Categories
विविधा

मोदी की मूर्ति: दो सम्राटों की कथा

नरेंद्र मोदी के नाम पर राजकोट में बन रहे मंदिर को तोड़ दिया गया, यह स्वागत योग्य कदम है लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मंदिर-भंजन का सारा श्रेय नरेंद्र भाई को है। दिल्ली में जो मूर्ति-भंजन मोदी का हुआ, उसकी पीड़ा को राजकोट के मूर्ति-भंजन ने कम कर दिया। यदि राजकोट में एक मंदिर खड़ा हो जाता और उसमें भगवान मोदीजी जा बिराजते तो उनका इससे बड़ा मजाक क्या होता?

क्या भारत में कोई नेता ऐसा हुआ है, जिसे भगवान न भी मानें तो भी पूज्य मानकर उसकी अराधना की जाए? उस स्तर के निकट पहुंचने वालों में गांधी के अलावा मुझे तो कोई दिखाई नहीं पड़ता। डॉ. लोहिया कहा करते थे कि किसी भी इंसान की मूर्ति बनानी हो या लगानी हो तो उसके मरने के कम से कम 300 साल बाद लगानी चाहिए। इतने लंबे समय तक किसी इंसान का याद रखा जाना ही उसे महापुरुष बना देता है। इसके अलावा उस व्यक्ति के बारे में सारी अच्छी-बुरी और प्रकट-गोपनीय बातें- सभी सामने आ जाती हैं।

राजकोट में लोग मोदी की मूर्ति ही नहीं लगा रहे थे, उसकी पूजा के लिए मंदिर भी बना रहे थे। भाजपा के अनेक मंत्रिगण और पदाधिकारी उसके उद्घाटन में शामिल होकर भगवान श्री मोदीजी के प्रति अपनी श्रद्धा भी प्रकट करने वाले थे लेकिन ज्यों ही मोदी ने डांट लगाई, सभी औंधे पड़ गए। यह भी मोदीभक्ति का जीता-जागता प्रमाण है। अच्छी बात यह है कि मनमोहनसिंह की तरह आजकल मुंह पर पट्टी बांधे रखने वाले प्रधानमंत्री ने अपना मुंह तो खोला। यदि वे नहीं खोलते तो लोग कहते कि दिल्ली ने मोदी का चूरा कर दिया और राजकोट उस चूरे की मूर्ति बनाकर पूजने पर उतारु है। मोदी चतुर हैं। उन्होंने यह प्रहसन होने से रोक दिया।

लेकिन मोदी से भी बड़े महा मानव हमारे लाडले अन्ना हजारे हैं। वे कितने भोले हैं। उन्होंने गृहमंत्री राजनाथजी को कुछ माह पहले एक चिट्ठी लिखी थी। उसमें उन्होंने उनसे आग्रह किया था कि वे उनके किसी भक्त को उनकी (अन्ना की) मूर्ति लगवाने में मदद करें। वाह, अन्नाजी! आप मोदी से भी ज्यादा साहसी निकले! आपको अपने नेता होने का पक्का भ्रम हो गया। अपनी मूर्ति खुद लगवाएं और खुद ही उसकी पूजा करे। जिस कछुए पर पांव धरने से हिंदू हृदय-सम्राट डरें, उस कछुए की पीठ पर हमारे प्रहसन-सम्राट सहर्ष सवारी करें। वाह, क्या दृश्य है?

Comment:Cancel reply

Exit mobile version