राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा की कांग्रेस का काला सच , भाग 2

कांग्रेस और उसके नेताओं ने देश को एक ऐसी मूर्खता पूर्ण अवधारणा प्रदान की जिसके सहारे हमारा अपना बौद्धिक संपदा संपन्न देश अपनी चाल को ही भूल गया। इस मूर्खता पूर्ण अवधारणा का नाम स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता माना गया। जिसका अभिप्राय है कि जिससे धर्म की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। ऐसी धारणा ने लोगों के भीतर से नैतिकता का पतन किया और पूरा समाज अस्त-व्यस्त हो गया। आज की अराजकता पूर्ण स्थिति के लिए कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की ऐसी अवधारणा ही कहीं अधिक जिम्मेदार है।
कांग्रेस की देखा देखी देश में अनेक राजनीतिक दल पैदा हुए और उन्होंने इसी धर्मनिरपेक्षता की नीति को अपनाकर चलने में अपना लाभ देखा। इन सभी सेकुलर ताकतों ने देश को और देश के जनमानस को अनेक प्रकार से भ्रमित करने का काम किया। इनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति धर्मनिरपेक्षता का पर्याय बन गई। जिसका अभिप्राय सार्थक रूप में और व्यावहारिक दृष्टिकोण से यह निकला कि राजनीति हिंदू विरोधी हो गई। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि देश में हिंदू विरोधी होते-होते राष्ट्र विरोधी हो जाना स्वाभाविक है। यही कारण है कि देश के जितने भी धर्मनिरपेक्ष दल हैं , वे देश के प्रति गद्दार न होते हुए भी राष्ट्र विरोधी कार्यो में लगे देखे जाते हैं।
जो असत्य की दीवारों पर अपना साम्राज्य खड़ा करते थे ऐसी धर्मनिरपेक्ष ताकतें एवं लोग आज बहुत परेशान हैं। क्योंकि गद्दारी , छलऔर कपट के वह सभी किले राष्ट्रवादी विचारधारा की मिसाइलों से ध्वस्त हो चुके हैं।
1975 में जब माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश के आलोक में तत्कालीन प्रधान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी एवं सत्ता जाते हुए देखी तो इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से देश में इमरजेंसी लगाने के प्रारूप पर रात्रि में हस्ताक्षर करा लिए थे । ध्यान देने योग्य बात है कि संसद से किसी भी प्रकार का कोई प्रस्ताव देश में इमरजेंसी लगाने का तब तक पारित नहीं हुआ था। उससे पहले ही राष्ट्रपति से इंदिरा गांधी ने हस्ताक्षर करा लिए थे। संसद में बाद में प्रस्ताव रखा गया था। पूरे देश को इमरजेंसी लगाकर जनता के सभी संवैधानिक अधिकारों को समाप्त करने के कारण कांग्रेसियों को बदनामी झेलनी पड़ी थी और कांग्रेस की पूरे देश में बहुत थू थू हुई थी। देश में इमरजेंसी लगवाने वाले 1984 में सिखों का नरसंहार कराने वाले ,सन 1990 में 500000 कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से विस्थापित कराने सहायक की भूमिका निभाने वाले कांग्रेसी किस प्रकार से यह कह सकते हैं कि संविधान खतरे में है।
अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए कांग्रेस ने देश के इतिहास को सही रूप में सामने नहीं आने दिया। इसने कभी नहीं बताया कि कभी अफगानिस्तान में बनी हिंदुओं की हवेलियों को मुसलमानों ने कब्जाया था तो कभी पाकिस्तान में और कभी बांग्लादेश में कब्जाया था और यही स्थिति हमारी आंखों देखते-देखते कश्मीर में हो गई । जहां हिंदुओं की बनी हवेलियां या मकानों या कोठियों को मुसलमानों ने कब्जा कर उन्हें घर से बेघर कर अपने ही देश में शरणार्थी बनने पर मजबूर कर दिया।

