिक विषय आपको सोचने के लिए मिलने लगेंगे | भारतीय दर्शन की कई धाराओं का यहाँ समावेश होता है इसलिए भगवद्गीता को उपनिषदों को सार भी कहते हैं | बाकी ये नर्सरी के लेवल का है और पीएचडी के स्तर के लिए आपको खुद पढ़ना पड़ेगा, क्योंकि अंगूठा छाप तो आप हैं नहीं, ये तो याद ही होगा ?
#Random_Musings_on_Bhagwat_Gita
✍🏻आनन्द कुमार

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