‘सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर’ “वैश्य बन्धुओं को पशुओं की रक्षा, दान देने सहित विद्या व धर्म को बढ़ाना चाहियेः महेन्द्र मुनि”

ओ३म्

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वैदिक साधन आश्रम देहरादून में विगत १ अगस्त, २०२२ से सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर चल रहा है। आज दिनांक ७-८-२०२२ को शिविर का ७वां दिन था। हम भी आज शिविर की कक्षा में सम्मिलित हुए। शिविर में सत्यार्थप्रकाश का स्वाध्याय आर्य वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम, ज्वालापुर-हरिद्वार से पधारे आर्य विद्वान श्री महेन्द्र मुनि जी करा रहे हैं। आज सत्यार्थ-प्रकाश के चैथे समुल्लास के कुछ भाग का स्वाध्याय कराया गया। आज स्वाध्याय में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्रों के गुण, कर्म व स्वभाव आदि पर प्रकाश डाला गया। कक्षा के आरम्भ में श्री महेन्द्र मुनि जी ने कहा कि कल वह ब्राह्मण वर्ण के कर्म व स्वभाव के विषय में चर्चा कर चुके हैं। आज उन्होंने क्षत्रिय वर्ण के कर्तव्यों से चर्चा आरम्भ की। मुनि जी ने सत्यार्थप्रकाश से क्षत्रिय वर्ण के कर्तव्य विषयक दो श्लोकों को पढ़ा और उनके ऋषि दयानन्द कृत अर्थों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि क्षत्रियों को दुष्ट मनुष्यों का तिरस्कार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि सब भद्र मनुष्यों का पालन करना क्षत्रियों का कर्तव्य है। उन्हें सुपात्रों की सेवा में अपने धन आदि का व्यय करना चाहिये तथा जितन्द्रिय रहना चाहिये। क्षत्रिय को शूरवीर होना चाहिये। उन्हें सैकड़ों शत्रुओं से अकेले ही दृणता से युद्ध करना चाहिये। उन्हें तेजस्वी तथा दीनता रहित होना चाहिये। क्षत्रिय को धैर्यवान भी होना चाहिये। उन्हें सब शा़स्त्रों के ज्ञान से सम्पन्न होना चाहिये। वह युद्ध में बिना डरे डटे रहें तथा उन्हें युद्ध से कभी भागना नहीं चाहिये। परिस्थितियों के अनुसार शत्रुओं को धोखा देना तथा भागना भी उचित रहता है। क्षत्रियों को दानशील भी होना चाहिये। उन्हें अपनी की हुई प्रतिज्ञा पूरी करनी चाहिये। आचार्य महेन्द्रमुनि जी ने क्षत्रियों के कुल 11 गुणों की चर्चा की।

वैश्य वर्ण के गुण बताते हुए आचार्य महेन्द्र मुनि ने कहा कि वैश्य को पशु रक्षा, दान देने सहित विद्या व धर्म को बढ़ाना चाहिये। उन्हें हवन आदि करना चाहिये। वेदादि शास्त्रों को पढना, व्यापार करना तथा निर्धारित ब्याज से ज्यादा नहीे लेना चाहिये। उन्हें कृषि व खेती करनी चाहिये। ये सब वैश्य वर्ण के गुण व कर्म हैं।

शूद्र वर्ण के गुणों का उल्लेख कर विद्वान वक्ता ने कहा कि उन्हें किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिये। वह किसी से ईष्र्या न करें तथा अपने बल आदि का अभिमान भी न करें। वह ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों की सेवा करें। यही शूद्रों के मुख्यगुण व कर्तव्य हैं।

आचार्य महेन्द्र मुनि ने वर्णव्यवस्था पर महर्षि दयानन्द जी के चतुर्थ समुल्लास में लिखे सभी वचनों को पढ़कर सुनाया। उन्होंने कहा कि विद्या और धर्म के प्रचार का अधिकार ब्राह्मण को दिया जाना चाहिये। आचार्य जी ने विवाह के विभिन्न प्रकारों की चर्चा की और बताया कि विवाह आठ प्रकार के होते हैं। उन्होंने आठ प्रकार के विवाहों यथा ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, असुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच विवाह की चर्चा कर उनके स्वरूप को उदाहरणों सहित प्रस्तुत किया। विवाह के बाद आचार्य जी ने पांच महायज्ञों ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, बलिवैश्वयज्ञ तथा अतिथियज्ञ पर विस्तार से प्रकाश डाला। आचार्य जी ने पंच महायज्ञों से होने वाले लाभों को भी बताया। इसके बाद आचार्य जी ने सत्यार्थ-प्रकाश से चतुर्थ समुल्लास में दिए गए अन्य विषयों को पढ़ा। कक्षा प्रातः 10.30 बजे से आरम्भ होकर 12.30 बजे तक चली। चतुर्थ समुल्लास का आज कुछ भाग स्वाध्याय से रह गया जिसे आचार्य जी ने कल पूरा कर लेने की बात कही।

आज की स्वाध्याय कक्षा में वैदिक साधन आश्रम के यशस्वी मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा सहित अनेक स्त्री व पुरुष उपस्थित थे। हमें यह सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर अत्यन्त उपयोगी लगा। ऐसे आयोजन आर्यसमाजों व आर्यसंस्थाओं में समय-समय पर होते रहने चाहिये। ऐसे आयोजनों में आर्य बन्धुओं को परिवार सहित उपस्थित होना चाहिये। इससे परिवार के लोगों की ज्ञान वृद्धि सहित युवाओं व बच्चों पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं। सत्यार्थप्रकाश स्वाध्याय शिविर आगामी 15 अगस्त 2022 तक चलेगा। शान्ति पाठ के साथ आज की कक्षा समाप्त हुई। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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