प्रश्न संख्या दो

कांग्रेस के नेताओं के दोहरे और दोगले चरित्र का आलम यह है कि ये लोग एक तरफ तो मंदिर में माथा टेकते हैं और दूसरी ओर बंद कमरे में बैठकर मुसलमानों से माफी मांगने के साथ-साथ कहते हैं कि कांग्रेस तो मुसलमानों की पार्टी है। कांग्रेस की इसी परंपरागत सोच और नीति का परिचय देते हुए कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा स्पष्ट बोल दिया गया था कि इस देश के संसाधनों पर मुसलमानों का प्रथम अधिकार है।
इसका तात्पर्य हुआ कि हिंदुओं का अधिकार दोयम दर्जे का है ।
कांग्रेस की यही वह तुष्टिकरण की नीति थी जिसकी वजह से देश का बहुसंख्यक वर्ग कांग्रेस के विरुद्ध हो गया। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि कांग्रेस अपनी मूर्खताओं का परिणाम सामने आया देखकर भी अभी समझने को तैयार नहीं है अर्थात वह अंतरावलोकन कर अपनी आत्मा से अपने आप ही प्रश्न पूछने की स्थिति में नहीं आई है कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो गया ?
कांग्रेस की ओर से आज भी मुसलमानों के वोट लेने के लिए उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाते हैं। भाजपा के विरुद्ध मुस्लिम समाज को खड़ा करने के लिए वह तरह तरह के पापड़ बेलती दिखाई देती है। अभी हाल ही में 5 अगस्त को कांग्रेस की ओर से जिस प्रकार धरना प्रदर्शन किए गए उसका उद्देश्य भी केवल मुसलमानों को अपने साथ लगाए रखना है। कांग्रेस के लिए इस समय बड़ी अजीब स्थिति पैदा हो गई है। उसी की चाल और उसी के चरित्र का अनुकरण करने वाली सभी धर्म निरपेक्ष राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों को अलग अलग ढंग से अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करती रही हैं। जिससे कांग्रेस का परंपरागत मुस्लिम वोट उससे छिटका भी है।
इसमें दो मत नहीं है कि धरने एवं प्रदर्शन करने से भारत का लोकतंत्र समृद्ध होता है। इसलिए किसी भी लोकतंत्र में धरने और प्रदर्शन विपक्ष के द्वारा समय-समय पर सरकार को घेरने और सही मार्ग पर लाने के दृष्टिकोण से करने बहुत आवश्यक होते हैं।परंतु किसी भी कार्य को करने में उसमें अंतर्निहित आशय बहुत महत्वपूर्ण होता है।
वास्तव में भारत वर्ष में इस समय वह पीढ़ी है जो भारतवर्ष के स्वतंत्रता के इतिहास को सही रूप से पढ़ रही है और प्रस्तुत कर रही है। भारत वर्ष के इतिहास का जो विद्रूपीकरण एवं विलोपीकरण कारण हुआ उसको वर्तमान नवीन पीढी समझ चुकी है। जिसमें नेहरू और गांधी एवं कांग्रेस के अन्य तत्कालीन नेताओं के छल सामने आ रहे हैं। परंतु कांग्रेसी वास्तविकता के धरातल को समझने में अभी गफलत में है। कांग्रेस का नेतृत्व भी यह सोचता है कि भारतवर्ष के जनमानस को अभी भी बहकाया एवं भ्रमित किया जा सकता है, तथा छला जा सकता है। जैसा कि 60 वर्ष तक छलते रहे। भारतवर्ष की जनता को सच्चा इतिहास नहीं पढ़ाया गया बल्कि नेहरू की साजिश से मौलाना अबुल कलाम आजाद से लेकर इंदिरा गांधी के शासनकाल में प्रोफ़ेसर नूरुल हसन के शिक्षा मंत्री होने तक, सभी 5 शिक्षा मंत्रियों का मुसलमान होने के कारण, भारतवर्ष के सच्चे इतिहास से कोई संबंध नहीं रखा गया । अर्थात भारतीय जनमानस को सच्चे इतिहास से दूर रखा गया।
जो असत्य की दीवारों पर अपना साम्राज्य खड़ा करते थे ऐसी धर्मनिरपेक्ष ताकतें एवं लोग आज बहुत परेशान हैं। क्योंकि गद्दारी , छलऔर कपट के वह सभी किले राष्ट्रवादी विचारधारा की मिसाइलों से ध्वस्त हो चुके हैं।
