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ओबामा बोले किसकी बानी?

डॉ0 वेद प्रताप वैदिक

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के बारे में मुझे अपनी राय बदलनी पड़ेगी। उन्होंने भारत को धार्मिक सहिष्णुता का पाठ फिर पढ़ा दिया है। पहले उन्होंने सीरी फोर्ट के भाषण में सांप्रदायिकता की वजह से भारत के टूटने का डर दिखा दिया और अब उन्होंने व्हाइट हाउस में बैठकर यह कह डाला कि भारत में जैसी धार्मिक असहिष्णुता है उसे देखकर गांधी को बड़ा धक्का लगता। जब ओबामा के पहले उपदेश पर कुछ भारतीयों ने उन्हें झाड़ा तो उनके प्रवक्ता ने सफाई दी कि ओबामा का लक्ष्य भारत का अपमान करना या चेतावनी देना नहीं था बल्कि वह तो उन्होंने सभी देशों पर लागू होने वाली बात कही थी। सो, सारी बात आई-गई हो गई। लेकिन ओबामा ने वही राग फिर छेड़ दिया है।

इस बार उन्होंने एक राष्ट्रीय प्रार्थना सभा में वाशिंगटन में अपनी भारत-यात्रा और भारत की प्रशंसा के पुल बांधते हुए भारत की धार्मिक असहिष्णुता को दुबारा लपेट लिया। साथ में उन्होंने ईसाईयत के अत्याचारों की भी चर्चा की। ऐसा नहीं है कि उन्होंने हिंदू धर्म का नाम लिया या गुजरात के दंगों का जिक्र किया या दिल्ली के गिरजों पर आंसू बहाए लेकिन उनका इशारा किधर है, इसे स्पष्ट करने की जरुरत नहीं है। भारत की यात्रा के दौरान उनकी जो नाटकीय आत्मीयता प्रकट हुई थी, वह धीरे-धीरे काफूर होती दिखाई पड़ रही है।

इसका अर्थ यह नहीं कि ओबामा ने जो कहा है, वह गलत है। सिद्धांत की दृष्टि से उनकी बात के कई हिस्से सर्वमान्य सत्य हैं लेकिन असल प्रश्न यह है कि क्या उनके मुंह से यह बात शोभा देती है? पहली बात तो यह कि ऐसा कहना अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक परंपरा के विरुद्ध है। किसी भी राष्ट्र के आंतरिक मामलों में अवांछित हस्तक्षेप है। दूसरी बात यह कि ईसाइयत के खूनी इतिहास में जिसके हाथ रंगे हों, उस देश का नेता ऐसी बात कर रहा है। तीसरी, ओबामा अपना अज्ञान बघार रहे हैं, जबकि इसे वे भारत के बारे में अपनी विशेषज्ञता समझ रहे हैं। ओबामा अगर थोड़ा पढ़ने-लिखने का कष्ट करते तो उन्हें पता चलता कि भारत-जैसा धार्मिक सहिष्णु देश दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। भारत में जो धार्मिक असहिष्णुता आई है, वह बाहर से आई है।

लेकिन ओबामा गहराई में जाने का कष्ट क्यों करें? वे तो वे ही गाना बार-बार गा रहे हैं, जिसकी चाबी उनमें भर दी हैं, हमारे कुछ पिटे-पिटाए और हारे-थके नेताओं ने! बेचारे मोदी महोदय, बराक-बराक कहकर उन्हें पटाते रह गए लेकिन बाजी मार ली, उन पिटे हुए मोहरों ने जो उनसे चुपचाप एक घंटे तक मिले और उन्हें हर चार वाक्य के बाद ‘योअर एक्सीलेंसी’ कहते रहे। वे अब उन्हीं की बानी बोल रहे हैं। ओबामा की बुद्धि पर मुझे तरस आ रहा है। वे अपनी पुनरुक्तियों से प्रवासी भारतीयों का समर्थन तो खो ही देंगे, लोगों को उनकी हार्वर्ड की पढ़ाई-लिखाई पर भी संदेह होने लगेगा।

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