योगिराज देवरहा बाबा की चित्र – विचित्र गाथा , भाग ( क )


डा. राधे श्याम द्विवेदी
बस्ती बाबा जी की जन्म और कुलभूमि रही :-
भारत देश में कई चमत्कारिक बाबा और सिद्ध पुरुष अवतरित हुए हैं। उनमें से एक प्रमुख नाम देवरहा बाबा काआता है। बताया जाता है कि बाबा के पूर्वज  उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के उमरिया गांव के मूल निवासी थे।  बाबा के  समय भारत में ब्रिटिश सरकार थी। बस्ती और देवरिया सब गोरखपुर सरकार के अधीन थे।1801 में बस्ती तहसील मुख्यालय बन गया था  जो 1865 में जिले का मुख्यालय बना था। 1997 से बस्ती 3 जिलों वाला मंडल कार्यालय बन चुका है। देवरिया जनपद 16 मार्च 1946 को गोरखपुर जनपद का कुछ पूर्व-दक्षिण भाग लेकर बनाया गया था। वर्तमान में देवरिया में 2 जिले बने हुए हैं।
सिद्ध योगी देवरहा बाबा की असली जन्म तिथि अज्ञात है।उनका
 जन्म उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान बस्ती  जिले के दुबौलिया ब्लाक/ थाना के अंतर्गत सरयू तट  स्थित  उमरिया नामक गांव में हुआ था, उनका बचपन का नाम जनार्दन दत्त दूबे था। उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था उनके तीन पुत्र थे सूर्यबली देवकली और जनार्दन।  पिता जी  अपने  तीनों  बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे जनार्दन सबसे छोटे भाई थे।तरुणाई में ही वे बड़ी बहन का उलाहना पाकर सरयू पार कर रामनगरी आ पहुंचे। यहां कुछ दिन निवास करने के बाद वे संतों की टोली के साथ उत्तराखंड चले गए। वहां पहुंचे संतों के मार्गदर्शन में योग एवं साधना की बारीकी सीखी। समाधि को उपलब्ध होते इससे पूर्व दीक्षा की आवश्कता महसूस हुई और वे दैवी प्रेरणा से काशी पहुंचे। दीक्षा के बाद उन्हें गुरु आश्रम में भगवान की पूजा का दायित्व मिला।  भदौनी  निवासी  पं.  गया प्रसाद  ज्योतिषी के यहां  रहकर वे  संस्कृत  व्याकरण  का अध्ययन करने लगे थे।कई वर्ष काशी में  अध्ययनरत  रहने  के  बाद जनार्दन दत्त  स्वामी निरंजन  देव  सरस्वती  के  साथ  हरिद्वार आ गये हरिद्वार  कुम्भ मेले  के दौरान  जनार्दन  दत्त  का अपने पिता पं. राम यश  दूबे से अचानक  मिलना हो गया। पिता जी  को देखते ही  जनार्दन दत्त  भयभीत  हो गये उनके घर  चलने के  लिए  कहने पर वह उनके  साथ चलने के लिए  तैयार भी हो गये थे। रास्तें  में पिताजी  की इच्छा  अयोध्या में  राम जी  के दर्शन  की हुई। जहां  अचानक  पिता जी  का  निधन हो गया। रामयश जनार्दन को लेकर घर की ओर चल पड़े मगर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई ।पिता को वहीं छोड़कर जनार्दन उमरिया गांव पहुंचे और अपने भाइयों को लेकर अयोध्या आए वहां पर पिता का अंतिम संस्कार किया पिताजी  के   निधन के बाद  उनके  परिवार  के  विरोधियों  ने उन्हें  आतंकित  करना प्रारम्भ कर दिया। विरोधियों से  बचने  के लिए  जनार्दन  दत्त को  अपनी  जन्म  भूमि  छोड़नी पड़ी।
ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति देवरिया में:-
उसके बाद जनार्दन पुनः ब्रह्म की खोज में वापस चले गए ब्रह्म की तलाश में निकले जनार्दन दुबे की ज्योति तप साधना योग से पूरे देश में फैलने लगी पूरे देश में बड़ी बड़ी हस्तियां उनकी तरफ चली आ रही थी उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक की बात है पूरे उत्तर प्रदेश में भीषण अकाल पड़ा था । अकाल से सर्वाधिक प्रभावित गोरखपुर जिला था। आज का देवरिया जिला उन दिनों गोरखपुर जिले में ही था। भयंकर सूखे के कारण पूरे जनपद में त्राहि त्राहि मची थी। देवरिया में सरयू नदी के तट पर एक प्राचीन गांव मईल है। एक दिन अकाल ग्रस्त ग्रामवासी सरयू नदी के तट पर एकत्रित होकर भगवान से प्रार्थना कर रहे थे।  देवरा  (एक  प्रकार का छोटा पौधा) के घने जंगलों में लम्बे समय तक बाबाजी को  रुकना व छिपना पड़ा था।इससे उनके केश  बाल और  दाढ़ी  बहुत  बढ़ गये थे। कोई उस जंगल में अचानक  जनार्दन दत्त  को  देखकर उन्हे “देवरा बाबा” कह भय से वहां से  भाग  गया  था। नदी की रेत को जनभाषा में भी  देवरा कहते हैं ।वहां रहने के कारण बाबा को देवरहा बाबा कहा जाने लगा। अवधूत वेषधारी जटाधारी एक तपस्वी महापुरुष नदी तट पर प्रकट हुए उनका उन्नत ललाट मुख मंडल पर देदीप्यमान तेज आंखों में सम्मोहन देखकर उपस्थित जन अपने को रोक न सके और उस तपस्वी के सामने साष्टांग लेट आए ।यह सूचना पूरे गांव में फैल गई। देखते देखते गांव के समस्त नर- नारी दौड़कर आ गए ।कुछ ही देर में बाबा के सामने एक विशाल जनसमुदाय इकट्ठा हो गया ।बाबा सरयू नदी के जल से प्रकट हुए थे इसलिए “जलेसर महाराज” के नाम से जय – जयकार के नारे लगने लगे। बाबा से सभी मनुष्यों ने अपनी अपनी विपत्तियां कहीं ।बाबा ने सबकी बातें प्रेम पूर्वक सुनी और कहा तुम लोग घर जाओ ।शीघ्र ही वर्षा होगी ।वे बाबा का गुणगान करते हुए अपने घरों को लौट पड़े और शाम होते ही पूरा आकाश बादलों से भर गया देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी। देवरा ( नदी के रेत ) की  जगह से प्रकट होने के कारण देवरहा बाबा कहे जाने लगे । “जलेसर बाबा”  ही आगे चलकर  ” देवरहा बाबा” कहलाए।

