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कविता

गीता मेरे गीतों में ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद) 30

योगी का प्रयत्न

योगी भोगी हो नहीं सकता, रोगी का तो प्रश्न कहाँ ?
मोक्ष कमाना है उसका धंधा , भोग का तो प्रश्न कहाँ ?

मान मिले सम्मान मिले, अक्षय आनन्द का वरदान मिले।
पग – पग पर मिले उसे सफलता, युगों तक पहचान मिले।।

धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष का ज्ञान निरन्तर करता जाता।
देव भी पसन्द उसी को करते पुरुषार्थ निरन्तर करता जाता ।।

होता यज्ञ – सम जीवन उसका, लोग ऊर्जा पाते जाते।
गौरवशाली – पथ प्रदर्शन से, जीवन सुमन खिलाते जाते।।

सुदीर्घ साधना करते योगी , अपने कर्म और बुद्धि से।
संसार प्रेरणा लेकर चलता , उनके ज्ञान की शुद्धि से ।।

भगवान स्वयं रक्षा करते,ऐसे पावन -पवित्र महापुरुषों की ।
क्रियावान निरन्तर रहते हैं, हर क्षण चिन्ता करते जीवों की।।

कल्याणकारी जीवन की जीवित मिसाल बन जीते हैं।
वे प्राणी मात्र की रक्षा हेतु , सहर्ष हलाहल पीते हैं ।।

जब सारी दुनिया सोती हो तो वह जाग साधना करता है।
एकांत – शांत स्थान में रहकर, प्रभु की प्रार्थना करता है।।

प्रहरी है वह दुनिया भर का, लोकमंगल में रत रहता।
सब निर्विघ्न नींद पूरी कर लें , इस हेतु सारे तप करता।।

संसार में ‘सोता’ रहे न कोई, ‘जागरण’ अभियान चलाता है।
अग्नि सम सब आगे बढ़ लें, सबको ‘सन्देश’ सुनाता है ।।

कहीं गुप्त स्थान में निवास करे ,सारा कोलाहल छोड़ चुका।
वह क्षणिक सुख देने वाले – सब विषयों से मुंह मोड़ चुका।।

सबसे अपनापन दिखलाता, पर किसी को अपना ना माने।
वह सबसे कहता तू मेरा है, पर गाता विरक्ति के गाने।।

परिग्रहवादी सोच ना पाले , फिर भी वो मालामाल रहे।
कोष सदा वह भरता जाता ,जग में कभी नहीं कंगाल रहे।।

तेज – ओज से पूरित चेहरा सबको सन्देश सुनाता है ।
निर्भ्रान्त रहो और शान्त रहो , जीवन उपदेश सुनाता है।।

विषयों से जीवन ज्योति बुझती, निस्तेज मनुष्य हो जाता है।
राह से भटका हुआ ‘पथिक’ फिर अन्त समय पछताता है।।

योगी कहता – ‘ऐ दुनिया वालो !’ मैं बात पते की बतलाता।
आश्रय क्यों लेते हो जग का- जब साथ तुम्हारे आश्रयदाता।।

हम ना भटकें , ना अटकें कहीं – जीवन पथ स्वयं प्रशस्त करें।
अटके – भटके जन कहीं मिलें, उनको भी लेकर साथ चलें।।

जिनकी ज्योति बुझती जाती , उनको भी प्रकाश प्रदान करें।
जो भी थक कर हैं बैठ गए, उन्हें हाथ पकड़ ले साथ चलें।।

नहीं झुकने को जीवन कहते, रुकने का नाम नहीं जीवन।
नहीं थमने को जीवन कहते, थकने का नाम नहीं जीवन।।

जीवन नाम निरन्तर बढ़ने का, क्यों थक कर बैठ रहा ‘अर्जुन’।
जीते जी तू मरना चाहता है, कुछ तो लज्जा कर ‘अर्जुन’।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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