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ऐसा हो गणतंत्र हमारा

खुशियों से हो भरा राष्ट्र यह,

गुंजित हो ‘जयहिंद’ सुनारा।

बढ़ें सुपथ पर, मिलकर सारे

राष्ट्र बने प्राणों से प्यारा।

ऐसा हो गणतंत्र हमारा॥

देशभक्ति की धार सुपावन,

जन-मन में हो पुनः प्रवाहित।

युवक हमारे निकलें, निर्भय,

प्राण हथेली पर लें, परहित।

आतंकों के, उग्रवाद के

हामी सारे करें किनारा।

ऐसा हो गणतंत्र हमारा॥

भीष्म-भीम व पार्थ सदृश हों,

वीर-जयी, सेनानी सारे।

अपराजित हो सैन्य वाहिनी,

विश्व-विजय के हित हुंकारे।

पथ प्रशस्त करें वसुधा का

जय ध्वज वाहक भारत न्यारा।

ऐसा हो गणतंत्र हमारा॥

कभी न मानव बने यहाँ का

मानवता का ही हत्यारा।

ऐसा हो गणतंत्र हमारा॥

समता-समरसता-समृद्धि का,

हो कण-कण में नव संचारण।

सभी समस्याओं का हो फिर,

आज राष्ट्रहित, शीघ्र निवारण।

निर्बलतम जो भारत जन हैं

उनको भी अब मिले सहारा।

ऐसा हो गणतंत्र हमारा॥

प्रस्‍तुति: पं0 दयानंद शास्‍त्री

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