मचान पर आवास बना:-
इस नये  परिचय  से नयी  पहचान  लेकर  वे अपने गुरु स्वामी  निरंजन देव  सरस्वती के  सानिध्य में  रहकर योग  साधना  में बर्षों तक संलग्न रहे। देवरहा  बाबा  कठोर  साधना  करते  हुए एषणा शक्ति अर्जित करने के बाद तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान  देवरिया जिले के  मइल ग्राम  में सरयू तट  पर  मचान  बनाकर रहने लगे थे। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। देवरहा बाबा से जब पूछा गया कि वो धरती से इतने ऊपर क्यों रहते हैं? तो उन्होंने बताया कि शिला, अग्नि और जल से चार हाथ ऊपर रहना चाहिए। इस वजह से मैं मचान बनाकर रहता हूं।भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे ।जब  उनकी  इच्छा  होती तो वह काशी, मथुरा ,अयोध्या, वृन्दाबन व झूसी  आदि  स्थानों पर मंच बनवाकर वहीं लागों को दर्शन तथा आशीर्वाद  देने लगे थे। उन्हें सामान्य  शिक्षा होने  के बावजूद  वेद पुरान  गीता रामायण तथा मनुस्मृति आदि अच्छे ग्रंथों का अच्छा ज्ञान था। उन्हें कई  विदेशी भाषायें भी आती थी। विदेशी  ज्ञानार्थियों  को वह  उनकी ही भाषा में बात करते थे।

सही आयु का आकलन नहीं :- 
भारत के इतिहास में कई साधू संत ऐसे हुए है जो किसी परिचय के मोहताज नही जिनकी कृति से विश्व आज तक गुंजायमान है। डॉ.  राजेन्द्र  प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। देवरहा बाबा की सही आयु का आकलन भी नहीं है। 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है।  (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग- अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते है।

श्रद्धालु को प्रसाद का वितरण:-
श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है ?

अष्टांग योग में विशेष पारंगत :-
परमपूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत देवरहा बाबा थे। लोगों में विश्वास है कि, बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे। मार्कण्डेय सिंह के अनुसार, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।लोगों का मानना है, कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो कभी नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।

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