अखिलेश कुमार आर्य का हृदय गति रुकने से हुआ निधन

बदायूं। जीवन के पीछे मौत एक शिकारी की तरह लगी होती है। यह शिकारी कब झपट्टा मार ले और कब हमारे जीवन का अंत हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। किसी किसी कवि ने बड़ा सुंदर लिखा है :-

कफन बढ़ा तो किस लिए नजर तू डबडबा गई,
श्रंगार क्यों सहम गया बाहर क्यों लजा गई?
एन जन्म कुछ न मृत्यु कुछ सिर्फ इतनी बात है,
किसी की आंख खुल गई किसी को नींद आ गई।।

जीवन के इस शाश्वत सत्य का सामना सभी को करना पड़ता है। परंतु दुख उस समय होता है जब कली खिलने से पहले मुरझा जाती है। दुख उस समय भी होता है जब सुर्ख गुलाब मुरझाने से पहले टूट कर धरती पर गिर जाता है।
ऐसे ही एक सुर्ख गुलाब थे स्वर्गीय अखिलेश कुमार आर्य।आर्य सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान और जीवन को समर्पित करने वाले ऐसे अखिलेश कुमार आर्य का अपने गांव रसूलपुर में विगत 18 जुलाई को निधन हो गया था।
इस संबंध में जानकारी देते हुए भारत स्वाभिमान के राज्य संगठन मंत्री दयाशंकर आर्य ने ‘उगता भारत’ को बताया कि अमीन साहब के नाम से प्रसिद्ध रहे अखिलेश कुमार आर्य रसूलपुर कला बदायूं के रहने वाले थे। जिनका हृदय गति रुक जाने से देहांत हो गया । उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी और अपनी स्पष्टवादिता व सत्याचरण के लिए समाज में जाने जाते थे। महर्षि दयानंद के सिद्धांतों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखकर भारत की वैदिक संस्कृत की रक्षा के लिए प्राणपण से कार्य करने वाले अखिलेश कुमार आर्य को आर्य विचार धाराओं की विरासत में प्राप्त हुई। जिसको आगे बढ़ाने का उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। यही कारण रहा कि अखिलेश कुमार आर्य यज्ञ याग आदि के प्रति श्रद्धा भाव से जुड़े रहे और उनके प्रचार प्रसार के लिए कार्य करते रहे।
श्री आर्य ने बताया कि अखिलेश के निधन को मैं अपनी व्यक्तिगत क्षति मानता हूं। सारा क्षेत्र उनके प्रति आदर का भाव रखता था । एक अच्छा चेहरा समाज से गुम हो गया। जिसका दुख लोग देर तक अनुभव करते रहेंगे। अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए विद्वानों ने कहा कि स्वर्गीय आर्य के रहने से उनके कुल, वंश, क्षेत्र और समाज ने प्रगति व उन्नति की ।इसलिए उनका जीवन सार्थक रहा । ऐसे सार्थक जीवन जीने वाले लोग धन्य होते हैं।
इनकी अंत्येष्टि पूर्ण वैदिक रीति के अनुसार उनके पैतृक गांव रसूलपुर कलां (बदायूँ)में 19 जुलाई को आर्य विद्वानों ,सन्यासियों के द्वारा की गई और वहीं श्मशान में सभी विद्वानों ने एक सभा कर मृत्यु तथा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने और अमरता प्राप्त करने व आ0 आर्य जी के संसमरण के ऊपर अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। सभा में आचार्य विजय देव , आचार्य अर्जुन देव , आ0 रामवीर सिंह शास्त्री ,आ0 सुरेंद्र शर्मा , ज्ञानदेव आर्य और क्षेत्र के उपदेशक,भजनोपदेशक सहित गुरुकुल के ब्रह्मचारी समेत बड़ी संख्या में क्षेत्र की उपस्थिति रही ।

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