1975 में जब माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश के आलोक में तत्कालीन प्रधान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी एवं सत्ता जाते हुए देखी तो इंदिरा गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से देश में इमरजेंसी लगाने के प्रारूप पर रात्रि में हस्ताक्षर करा लिए थे । ध्यान देने योग्य बात है की संसद से किसी भी प्रकार का कोई प्रस्ताव देश में इमरजेंसी लगाने का तब तक पारित नहीं हुआ था। उससे पहले ही राष्ट्रपति से इंदिरा गांधी ने हस्ताक्षर करा लिए थे। संसद में बाद में प्रस्ताव रखा गया था। पूरे देश को इमरजेंसी लगाकर जनता के सभी संवैधानिक अधिकारों को समाप्त करने के कारण कांग्रेसियों को बदनामी झेलनी पड़ी थी और कांग्रेस की पूरे देश में बहुत थू थू हुई थी। देश में इमरजेंसी लगवाने वाले 1984 में सिखों का नरसंहार कराने वाले ,सन 1990 में 500000 कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से विस्थापित कराने सहायक की भूमिका निभाने वाले कांग्रेसी किस प्रकार से यह कह सकते हैं कि संविधान खतरे में है।
1986 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जब मुस्लिम महिला शाहबानो को अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है तो राजीव गांधी की सरकार ने संप्रदाय विशेष के लोगों को प्रसन्न करने के लिए विधि को ही संशोधित करके परिवर्तित कर दिया। इससे और बड़ा उदाहरण संरक्षण का पोषण का क्या हो सकता है?
कांग्रेस की सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम में परिवर्तन करके सात- आठ सदस्य केवल संप्रदाय विशेष के बनाए और उनको असीमित अधिकार दिए कि वह किसी भी संपत्ति को यदि वक्फ संपत्ति बताएं तो उनकी बात मान्य होगी। यदि क्षुब्ध व्यक्ति कोई प्रार्थना पत्र देना चाहे तो उसी बोर्ड में दें, जिसमें कि सभी सदस्य मुस्लिम होंगे। वहां से आप क्या अपेक्षा करेंगे ?,
वही मुस्लिम सदस्य वादी। वही मुस्लिम सदस्य न्यायाधीश। अब आप न्याय की उम्मीद करिए। यहां वह उक्ति चरितार्थ हो गई कि” वही कातिल और वही मुंसिफ” उसके विरुद्ध अगर आपको अपील भी करनी है तो ट्रिब्यूनल में होगी। न्यायालय का दखल नहीं होगा।
वर्ष 1947 में जो हिंदू पाकिस्तान से विस्थापित होकर के भारतवर्ष में आए थे ,उनके द्वारा पाकिस्तान में छोड़ी गई संपत्ति सभी मुस्लिमों को प्राप्त हो गई। वह उन संपत्तियों के स्वामी वह अधिपति हो गए, परंतु भारत से पाकिस्तान गए मुस्लिमों की संपत्ति वक्फ बोर्ड की संपत्ति हो गई।
यहां यह उल्लेख करना भी अति आवश्यक एवं प्रासंगिक हो जाता है कि भारतवर्ष में रक्षा विभाग और रेलवे विभाग के पश्चात तीसरे नंबर पर सबसे अधिक संपत्ति मुस्लिम स्वामित्व के वक्फ बोर्ड के पास है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जो हिंदू पाकिस्तान से विस्थापित होकर के भारतवर्ष आए थे। उनको मंदिर मस्जिद (जो खाली पड़ी थी) में गांधी ने ठहरने नहीं दिया था बल्कि ठिठुरती हुई सर्दी की ऋतु में रात के समय में ऐसे लोगों को महिलाओं और अबोध बच्चों के साथ बाहर कर दिया गया था और वह सड़क पर पड़े रहने के लिए मजबूर हो गए थे। ना खाने की व्यवस्था थी ना पहनने की व्यवस्था थी, और ना उनके सर पर छत थी।
कल्पना मात्र से ही आत्मा से सिहर उठती है।कांग्रेस के अपराध कौन नहीं जानता।
क्रमश:

देवेन्द्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र

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